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Saturday, November 28, 2015

श्री राम चन्द्र राम की थी कई पत्नियाँ : वाल्मीकि रामायण



रामायण तुलसीदास द्वारा रचित एक छोटी किन्तु सरल कहानी है, जिसमे अयोध्यापति श्री रामचन्द्र जी के जीवन एवं राजकाज की समस्त एवं सरल शब्दों में व्याख्या की गयी है । इसमें कुछ भी सनसनीखेज नहीं है क्योंकि ये अत्यंत ही सरल भाषा में लिखी गयी है। इसके अनुसार अयोध्यापति श्री राम महाराज दशरथ के पुत्र एवं अयोध्या नगरी के प्रजापालक थे जिसे आज हम और आप बनारस के नाम से जानते है।

देश की अधिकतर पुस्तको में सिर्फ यहीं तथ्य लिखा गया है के अयोध्यापति श्री राम का विवाह केवल सीता नामक महिला से हुआ था। विवाह के उपरान्त घरेलो वजह से उन्हें महाराज दशरथ ने चौदह वर्ष की अवधि तक वनों में निर्वासित जीवन जीने का कठोर आदेश दिया था । वनवास के दौरान उनके साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मन एवं पत्नी सीता थी। जहाँ किसी बात से नाराज़ होकर लंका पति या लंका के नरेश रावण ने उनकी पत्नी सीता का जंगल से अपहरण कर लिया था। तब वहां जंगल में वानर सेना के सेनापति हनुमान की सहायता से उन्होंने रावण को पराजित करके अपनी पत्नी सीता को फिर से प्राप्त कर लिया था। तत्पश्चात श्री राम अपने भाई लक्ष्मन एवं पत्नी सीता के साथ चौदह बर्ष के वनवास के पश्चात् अयोध्या नगरी वापिस पहुंचे। जबकि जो वर्णन तुलसीदास द्वारा रचित रामायण में किया गया है वो लगभग 2000 वर्ष पूर्व वाल्मीकि द्वारा लिखी गयी रामायण से एकदम अलग है।

वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में कई स्थानों पर लिखा गया है के अयोध्यापति श्री राम की सीता के अलावा कई और भी पत्निया थी। परन्तु श्री राम अपनी पहली पत्नी सीता से अत्यधिक प्रेम करते थे। इतना ही नहीं वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में अयोध्यापति श्री राम की निजी जिंदगी से सम्बंधित कई और भी राज़ लिखे हुए है। वाल्मीकि ने श्री राम को एक आम आदमी से अयोध्या का राजा बनते हुए वर्णित किया है जबकि तुसलीदास द्वारा रचित रामायण में उन्हें अयोध्यापति से बढ़कर स्वयं भगवान बताया गया है। महान कवी तुलसीदास ने उन्हें बड़ी सुन्दरता एवं चतुराई के साथ साधारण मनुष्य से हटकर एक भगवान के रूप में समाज के सामने चित्रित एवं वर्णित किया था।

श्री स़ी० आर० श्रीनिवास अयंगर ने वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का अनुवाद करते हुए लिखा है की ”अयोध्यापति श्री राम की पहली पत्नी होने के कारण सीता उनकी रानी थी परन्तु श्री राम की सीता के अलावा भी कई और पत्निया थी, यही नहीं उनकी कई सेविकाए एवं सेवक भी थे। जो सब समय समय पर उनकी यौन इच्छा की पूर्ति किया करते थे। उस दौर में ऊँचे लोगो में (खासतौर से राजाओ में) यौन सुख की अविलम्ब प्राप्ति के लिए कई कई पत्निया रखने का रिवाज था (अयोध्या कांडम अध्याय 8, पृष्ट 28) जिसे दोष नहीं समझा जाता था।”

वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्यापति श्री राम का पहली पत्नी सीता से विवाह एक आदर्श विवाह नहीं था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्यापति श्री राम की कई पत्नियाँ थी जो भिन्न भिन्न प्रकार की क्रीडाओ के लिए उनका साथ दिया करती थी, जिनमे यौन क्रीड़ाये भी शामिल थी। वाल्मीकि रामायण में एक स्थान पर लिखा गया है के स्वयं अयोध्यापति श्री राम महाराज दशरथ की जैविक संतान नहीं थे क्योंकि उन्हें कई अन्य लोगो की जैविक संतान माना गया था। परन्तु महाराज दशरथ ने ये तथ्य जानते हुए भी की श्री राम उनका अपना पुत्र नहीं है उन्हें अयोध्या का प्रजापालक नियुक्त किया था। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में इसका भी वर्णन किया गया है के श्री राम ने वनवास से लोटने के पश्चात कैसे अपना जीवन बिताया था।

वाल्मीकि ने लिखा है की उनका खुद का घर अशोक पार्क नामक स्थान पर था जहाँ उनकी पसंद की हर एक वस्तु उपलब्ध थी। श्री राम को खाने में जो जो पसंद था वो सब तो वहां पर उपलब्ध रहता ही था, वहां पर फल फूल, मांस और मदिरा का भी उचित प्रबंध किया जाता था। प्रत्येक उपलब्ध होने वाली खाद्य सामग्री का सेवन स्वयं अयोध्यापति श्री राम अपने घर पर किया करते थे। वाल्मीकि ने आगे लिखा है की कभी कभी स्वयं उनकी पहली पत्नी सीता भी मांस मदिरा का सेवन करने में उनका साथ दिया करती थी।

यहीं नहीं वें दोनों नृत्य के भी शौक़ीन थे इसके लिए उन्होंने अपने घर में बहुत सारी नृतकियों का उचित प्रबंध किया हुआ था। कई बार स्वयं पति पत्नी में मदिरा के सेवन को लेकर प्रतियोगिता भी होती थी। पति पत्नी दोनों एक साथ अप्सराओं, नृतकियों, किन्नरों आदि के नृत्य का भी भरपूर आनंद उठाते थे। कई बार स्वयं अयोध्यापति श्री राम पिने में इतने मस्त हो जाया करते थे के वो स्वयं उठकर नाचने वाली सुन्दर एवं नग्न महिलाओ के मध्य में जा बैठते थे। जो नृतकी या नृतक उन्हें प्रसन्न कर देता था उसे स्वयं अयोध्यापति श्री राम हीरे जवाहरात से जडित आभूषण उपहार स्वरुप दिया करते थे।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्यापति श्री राम की छवि पुरुषों के मध्य महिलाओ के प्रिंस की बन गयी थी। अयोध्यापति श्री राम की ये क्रीडाएं उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गयी थी। जिसे कोई दूसरा व्यक्ति नहीं रोक सकता था केवल वें स्वयं ही इसे रोक सकते थे। बहरहाल, आज जिस रामायण की लोग पूजा करते है वो महान कवी तुलसीदास द्वारा रचित एक काव्य ग्रन्थ है। जिसमे अयोध्यापति श्री राम को स्वयं इश्वर बताया गया है। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अस्तित्व के प्रमाण ना मिलने की वजह से उसे पूजने योग्य नहीं माना गया था। जिस कारण से लोग उसके अनुसार पूजा अर्चना नहीं कर सकते।
धन्यवाद।

Posted by : अब्दुल कादिर गौर ”राही अनजान ” अलीगढ