Saturday, November 9, 2013

kafir jaha mil jaye unhe maar do ?

 कुरान: सूरा 9, आयत 5

पूरा पढ़ें और ज़रूर शेयर करें..पोस्ट थोडा बड़ा लेकिन अच्छा है..

यह हमारे पेज के मेसेज बॉक्स में एक गैर-मुसलिम से हुई बात के सम्पादित अंश हैं जो ये समझते थे की क़ुरान कहता है गैर-मुस्लिमों को जहाँ भी देखो मार दो जिस किसी को भी ये शक हो वो ये मेसेज पढ़े और समझे और शेयर करे ताकि जिस तरह उनका शक दूर हुआ बाक़ी लोगों का भी हो जाए.....
प्रस्तुत हैं बातचीत:

Mr. A - “जब पवित्र महीने बित जाए, तब काफिर ( गैर-मुसलमान / हिंदू) जहा भी मिल जाए, उन्हें घेर लों, उन्हें पकड़ लों, हर जगह उनकी ताक मैं छिपकर बैठो और उनपर अचानक हमला कर दो, उन्हें मार डालो । यदि वे प्रायश्चित करे, इस्लाम कबूल कर ले और नमाज पढ़े तो उन्हें छोड़ दो । वास्तव में अल्लाह क्षमादानी एवं दयावान है ।” -- कुरान: सूरा 9, आयत 5

Islam For Everone - ये साथ में हिन्दू पता नहीं किसने जोड़ दिया ऐसा तो कुछ नहीं है, जिस तरह यहाँ हिन्दू शब्द जोड़ा गया है उसी से आप समझ सकते हैं की नफरत फ़ैलाने वाले लोग ये आयातों तो तोड़ मरोड़कर पेश करते हैं हिन्दुओं को भड़काने के लिए. सबसे पहले तो आपको सही आयत बता देता हूँ और साथ ही इसके आगे पीछे की आयतें ताकि इस मुद्दे पर बात करने में आसानी हो और आप समझ भी सकें..ये हैं सुरह तवबह की शुरुआती 6 आयतें जिनमें से पांचवी आयत आपको बताई गयी है.

“मुशरिकों (बहुदेववादियों) से जिनसे तुमने संधि की थी, विरक्ति (की उद्घॊषणा) है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से
(1) "अतः इस धरती में चार महीने और चल-फिर लो और यह बात जान लो कि अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और यह कि अल्लाह इनकार करनेवालों को अपमानित करता है।"
(2) सार्वजनिक उद्घॊषणा है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से, बड़े हज के दिन लोगों के लिए, कि "अल्लाह मुशरिकों के प्रति जिम्मेदार से बरी है और उसका रसूल भी। अब यदि तुम तौबा कर लो, तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है, किन्तु यदि तुम मुह मोड़ते हो, तो जान लो कि तुम अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते।" और इनकार करनेवालों के लिए एक दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो
(3) सिवाय उन मुशरिकों के जिनसे तुमने संधि-समझौते किए, फिर उन्होंने तुम्हारे साथ अपने वचन को पूर्ण करने में कोई कमी नही की और न तुम्हारे विरुद्ध किसी की सहायता ही की, तो उनके साथ उनकी संधि को उन लोगों के निर्धारित समय तक पूरा करो। निश्चय ही अल्लाह को डर रखनेवाले प्रिय है
(4) फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है
(5) और यदि मुशरिकों में से कोई तुमसे शरण माँगे, तो तुम उसे शरण दे दो, यहाँ तक कि वह अल्लाह की वाणी सुन ले। फिर उसे उसके सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दो, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ज्ञान नहीं
(6)” अल-कुरान 9:1-6

Mr. A: ok

Islam For Everyone: अच्छा अब ये बताइए की गीता के इन श्लोकों से आप क्या समझते हैं?

क्षत्रिय होने के नाते अपने विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है | अतः तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है | -
[गीता अध्याय 2 श्लोक 31]

हे पार्थ! वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते हैं जिससे उनके लिए स्वर्गलोक के द्वार खुल जाते हैं | -
[गीता अध्याय 2 श्लोक 32]

हे कुन्तीपुत्र! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे | अतः दृढ़ संकल्प करके खड़े होओ और युद्ध करो | -
[गीता अध्याय 2 श्लोक 37]

तुम सुख या दुख, हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध के लिए युद्ध करो | ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा | -
[गीता अध्याय 2 श्लोक 38]

क्या आप बता सकते हैं यहाँ कृष्ण अर्जुन को स्वर्ग का लालच देकर धर्म के नाम पर लड़ने को क्यों उकसा रहे हैं?
मैं वेदों में जो मारकाट बताई गयी है उसका वर्णन अभी उचित नहीं समझता.

आप यह न समझें की मैं आपकी धार्मिक भावनाएं आहत करने या उलटा सवाल करके कुरान को सही सिद्ध करने की कोशिश करने के लिए आपसे ये सवाल पूछ रहा हूँ. केवल इसलिए पूछ रहा हूँ क्यूँ की इससे आपको आपके प्रश्न का उत्तर ढूँढने में सहायता मिलेगी.

Mr.A: ok,
aap ki baat stya hai.per Mhabhart ke time Kaafir jyse log nahi the.
Arjun apne Dhram ka Paalan nahi ker rha tha isliye Bhgwaan ne use es thrh ki ftkaar lgai.aur wo yudh Pandwo per Thopa gya tha.na ki pandwo ne start kiya.ab ydi koi yudh ke liye lalkare to chtriya hone ke kaaran use yudh kerna hi pdta hi.

Islam For Everyone: अश्विनी जी मैं भी आपसे सहमत हूँ की अर्जुन अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे और कृष्ण ने उन्हें फटकार लगाई. यह भी हो सही हो सकता है की युद्ध थोपा गया हो. लेकिन ठीक वैसी ही स्तिथि मुस्लिमो और काफ़िरों के बीच थी.

काफ़िरों के बारे में क़ुरआन में जो भी बातें पकड़ने, मारने, क़त्ल करने की आई हैं उन्हें पूरे संदर्भ (Context) के साथ पढ़ा जाए तो मालूम होगा कि यह सब भी युद्ध से संबंधित आदेश थे ठीक उसी तरह जिस तरह गीता में हैं । मुसलमानों (और पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल॰) को मक्का के काफ़िरों ने 13 वर्ष तक सताया था, प्रताड़ित व अपमानित किया था, दो बार मुसलमानों को मक्का छोड़कर हब्शा (इथोपिया) प्रवास पर मजबूर किया था, यहां तक कि मक्का (जन्म-भूमि, अपना नगर, अपना घर-बार, सामग्री, आजीविका; यहां तक कि बीवी-बच्चे, माता-पिता, परिवार भी) छोड़कर 450 किलोमीटर दूर मदीना नगर के प्रवास (हिजरत, Migration) पर विवश कर दिया था। इसके बाद भी अपनी सेनाएं और संयुक्त सेनाएं (अहज़ाब Allied Armies) लेकर मुसलमानों पर बार-बार चढ़ आते थे, और पूरे अरब प्रायद्वीप में जगह-जगह इस्लाम और मुसलमानों का अरब से सर्वनाश कर देने के लिए हमलों की तैयारियां जारी रहती थीं तब जाकर अल्लाह ने मुसलमानों को इजाज़त दी कि इन से युद्ध करो| यह ऐसे काम की इजाज़त या आज्ञा (आदेश) थी जो मानवजाति के पूरे इतिहास में, युद्ध-स्थिति में सदा मान्य रही है। शान्ति-स्थापना के लिए हर सभ्य समाज ने ऐसे युद्ध को मान्यता दी है। ठीक उसी तरह जिस तरह आपके धर्म में युद्ध हुए हैं , इतिहास साक्षी है कि इस्लामी शासन-काल में मुसलमानों ने जितने युद्ध लड़े, वे या तो आत्म-रक्षा के लिए थे, या अरब व आस-पास के भूखण्डों में शान्ति-स्थापना हेतु आक्रमणरोधक युद्ध (Pre-emptive war) के तौर पर लड़े गए। यथा-अवसर तथा यथा-संभव उन्होंने सदा ‘सुलह’ को ‘युद्ध’ पर प्राथमिकता दी। शान्ति-समझौतों को हमेशा वांछनीय विकल्प मानाजिस तरह आप मानते हैं की पांडवोपर युद्ध थोपा गया था तो आप एक बार मुस्लिमों पर

यहाँ तक की यह जो आयत है जिसे इस्लाम के खिलाफ़ प्रचार में इस्तेमाल करते हैं वह भी उस समय की है जब मुशरिकों के शांति-समझौता करके तोड़ दिया था और धोखे से कुछ मुस्लिमों के हत्या कर दी थी. अभी कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने भारतीय सैनिकों की इसी तरह शांति-संधि तोड़कर हमारे भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी थी तब हर हिन्दुस्तानी भी यही कह रहा था की पाकिस्तानी सनिकों को जहाँ देखो मारो. यही नहीं कल तो यदि किसी दुसरे देश से युद्ध छिड़ जाये तो हमारी सेना के अफसर भी यही कहेंगे की दुश्मनों को जहाँ देखो मार दो, तो आप ही बताइए इसमें ग़लत क्या है?

आपको ये समझने की ज़रुरत है जो लोग ऐसा करते हैं वो आपकी इस्लाम की कम जानकारी का फायदा उठाकर आपके मन में मुस्लिमों के प्रति नफ़रत भरकर हमारे देश की एकता और संप्रभुता को नुकसान पोहचना चाहते हैं| आज हर भारतीय को चाहिए की इस्लाम की जानकारी बढ़ाये और ऐसे लोगों का बहिष्कार करे| जो ये करते हैं उन हथकंडो उस तरह तो दुनिया के किसी भी धर्म ग्रन्थ को आतंकवादी और हिंसा सिखाने वाला साबित किया जा सकता है...वैद,बाइबिल,गीता को भी.

जिस तरह मैंने आपको बताया आप खुद सोचिये गीता के इन श्लोकों को तोड़ मरोड़कर हम मुसलमान भी आपके धर्म के खिलाफ दुष्प्रचार कर सकते हैं लेकिन आपने खुद देखा होगा मुस्लिमों ने ऐसा कभी नहीं किया क्युकी इस्लाम झूठ फ़ैलाने के खिलाफ है| मुस्लिमों ने धर्मप्रचार के लिए कभी भी झूठ का सहारा नहीं लिया क्युकी अगर कोई इन्सान खुले दिमाग से इस्लाम को समझे तो वह स्वयं ही इस्लाम की तरह आकर्षित हो जायेगा आखिरकार ये हम सब को बनाने वाले एक मात्र ईश्वर का बनाया धर्म है.

उम्मीद है आपकी ग़लतफ़हमी दूर हो गयी होगी.. 

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2 Responses to "kafir jaha mil jaye unhe maar do ?"

  1. प्रिय कलीमजी,
    क़ुरान को अल्लाह की वाणी कहते हैं, परंतु गीता कृष्ण नामक नर की वाणी है, ईश्वर की नही !

    महाभारत और गीता मनुष्यकृत है देवकृत नही !

    वेद ईश्वर की वाणी है और वेद का ईश्वर पूर्ण ज्ञानी है ! वेद के ईश्वर ने शरीरशास्त्र, समाजशास्त्र, सृष्टिविज्ञान के साथ ही पूरे ब्रह्मांड में उप्लव्ध वस्तुओं का सटीक ज्ञान दिया है जो विज्ञान की कसौटी पर खड़ा उतरता है ! जबकि क़ुरान के आधार पर अल्लाह को आप ज्ञानी नहीं कह सकते यदि कहें फिर तो आप महान हैं!! आपके पूर्वज भी सनातनधर्मी ही रहे होंगे परंतु वो पौराणिक कुप्रथा के प्रभाव के कारण इस्लाम की तलवार के सामने नतमस्तक हो गये और आप अभी भी पुराणों मे ही घूम रहें है ! क़ुरान की तरह ही पुराणों का भगवान भी अज्ञानी और भ्रष्टाचारी है! ईश्वर को समझना हो तो वेद से समझें सटीक ज्ञान प्राप्त होगा !आइए लौट चलें वेदों की ओर! वसुधैव कुटुम्बकम !!

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    1. वाह क्या गपोलेबजी है भ्राताश्री हमारे पूर्वजो ने कभी तलवार की धार पर इस्लाम कबूल किया ही नही हमारे पूर्वजो ने तो इस्लाम की अच्छाई की अच्छाई की कारण इस्लाम कबूल किया और तुम्हारी Caste system से निकल गए

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