Tuesday, December 22, 2015

Arya Samaj - ख़तना और पेशाब


सत्यार्थ प्रकाश’ के रचयिता ने लिखा है कि अगर ख़तना कराना ईश्वर को इष्ट होता तो वह ईश्वर उस चमड़े को आदि सृष्टि में बनाता ही क्यों ? और जो बनाया है वह रक्षार्थ है जैसा आँख के ऊपर चमड़ा। वह गुप्त स्थान अति कोमल है जो उस पर चमड़ा न हो तो एक चींटी के काटने और थोड़ी चोट लगने से बहुत सा दुःख होवे और लघुशंका के पश्चात् कुछ मूत्रांश कपड़ों में न लगे आदि बातों के लिए ख़तना करना बुरा है। ईसा की गवाही मिथ्या है, इसका सोच-विचार ईसाई कुछ भी नहीं करते। (13-31)

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के लेखक का यह कहना कि अगर ख़तना कराना ईश्वर को पसंद होता तो वह चमड़ा ऊपर लगाता ही क्यों? यह कोई बौद्धिक तर्क नहीं है? सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को नंगा पैदा किया है, इसका मतलब यह तो हरगिज़ नहीं है कि मनुष्य कपड़े ना पहने, नंगा ही जिये, नंगा ही मरे, गंदा पैदा होता है, गंदा ही रहे। नाखून और बाल आदि भी न कटवाए। दूसरी बात यह कि सृष्टिकर्ता ने चींटी व चोट आदि से सुरक्षा हेतु झिल्ली की व्यवस्था की है। जिस चमड़ी की व्यवस्था सृष्टिकर्ता ने की है वह चमड़ी या झिल्ली न चींटीं रोधक है और न ही चोट रोधक। वह झिल्ली स्वयं इतनी अधिक कोमल है कि उसे खुद सुरक्षा की आवश्यकता है। तीसरी बात कि लघुशंका के पश्चात् कुछ मूत्रांश कपड़ों पर न लगे इसलिए झिल्ली की व्यवस्था की गई है। झिल्ली में कोई सोखता तो लगा नहीं कि वह मूत्रांश को अपने अंदर सोख लेगा। झिल्ली होने से तो और अधिक मूत्रांश झिल्ली में रूकेगा और कपड़ों को गीला और गंदा करेगा। यह तो एक साधारण सी बात है इसमें किसी शोध की भी आवश्यकता नहीं है। जहाँ तक पेशाब की बात है पेशाब शरीर की गंदगी है, इसे धोया जाए तो नुकसान ही क्या है? मगर लेखक ने पेशाब धोने की बात कहीं नहीं लिखी है,
जबकि हिंदू ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
एक उदाहरण देखिए -
एका लिंगे गुदे तिस्रस्तथैकत्र करे दश ।
उभयोः सप्त दातव्याः मृदः शुद्धिमभीप्सता ।।
(मनु, 5-139)

भावार्थ - शुद्धि के इच्छुक व्यक्ति को मूत्र करने के उपरांत लिंग पर एक बार जल डालना चाहिए । मलत्याग के उपरांत गुदा पर तीन बार मिट्टी मलकर दस बार जल डालना चाहिए और जिस बायें हाथ से गुदा पर मिट्टी मली है व जल से उसे धोया है, उस पर दस बार जल डालते हुए दोनों हाथों पर सात बार मिट्टी मलकर उन्हें जल से अच्छी प्रकार धोना चाहिए ।

यहाँ यह भी विचारणीय है कि लेखक ने अपनी समीक्षा में केवल ईसा मसीह और ईसाइयों का ही उल्लेख किया है जबकि ख़तना तो यहूदी और मुसलमान भी कराते हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों ने शोध कर दावा किया है कि ख़तना कराने वाले लोगों में एच.आई.वी. संक्रमण होने के आसार अन्य लोगों की तुलना में छः गुना कम होते हैं। एक विज्ञान की पत्रिका में यह भी बताया गया है कि पुरुषों की जनेन्द्रिय की पतली चमड़ी पर एच.आई.वी. संक्रमण ज्यादा कारगर तरीके से हमला करता है। ख़तना कराकर अगर चमड़ी को हटा दिया जाए तो संक्रमण का ख़तरा कम हो जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ख़तने के द्वारा एच.आई.वी. संक्रमण से बचाव हो सकता है, क्योंकि लिंग की बाहरी पतली झिल्ली एच.आई.वी. के लिए आसान शिकार है। ख़तना जनेन्द्रिय की झिल्ली के अन्दर जमा होने वाले पसेव (गंदगी) से तो बचाता ही है साथ ही पुरुष के पुरुषत्व को भी बढ़ाता है। इसका मनुष्य के मन-मस्तिष्क पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। ख़तना के एड्स जैसी अन्य ख़तरनाक बीमारियों से बचाव के दूरगामी लाभ भी हो सकते हैं जो अभी मनुष्य की आंखों से ओझल हैं।
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खतने से घटता है सर्वाइकल कैंसर का खतरा
वाशिंगटन। हर परंपरा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण होता है। मुस्लिमों में बचपन में की जाने वाली खतना की रस्म [जननांग की ऊपरी चमड़ी को निकालना] को कई दुसाध्य बीमारियों से निपटने में बेहद कारगर बताया गया है। हाल में हुए एक शोध के मुताबिक खतना से एड्स व यौन संचारित वायरस के चलते होने वाले सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम में मदद मिलती है।

शोध में नवजात शिशुओं का खतना किए जाने से उन्हें भविष्य में यौन संचारित रोगों से बचाव की बात कही गई है। वर्साय यूनिवर्सिटी [फ्रांस] के डा. बेर्टन आवर्ट और उनके दक्षिण अफ्रीकी सहयोगियों ने अध्ययन के दौरान करीब 1200 पुरुषों का परीक्षण किया। अध्ययन में खतना वाले 15 फीसदी व बिना खतना वाले 22 फीसदी पुरुषों को ह्यूंमन पैपीलोमा वायरस [एचपीवी] से संक्रमित पाया गया। सर्वाइकल कैंसर सहित यौन संचारित रोगों [सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज] के पीछे एचपीवी को जिम्मेदार माना जाता है।

शोधार्थियों ने खतना करा चुके पुरुष के साथ यौन संबंध बनाने वाली महिलाओं को उन महिलाओं की तुलना में सर्वाइकल कैंसर का खतरा कम पाया जिन्होंने खतना नहीं कराने वाले पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाया।

इतना ही नहीं अमेरिका के बाल्टीमोर में अफ्रीकी-अमेरिकियों पर किए गए शोध में खतना कराने वाले 10 फीसदी पुरुषों के मुकाबले खतना नहीं कराने कराने वाले 22 फीसदी पुरुषों को एड्स से संक्रमित पाया गया। प्रमुख शोधकर्ता डा. रोनाल्ड ग्रे के मुताबिक अमेरिका में रहने वाले अफ्रीकी व हिस्पैनिक [लैटिन] पुरुषों में खतना की प्रथा कम पाई जाती है। इस कारण उनमें एड्स का खतरा ज्यादा पाया जाता है। दुनियाभर में हर साल 3.3 करोड़ लोग एड्स से संक्रमित होते हैं। वहीं पूरी दुनिया में प्रति वर्ष तीन लाख महिलाओं की सर्वाइकल कैंसर से मौत हो जाती है।

धन्‍यवाद
http://in.jagran.yahoo.com/news/international/general/3_5_5081942.html/print/

Female Circumcision in Islam
औरतों की खतना
कुरआन में खतना का जिकर नहीं, दीने इबराहीम abrahamic religions अर्थात यहूद, इसाई और मुसलमान में आखरी पेगम्‍बर मुहम्‍मद सल्‍ल. ने इस्‍लाम में पिछले धर्मों की जिन अच्‍छी बातों को जारी रखा उनमें एक मर्दों की खतना है,

महिलाओं की खतना का जिकर सही अहादीस में नहीं मिलता, जिन हदीसों को कमजोर हदीस माना गया है उनसे पता चलता है कि उस दौर में जिस व्‍यक्ति को बुरे अंदाज में पुकारना होता था तो कहा जाता था कि ''ओ महिलाओं की खतना करने वाली के बेटे'' अर्थात अच्‍छी बात नहीं समझी जाती थी, लगभग सभी बडे मुस्लिम इदारों को इसको ना मानने पर इत्‍तफाक है इसी कारण यह केवल इधर उधर छोटी मोटी जगह पर कमजोर हदीसों पर अडे हुए या उनको इलाकाई रस्‍म व रिवाज पर अडे हुए लोगों जैसे की अफ्रीका आदि की सोच का नतीजा है, इंडिया पाकिस्‍तान बंग्‍लादेश यहां तक की अरब में भी यह बात मुसलमान भी नहीं जानते, जानने पर हैरत का इजहार करते हैं, इस लिए कुछ अडे हुए लोंगों की सोच का जिम्‍मेदार पूरी कौम को नहीं माना जा सकता, इधर कोई बुरी प्रथा नहीं जैसे कि सती प्रथा जिसे जबरदस्‍ती छूडवाया गया,

फिर भी जिसको यह बुरी प्रथा लगे वो मुस्लिम संस्‍थाओं की इस बात को फैलाए की इस बात को कमजोर हदीस का माना गया है इस लिए छोड दें

Posted by | सत्यार्थ प्रकाश | http://satishchandgupta.blogspot.ae/2010/09/arya-samaj_17.html

मुसलमानों में खतना क्यों ?


खतना यानि नकाब कुशाई, सुन्‍दर और सुरक्षित रखने का आसान तरीका, जिसे तीन धर्मों वाले लाभान्वित हो रहे हैं,,,दुनिया में इन्‍हीं तीनों धर्मों से अधिकतर समझदार होते हैं,,,इन्‍हीं का दुनिया पर कब्‍जा है,, इन तीनों धर्मों अर्थात यहूदी, इसाई और इस्‍लाम का संयुक्‍त नाम इब्राहीमी धर्म Abrahamic religions है

बच्‍चे की नाल काटी जाती है, जिसकी पैदा होने के बाद कोई आवश्‍यकता नहीं इसी तरह यह मामूली और नाजुक सी झिल्‍ली हटाई जाती है,, जिस कारण इन तीन धर्मों वालों का वो बेहद सुन्‍दर हो जाता है

उत्तर ---
पुरूषों का खतना उनके शिश्न की अग्र-त्वचा (खलड़ी) को पूरी तरह या आंशिक रूप से हटा देने की प्रक्रिया है.

यहूदी संप्रदाय में पुरूषों का धार्मिक खतना ईश्वर का आदेश माना जाता है.
[5] इस्लाम में, हालांकि क़ुरान में इसकी चर्चा नहीं की गई है, लेकिन यह व्यापक रूप से प्रचलित है और अक्सर इसे सुन्नाह (sunnah) कहा जाता है.
[6] यह अफ्रीका में कुछ ईसाई चर्चों में भी प्रचलित है, जिनमें कुछ ओरिएण्टल ऑर्थोडॉक्स चर्च भी शामिल हैं.[7]विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुसार, वैश्विक आकलन यह सूचित करते हैं कि 30% पुरूषों का खतना हुआ है,

विश्व स्वास्थ्य संगठन
विश्व स्वास्थ्य संगठन (The World Health Organization) (डब्ल्यूएचओ; 2007) (WHO; 2007), एचआईवी/एड्स पर जॉइन्ट यूनाईटेड नेशन्स प्रोग्राम, (Joint United Nations Programme on HIV/AIDS) (यूएनएड्स; 2007) (UNAIDS; 2007), और सेंटर्स फॉर डिसीज़ कण्ट्रोल एण्ड प्रीवेंशन (Centers for Disease Control and Prevention) (सीडीसी; 2008) (CDC; 2008) कहते हैं कि प्रमाण इस बात की ओर संकेत करते हैं कि पुरूषों में खतना करना शिश्न-योनि यौन संबंध के दौरान पुरूषों द्वारा एचआईवी (HIV) अभिग्रहण के खतरे को लक्षणीय रूप से कम कर देता है,
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE

प्रश्‍न : 
मुस्लिम लोगों में की जाने वाली लिंग की खतना क्‍या स्‍वास्‍थ्‍य के हिसाब से ठीक है ।
उत्‍तर : 
खतना न केवल मुस्लिम में बल्कि काफी सारे दूसरे धर्मों में भी होती है । तथा खतना का स्‍वास्‍थ्‍य के हिसाब से बहुत सारे फायदे हैं । सबसे पहला तो ये ही है कि खतना करवाने के बाद लिंग के ऊपर की जो चमड़ी है वो लिंग के आगे के मुंड पर चढ़ी हुई नहीं रहती है । जिसके कारण लिंग में इन्‍फेक्‍शन होने का खतरा बिल्‍कुल कम हो जाता है । दरअसल में ये जो चमड़ी है ये जब लिंग के आगे के मुंड पर चढ़ी रहती है तो वहां पर सडांध पैदा करती है । एक दो दिन में वहां पर एक सफेद पनीर जैसा बदबूदार पदार्थ जामा हो जाता है जो कि लिंग पर इन्‍फेक्‍शन पैदा कर देता है । जब खतना हो जाती है तो चमड़ी नीचे गिर जाती है और जिसके कारण वो बदबू पैदा होना तथा पनीर जमने की संभावना खत्‍म हो जाती है । दूसरा फायदा ये है कि कई बार संभोग करते समय जब लिंग को अंदर प्रवेश करवाया जाता है तो ये चमड़ी पीछे हटते हुए कट जाती है । यदि छेद टाइट होता है तो ऐसा होता है । चमड़ी कट जाने के कारण कई दिनों तक संभोग करने में असहनीय दर्द होता है । यदि खतना की हुई है तो ये सारी परेशानियां कम हो जाती हैं । डाक्‍टरों के अनुसार खतना होने के बाद लिंग की चमड़ी का केंसर होने की संभावना भी कम हो जाती है । आजकल खतना अस्‍पतालों में आपरेशन थियेटर में बाकायदा सर्जन के द्वारा की जाती हैं । इसलिये इसमें पहले की तरह पकने या दूसरी परेशानियां कम हो गई हैं । खतना करवाना एक प्रकार से अपने लिंग को सुरक्षित करना है इन्‍फेक्‍शन के खतरे से । कुछ शोध कहते हैं कि खतना करवाने के बाद एडस का खतरा भी कम हो जाता है ।

लड़के अपने लिंग की आगे की चमड़ी के साथ जन्म लेते हैं - वह चमड़ी जो लिंग मुंड को ढके रहती है। जब किसी लड़के या पुरुश का खतना किया जाता है, तो उनके लिंग के आगे की चमड़ी निकाल दी जाती है और लिंग मुंड दिखने लगता है।

खतना कई कारणों से किया जाता है।
इसका संबंध किसी खास धर्म, जातीय (एथ्निक समूह) या जनजाति से हो सकता है। माता-पिता अपने बेटों का खतना, साफ-सफाई या स्वास्थ्य कारणों से भी करा सकते हैं।

चित्रः बायीं ओरः बिना खतना किया गया लिंग; दाहिनी ओरः खतना किया गया लिंग

विष्व में पुरुष खतना का अनुपात
विष्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि पूरे विश्‍व व के 30 प्रतिशत पुरुषों का खतना हुआ है। कुछ समुदायों जैसे कि यहूदियों और मुसलमानों के लगभग सभी पुरुषों का खतना किया जाता है।

खतना कराने के क्या फायदे हैं?
जिन पुरषों का खतना नहीं किया गया है, उनकी तुलना में खतना कराए पुरुषों में इन बातों का कम जोखिम होता हैः
ऽ पेशाब की नली का संक्रमण (इन्फेक्षन)
ऽ एचआईवी
ऽ सिफलिस
ऽ सेक्स से होने वाली शैन्क्राॅयड नामक बीमारी
वैज्ञानिकों का मानना हैं कि खतना किए गए पुरुषों में संक्रमण का कम जोखिम होता है क्योंकि लिंग की आगे की चमड़ी के बिना कीटाणुओं के पनपने के लिए नमी वाला माहौल नहीं मिलता है।

एक मान्यता यह है कि खतना किए गए लिंग का मुंड कम संवेदनशीलल होता है, इसलिए पुरुष वीर्यपात से पहले अधिक समय तक संभोग (सेक्स) कर सकते हैं।
http://www.lovematters.info/hindi/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B6%20%E0%A4%B7%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B0/%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE

चाहे आपका खतना हुआ हो या नहीं, आपको रोज़ अपने लिंग को साफ करना चाहिए।
यदि आपका खतना नहीं हुआ है, तो लिंग की आगे की चमड़ी को धीरे से पीछे खिसकाएं और गुनगुने पानी से लिंग मुंड को धोएं। लिंग के दंड के लिए साबुन का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन आगे की चमड़ी के नीचे सफाई के लिए साबुन का प्रयोग करना ठीक नहीं होगा।

साबुन से बैक्टीरिया के प्राकृतिक संतुलन में गड़बड़ी आ सकती है और जिसके कारण आपको फफूंदी वाले संक्रमण (फंगल इन्फेक्षन) होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि आप अपने लिंग मुंड को साबुन से धोने का फैसला करते हैं, तो किसी हल्की सुगंध वाले सौम्य साबुन का प्रयोग करें।

स्मेग्मा को धोकर साफ करना ज़रूरी है। यह, सफेद या पीलापन लिए चिपचिपा पदार्थ होता है, जो त्वचा से निकलने वाले तेल और मृत त्वचा कोशिकाओं से बना होता है। इसका बनना पूरी तरह स्वाभाविक है, लेकिन यह आपके लिंग की आगे की चमड़ी के नीचे जम सकता है, बदबू फैला सकता है, खुजली और संक्रमण कर सकता है।
http://www.facebook.com/l.php?u=http%3A%2F%2Fwww.lovematters.info%2Fhindi%2F%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B6%2520%25E0%25A4%25B7%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25B0%2F%2520%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%2597%2F%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AB-%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25AB%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2588&h=NAQFWxYPK&s=1

सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को नंगा पैदा किया है, इसका मतलब यह तो हरगिज़ नहीं है कि मनुष्य कपड़े ना पहने, नंगा ही जिये, नंगा ही मरे, गंदा पैदा होता है, गंदा ही रहे। नाखून और बाल आदि भी न कटवाए।

जिम्बाब्वे में पुरष सांसदों का खतना होगा
डरबन। जिम्बाब्वे के पुरष सांसदों का खतना किया जाएगा। ऎसा एच.आई.वी और एड्स की रोकथाम के अभियान के तहत किया जाएगा। उप प्रधानमंत्री थोकोजानी खुपे ने जानकारी देते हुए बताया कि 150 सदस्यौं वाली जिम्बाब्वे की संसद के पुरूष सदस्यों और शहरी एवं ग्रामीण परिषदों के पुरूष सदस्यों को एक छोटे ऑपरेशन से गुजरना होगा। थोकोजानी ने बताया कि देश में एच.आई.वी के प्रसार को रोकने के मकसद से सरकार ने यह योजना बनाई है। शोधकर्ताओं के अनुसार जिन पुरूषों का खतना होता है, उनमें एड्स होने की संभावना आठ गुना तक कम हो जाती है

हिंदुओं के मुकाबले मुसलमान महिलाओं में कैंसर कम
अध्ययन में पाया गया कि 30 से 69 वर्ष के पुरुषों की मौत की मुख्य वजह मुंह, पेट और फेफड़े का कैंसर था. वहीं औरतों की मौत की मुख्य वजह गर्भाशय, पेट और स्तन का कैंसर था.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/03/120328_cancer_mortality_sdp.shtml

Posted by | Arya Samaj
Arya Samaj - ख़तना और पेशाब
http://satishchandgupta.blogspot.com/2010/09/arya-samaj_17.html

Thursday, December 3, 2015

तो सीता को राम को छोड़ देना चाहिए था?


क्या अपनी पत्नी को ‘पवित्र’ साबित करने के लिए उसे आग पर बैठने को मजबूर करना डिमॉक्रेसी है? अगर हमारी सरकार इसे डिमॉक्रेसी मानती है और इस पर नाज करती है, तो ऐसी डिमॉक्रेसी सरकार को ही मुबारक। हमारा काम इसके बगैर भी चल जाएगा। कल लोकसभा के शरद सत्र को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह देश तो शुरू से डेमोक्रेटिक रहा है। अपनी बात का सबूत उन्होंने इस रूप में दिया कि श्रीराम ने अपनी प्रजा के एक शख्स के कहने पर अपनी प्राणों से प्यारी पत्नी को आग पर बिठा दिया। 

क्या मंत्री जी के मुताबिक, सीता को आग पर बैठाना एक आदर्श लोकतांत्रिक कृत्य है? क्या आज भी किसी महिला पर कोई उंगली उठाए तो उसे अपने ‘पवित्र’ होने की परीक्षा देनी पड़ेगी? राम के दौर में यह परीक्षा आग में बैठकर दी जाती थी तो आज इसकी शक्ल क्या होगी? क्या जिस व्यवस्था में यह सब करना जरूरी होगा, उसे डिमॉक्रेसी कहा जाएगा?

मंत्री महोदय, यह डिमॉक्रेसी नहीं, महिला का अपमान है, उस पर अत्याचार है। संसार के किसी भी लोकतंत्र में इसे दंडनीय कृत्य ही समझा जाएगा। इस घटना को डिमॉक्रेसी का जामा पहनाकर आप क्या महिलाओं की हालत और खराब करने की दिशा में नहीं बढ़ रहे हैं?

ध्यान रहे, अग्निपरीक्षा के बाद भी सीता को एक परपुरुष द्वारा अपहृत किए जाने के उस कथित ‘कलंक’ से मुक्ति नहीं मिली थी। कुछ ही समय बाद उनके ‘प्राणों से प्यारे’ पति ने उन्हें गर्भवती अवस्था में ही घने जंगल में छुड़वा दिया था। अब से पंद्रह सदी पहले महाकवि भवभूति ने अपनी रचना उत्तर रामचरितम में लिखा- ‘वनवासिनी सीता का विलाप सुनकर हिरनियों ने आधे चबाए ग्रास मुंह से गिरा दिए। मोरों ने नाचना छोड़ दिया और नदियों ने अपनी लहरें रोक लीं।’

इसी ग्रंथ में सीता आगे थोड़ा स्थिरचित्त होने के बाद विदा ले रहे लक्ष्मण से कहती हैं- ‘जाकर उस राजा से कहना कि एक प्रजा की तरह मेरा भी पालन करे।’ जो लोग आज आमिर खान के खिलाफ ऐसे जोक शेयर कर रहे हैं कि ‘अगर किरण राव अपने पति के साथ सुरक्षित नहीं हैं तो देश से पहले उन्हें अपने पति को छोड़ देना चाहिए’, वे क्या उसी बुलंदी के साथ यह भी कहेंगे कि सीता को इतनी यातनाओं से गुजरने के बजाय अपने पति को छोड़ देना चाहिए था?

POSTED by पूनम पांडे : http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nonstop/

Sunday, November 29, 2015

साजिशों की दास्तान (आपरेशन अक्षरधाम)

अवनीश कुमार
“ आपरेशन अक्षरधाम ” हमारे राज्यतंत्र और समाज के भीतर जो कुछ गहरे सड़ गल चुका है, जो भयंकर अन्यापूर्ण और उत्पीड़क है, का बेहतरीन आलोचनात्मक विश्लेषण और उस तस्वीर का एक छोटा सा हिस्सा है।
24 सितंबर 2002 को  हुए गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमले को अब करीब 13 साल बीत चुके हैं। गांधीनगर के सबसे पॉश इलाके में स्थित इस मंदिर में शाम को हुए एक ‘आतंकी’ हमले में कुल 33 निर्दोष लोग मारे गए थे। दिल्ली से आई एनएसजी की टीम ने वज्रशक्ति नाम से आपरेशन चलाकर दो फिदाईनो को मारने का दावा किया था। मारे गए लोगों से उर्दू में लिखे दो पत्र भी बरामद होने का दावा किया गया जिसमें गुजरात में 2002 में राज्य प्रायोजित दंगों में मुसलमानों की जान-माल की हानि का बदला लेने की बात की गई थी। बताया गया कि दोनो पत्रों पर तहरीक-ए-किसास नाम के संगठन का नाम लिखा था।
इसके बाद राजनीतिक परिस्थितियों में जो बदलाव आए और जिन लोगों को उसका फायदा मिला यह सबके सामने है और एक अलग बहस का विषय हो सकता है। इस मामले में जांच एजेंसियों ने 6 लोगों को आतंकियों के सहयोगी के रूप में गिरफ्तार किया था जो अंततः सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूरी तरह निर्दोष छूट गए। यह किताब मुख्य रूप से जिन बिंदुओं पर चर्चा करती है उनमें पुलिस, सरकारी जांच एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों तथा निचली अदालतों और उच्च न्यायालय तक की कार्यप्रणालियों और सांप्रदायिक चरित्र का पता चलता है। यह भी दिखता है कि कैसे राज्य इन सभी प्रणालियों को हाइजैक कर सकता है और किसी एक के इशारे पर नचा सकता है।
आपरेशन अक्षरधाम’ मुख्य रूप से उन सारी घटनाओं का दस्तावेजीकरण और विश्लेषण है जो एक सामान्य पाठक के सामने उन घटनाओं से जुड़ी कड़ियों को खोलकर रख देता है। यह किताब इस मामले के हर एक गवाह, सबूत और आरोप को रेशा-रेशा करती है। मसलन इस ‘आतंकी’ हमले के अगले दिन केंद्रीय गृहमंत्रालय ने दावा किया कि मारे गए दोनों फिदाईन का नाम और पता मुहम्मद अमजद भाई, लाहौर, पाकिस्तान और हाफिज यासिर, अटक पाकिस्तान है। जबकि गुजरात पुलिस के डीजीपी के चक्रवर्ती ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के दावे से अपनी अनभिज्ञता जाहिर की और कहा कि उनके पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
इसी तरह पुलिस के बाकी दावों जैसे फिदाईन मंदिर में कहां से घुसे, वे किस गाड़ी से आए और उन्होने क्या पहना था, के बारे में भी अंतर्विरोध बना रहा। पुलिस का दावा और चश्मदीद गवाहों के बयान विरोधाभाषी रहे पर आश्चर्यजनक रूप से पोटा अदालत ने इन सारी गवाहियों की तरफ से आंखें मूंदे रखी।
चूंकि यह एक आतंकी हमला था इसलिए इसकी जांच ऐसे मामलों की जांच के लिए विशेष तौर पर गठित आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) को सौंपी गई। लेकिन इसमें तब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई जब तक कि एक मामूली चेन स्नेचर समीर खान पठान को पुलिस कस्टडी से निकालकर उस्मानपुर गार्डेन में एक फर्जी मुठभेड़ में मार नहीं दिया गया। अब इस मामले में कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जेल में हैं। इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट में लिखा गया – “कि पठान मोदी और अन्य भाजपा नेताओं को मारना चाहता था। उसे पाकिस्तान में आतंकवाद फैलाने का प्रशिक्षण देने के बाद भारत भेजा गया था। यह ठीक उसके बाद हुआ जब पेशावर में प्रशिक्षित दो पाकिस्तानी आतंकवादी अक्षरधाम मंदिर पर हमला कर चुके थे।“ मजे की बात ये थी इसके पहले अक्षरधाम हमले के सिलसिले में 25 सितंबर 2002 को जी एल सिंघल द्वारा लिखवाई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट में मारे गए दोनो फिदाईन के निवास और राष्ट्रीयता का कहीं कोई जिक्र नहीं था!
28 अगस्त 2003 की शाम को साढ़े 6 बजे एसीपी क्राइम ब्रांच अहमदाबाद के दफ्तर पर डीजीपी कार्यालय से फैक्स आया जिसमें निर्देशित किया गया था कि अक्षरधाम मामले की जांच क्राइम ब्रांच को तत्काल प्रभाव से एटीएस से अपने हाथ में लेनी है। इस फैक्स के मिलने के बाद एसीपी जीएल सिंघल तुरंत एटीएस आफिस चले गए जहां से उन्होने रात आठ बजे तक इस मामले से जुड़ी कुल 14 फाइलें लीं। इसके बाद शिकायतकर्ता से खुद ब खुद वे जांचकर्ता भी बन गए और अगले कुछ ही घंटों में उन्होने अक्षरधाम मामले को हल कर लेने और पांच आरोपियों को पकड़ लेने का चमत्कार कर दिखाया। इस संबंध में जीएल सिंघल का पोटा अदालत में दिए बयान के मुताबिक – “एटीएस की जांच से उन्हें कोई खास सुराग नहीं मिला था और उन्होने पूरी जांच खुद नए सिरे से 28 अगस्त 2003 से शुरू की थी।“ और इस तरह अगले ही दिन यानी 29 अगस्त को उन्होने पांचों आरोपियों को पकड़ भी लिया। पोटा अदालत को इस बात भी कोई हैरानी नहीं हुई।
परिस्थितियों को देखने के बाद ये साफ था कि पूरा मामला पहले से तय कहानी के आधार पर चल रहा था। जिन लोगों को 29 अगस्त को गिरफ्तार दिखाया गया उन्हें महीनों पहले से क्राइम ब्रांच ने अवैध हिरासत में रखा था, जिसके बारे में स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन भी किया था। जिन लोगों को “गायकवाड़ हवेली” में रखा गया था वे अब भी उसकी याद करके दहशत से घिर जाते हैं। उनको अमानवीय यातनाएं दी गईं, जलील किया गया और झूठे हलफनामें लिखवाए गए। उन झूठे हलफनामों के आधार पर ही उन्हें मामले में आरोपी बनाया गया और मामले को हल कर लेने का दावा किया गया।
किताब में इस बात की विस्तार से चर्चा है कि जिन इकबालिया बयानों के आधार पर 6 लोगों को आरोपी बना कर गिरफ्तार किया गया था, पोटा अदालत में बचाव पक्ष की दलीलों के सामनें वे कहीं नहीं टिक रहे थे। लेकिन फिर भी अगर पोटा अदालत की जज सोनिया गोकाणी ने बचाव पक्ष की दलीलों को अनसुना कर दिया तो उसकी वजह समझने के लिए सिर्फ एक वाकए को जान लेना काफी होगा। –“मुफ्ती अब्दुल कय्यूम को लगभग डेढ़ महीने के ना काबिल-ए-बर्दाश्त शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के बाद रिमांड खत्म होने के एक दिन पहले 25 सितंबर को पुरानी हाईकोर्ट नवरंगपुरा में पेश किया गया जहां पेशी से पहले इंस्पेक्टर वनार ने उन्हें अपनी आफिस में बुलाया और कहा कि वह जानते हैं कि वह बेकसूर हैं लेकिन उन्हें परेशान नहीं होना चाहिए, वे उन्हें बचा लेंगे। वनार ने उनसे कहा कि उन्हें किसी अफसर के सामने पेश किया जाएगा जो उनसे कुछ कागजात पर हस्ताक्षर करने को कहेंगे जिस पर उन्हें खामोशी से अमल करना होगा। अगर उन्होने ऐसा करने से इंकार किया या हिचकिचाए तो उन्हें उससे कोई नहीं बचा पाएगा क्योंकि पुलिस वकील जज सरकार अदालत सभी उसके हैं।”
दरअसल सच तो ये था कि बाकी सभी लोगों के साथ ऐसे ही अमानवीय पिटाई और अत्याचार के बाद कबूलनामें लिखवाए गए थे और उनको धमकियां दी गईं कि अगर उन्होने मुंह खोला तो उनका कत्ल कर दिया जाएगा। लेकिन क्राइम ब्रांच की तरफ से पोटा अदालत में इन इकबालिया बयानों के आधार पर जो मामला तैयार किया गया था, अगर अदालत उस पर थोड़ा भी गौर करती या बचाव पक्ष की दलीलों को महत्व देती तो इन इकबालिया बयानों के विरोधाभाषों के कारण ही मामला साफ हो जाता, पर शायद मामला सुनने से पहले ही फैसला तय किया जा चुका था। किताब में इन इकबालिया बयानों और उनके बीच विरोधाभाषों का सिलसिलेवार जिक्र किया गया है।
इस मामले में हाइकोर्ट का फैसला भी कल्पनाओं से परे था। चांद खान, जिसकी गिरफ्तारी जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने अक्षरधाम मामले में की थी, के सामने आने के बाद गुजरात पुलिस के दावे को गहरा धक्का लगा था। जम्मू एवं कश्मीर पुलिस के अनुसार अक्षरधाम पर हमले का षडयंत्र जम्मू एवं कश्मीर में रचा गया था जो कि गुजरात पुलिस की पूरी थ्योरी से कहीं मेल नहीं खाता था। लेकिन फिर भी पोटा अदालत ने चांद खान को उसके इकबालिया बयान के आधार पर ही फांसी की सजा सुनाई थी।
लेकिन इस मामले में हाइकोर्ट ने अपने फैसले में लिखा – “वे अहमदाबाद, कश्मीर से बरेली होते हुए आए। उन्हें राइफलें, हथगोले, बारूद और दूसरे हथियार दिए गए। आरोपियों ने उनके रुकने, शहर में घुमाने और हमले के स्थान चिन्हित करने में मदद की।“ जबकि अदालत ने आरोपियों का जिक्र नहीं किया। शायद इसलिए कि आरोपियों के इकबालियाय बयानों में भी इस कहानी का कोई जिक्र नहीं था। जबकि पोटा अदालत में इस मामले के जांचकर्ता जीएल सिंघल बयान दे चुके थे कि उनकी जांच के दौरान उन्हें चांद खान की कहीं कोई भूमिका नहीं मिली थी। लेकिन फिर भी हाइकोर्ट ने असंभव सी लगने वाली इन दोनो कहानियों को जोड़ दिया था और इस आधार पर फैसला भी सुना दिया।
इसी तरह हाइकोर्ट के फैसले में पूर्वाग्रह और तथ्य की अनदेखी साफ नजर आती है जब कोर्ट ये लिखती है कि “27 फरवरी 2002 को गोधरा में ट्रेन को जलाने की घटना के बाद, जिसमें कुछ मुसलमानों ने हिंदू कारसेवकों को जिंदा जला दिया था, गुजरात के हिंदुओं में दहशत फैलाने और गुजरात राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने की आपराधिक साजिश रची गई।” जबकि गोधरा कांड के मास्टरमाइंड बताकर पकड़े गए मौलाना उमर दोषमुक्त होकर छूट चुके हैं और जस्टिस यूसी बनर्जी कमीशन, जिसे ट्रेन में आग लगने के कारणों की तफ्तीश करनी थी, ने अपनी जांच में पाया था कि आग ट्रेन के अंदर से लगी थी। इसी तरह हाइकोर्ट ने बहुत सी ऐसी बातें अपने फैसले में अपनी तरफ से जोड़ दीं, जो न तो आरोपियों के इकबालिया बयानों का हिस्सा थी और न ही जांचकर्ताओं ने पाईं। और इस तरह पोटा अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए मुफ्ती अब्दुल कय्यूम, आदम अजमेरी, और चांद खान को फांसी, सलीम को उम्र कैद, मौलवी अब्दुल्लाह को दस साल और अल्ताफ हुसैन को पांच की सजा सुनाई।
इसी तरह हाइकोर्ट ने इन आरोपों को कि ये षडयंत्र सउदी अरब में रचा गया और आरोपियों ने गुजरात दंगों की सीडी देखी थी और आरोपियों ने इससे संबंधित पर्चे और सीडी बांटीं जिसमें दंगों के फुटेज थे, को जिहादी साहित्य माना। सवाल ये उठता है कि अगर कोई ऐसी सीडी या पर्चा बांटा भी गया जिसमें गुजरात दंगों के बारे में कुछ था तो उसे जिहादी साहित्य कैसे माना जा सकता है। हालांकि अदालतें अपने फैसलों में अपराध की परिभाषा भी देती हैं उसके आधार पर किसी कृत्य को आपराधिक घोषित करती हैं पर इस फैसले में सउदी अरब में रह रहे आरोपियों को जिहादी साहित्य बांटने का आरोपी तो बताया गया है पर जिहादी साहित्य क्या है इसके बारे में कोई परिभाषा नहीं दी गई है।
आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने क्रमवार 9 बिंदुओं पर अपना विचार रखते हुए सभी आरोपियों को बरी किया। सर्वोच्च न्यायलय ने माना कि इस मामले में जांच के लिए अनुमोदन पोटा के अनुच्छेद 50 के अनुरूप नहीं था। सर्वोच्च न्यायलय ने यह भी कहा कि आरोपियों द्वारा लिए गए इकबालिया बयानों को दर्ज करने में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय नियमों की अनदेखी की गई। जिन दो उर्दू में लिखे पत्रों को क्राइम ब्रांच ने अहम सबूत के तौर पर पेश किया था उन्हें भी सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। फिदाईन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए अदालत ने कहा – “जब फिदाईन के सारे कपड़े खून और मिट्टी से लथपथ हैं और कपड़ों में बुलेट से हुए अनगिनत छेद हैं तब पत्रों का बिना सिकुड़न के धूल-मिट्टी और खून के धब्बों से मुक्त होना अस्वाभाविक और असंभ्व है।” इस तरह सिर्फ इकबालिया बयानों के आधार पर किसी को आरोपी मानने और सिर्फ एक आरोपी को छोड़कर सभी के अपने बयान से मुकर जाने के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने सारे आरोपियों को बरी कर दिया।
हालांकि ये सवाल अब भी बाकी है कि अक्षरधाम मंदिर पर हमले का जिम्मेदार कौन है। इसलिए लेखकद्वय ने इन संभावनाओं पर भी चर्चा की है और खुफिया विभाग के आला अधिकारियों के हवाले से वे ये संभावना जताते हैं कि इस हमले की राज्य सरकार को पहले से जानकारी थी। फिदाईन हमलों के जानकार लोगों के अनुभवों का हवाला देते हुए लेखकों ने यह शंका भी जाहिर की है क्या मारे गए दोनो शख्स सचमुच फिदाईन थे? इसके साथ ही इस हमले से मिलने वाले राजनीतिक फायदे और समीकरण की चर्चा भी की गई है।
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि किताब में कहीं भी कोरी कल्पनाओं का सहारा नहीं लिया गया है। इस पूरे मुकदमें से जुड़े एक-एक तथ्य को बटोरने में लेखकों को लंबा समय लगा है। मौके पर जा कर की गई पड़तालों, मुकदमें में पेश सबूतों, गवाहियों, रिपोर्टों और बयानों की बारीकी से पड़ताल की गई है और इन सारी चीजों को कानून सम्मत दृष्टिकोण से विवेचना की गई है। यह किताब, राज्य सरकार की मशीनरी और खुफिया एजेंसियों, अदालतों तथा राजनीतिक महत्वाकांक्षा की साजिशों की एक परत-दर-परत अंतहीन दास्तान है।
आपरेशन अक्षरधाम”
(उर्दू हिंदी में एक साथ प्रकाशित)
लेखक – राजीव यादव, शाहनवाज आलम
प्रकाशक – फरोश मीडिया
डी-84, अबुल फजल इन्क्लेव
जामिया नगर, नई दिल्ली-110025
 POSTED BY : अवनीश कुमार

Saturday, November 28, 2015

श्री राम चन्द्र राम की थी कई पत्नियाँ : वाल्मीकि रामायण



रामायण तुलसीदास द्वारा रचित एक छोटी किन्तु सरल कहानी है, जिसमे अयोध्यापति श्री रामचन्द्र जी के जीवन एवं राजकाज की समस्त एवं सरल शब्दों में व्याख्या की गयी है । इसमें कुछ भी सनसनीखेज नहीं है क्योंकि ये अत्यंत ही सरल भाषा में लिखी गयी है। इसके अनुसार अयोध्यापति श्री राम महाराज दशरथ के पुत्र एवं अयोध्या नगरी के प्रजापालक थे जिसे आज हम और आप बनारस के नाम से जानते है।

देश की अधिकतर पुस्तको में सिर्फ यहीं तथ्य लिखा गया है के अयोध्यापति श्री राम का विवाह केवल सीता नामक महिला से हुआ था। विवाह के उपरान्त घरेलो वजह से उन्हें महाराज दशरथ ने चौदह वर्ष की अवधि तक वनों में निर्वासित जीवन जीने का कठोर आदेश दिया था । वनवास के दौरान उनके साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मन एवं पत्नी सीता थी। जहाँ किसी बात से नाराज़ होकर लंका पति या लंका के नरेश रावण ने उनकी पत्नी सीता का जंगल से अपहरण कर लिया था। तब वहां जंगल में वानर सेना के सेनापति हनुमान की सहायता से उन्होंने रावण को पराजित करके अपनी पत्नी सीता को फिर से प्राप्त कर लिया था। तत्पश्चात श्री राम अपने भाई लक्ष्मन एवं पत्नी सीता के साथ चौदह बर्ष के वनवास के पश्चात् अयोध्या नगरी वापिस पहुंचे। जबकि जो वर्णन तुलसीदास द्वारा रचित रामायण में किया गया है वो लगभग 2000 वर्ष पूर्व वाल्मीकि द्वारा लिखी गयी रामायण से एकदम अलग है।

वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में कई स्थानों पर लिखा गया है के अयोध्यापति श्री राम की सीता के अलावा कई और भी पत्निया थी। परन्तु श्री राम अपनी पहली पत्नी सीता से अत्यधिक प्रेम करते थे। इतना ही नहीं वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में अयोध्यापति श्री राम की निजी जिंदगी से सम्बंधित कई और भी राज़ लिखे हुए है। वाल्मीकि ने श्री राम को एक आम आदमी से अयोध्या का राजा बनते हुए वर्णित किया है जबकि तुसलीदास द्वारा रचित रामायण में उन्हें अयोध्यापति से बढ़कर स्वयं भगवान बताया गया है। महान कवी तुलसीदास ने उन्हें बड़ी सुन्दरता एवं चतुराई के साथ साधारण मनुष्य से हटकर एक भगवान के रूप में समाज के सामने चित्रित एवं वर्णित किया था।

श्री स़ी० आर० श्रीनिवास अयंगर ने वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का अनुवाद करते हुए लिखा है की ”अयोध्यापति श्री राम की पहली पत्नी होने के कारण सीता उनकी रानी थी परन्तु श्री राम की सीता के अलावा भी कई और पत्निया थी, यही नहीं उनकी कई सेविकाए एवं सेवक भी थे। जो सब समय समय पर उनकी यौन इच्छा की पूर्ति किया करते थे। उस दौर में ऊँचे लोगो में (खासतौर से राजाओ में) यौन सुख की अविलम्ब प्राप्ति के लिए कई कई पत्निया रखने का रिवाज था (अयोध्या कांडम अध्याय 8, पृष्ट 28) जिसे दोष नहीं समझा जाता था।”

वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्यापति श्री राम का पहली पत्नी सीता से विवाह एक आदर्श विवाह नहीं था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्यापति श्री राम की कई पत्नियाँ थी जो भिन्न भिन्न प्रकार की क्रीडाओ के लिए उनका साथ दिया करती थी, जिनमे यौन क्रीड़ाये भी शामिल थी। वाल्मीकि रामायण में एक स्थान पर लिखा गया है के स्वयं अयोध्यापति श्री राम महाराज दशरथ की जैविक संतान नहीं थे क्योंकि उन्हें कई अन्य लोगो की जैविक संतान माना गया था। परन्तु महाराज दशरथ ने ये तथ्य जानते हुए भी की श्री राम उनका अपना पुत्र नहीं है उन्हें अयोध्या का प्रजापालक नियुक्त किया था। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में इसका भी वर्णन किया गया है के श्री राम ने वनवास से लोटने के पश्चात कैसे अपना जीवन बिताया था।

वाल्मीकि ने लिखा है की उनका खुद का घर अशोक पार्क नामक स्थान पर था जहाँ उनकी पसंद की हर एक वस्तु उपलब्ध थी। श्री राम को खाने में जो जो पसंद था वो सब तो वहां पर उपलब्ध रहता ही था, वहां पर फल फूल, मांस और मदिरा का भी उचित प्रबंध किया जाता था। प्रत्येक उपलब्ध होने वाली खाद्य सामग्री का सेवन स्वयं अयोध्यापति श्री राम अपने घर पर किया करते थे। वाल्मीकि ने आगे लिखा है की कभी कभी स्वयं उनकी पहली पत्नी सीता भी मांस मदिरा का सेवन करने में उनका साथ दिया करती थी।

यहीं नहीं वें दोनों नृत्य के भी शौक़ीन थे इसके लिए उन्होंने अपने घर में बहुत सारी नृतकियों का उचित प्रबंध किया हुआ था। कई बार स्वयं पति पत्नी में मदिरा के सेवन को लेकर प्रतियोगिता भी होती थी। पति पत्नी दोनों एक साथ अप्सराओं, नृतकियों, किन्नरों आदि के नृत्य का भी भरपूर आनंद उठाते थे। कई बार स्वयं अयोध्यापति श्री राम पिने में इतने मस्त हो जाया करते थे के वो स्वयं उठकर नाचने वाली सुन्दर एवं नग्न महिलाओ के मध्य में जा बैठते थे। जो नृतकी या नृतक उन्हें प्रसन्न कर देता था उसे स्वयं अयोध्यापति श्री राम हीरे जवाहरात से जडित आभूषण उपहार स्वरुप दिया करते थे।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्यापति श्री राम की छवि पुरुषों के मध्य महिलाओ के प्रिंस की बन गयी थी। अयोध्यापति श्री राम की ये क्रीडाएं उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गयी थी। जिसे कोई दूसरा व्यक्ति नहीं रोक सकता था केवल वें स्वयं ही इसे रोक सकते थे। बहरहाल, आज जिस रामायण की लोग पूजा करते है वो महान कवी तुलसीदास द्वारा रचित एक काव्य ग्रन्थ है। जिसमे अयोध्यापति श्री राम को स्वयं इश्वर बताया गया है। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अस्तित्व के प्रमाण ना मिलने की वजह से उसे पूजने योग्य नहीं माना गया था। जिस कारण से लोग उसके अनुसार पूजा अर्चना नहीं कर सकते।
धन्यवाद।

Posted by : अब्दुल कादिर गौर ”राही अनजान ” अलीगढ 

Thursday, November 26, 2015

26/11 हादसे में सबसे उलझी कड़ी है शहीद हेमंत करकरे की हत्या-उन्होंने मालेगाँव बम ब्लॉस्ट की परतें उधेड़कर मुंबई सहित कई सुरक्षा एजेंसियों को बेनकाब किया था


26/11 हादसे में सबसे उलझी कड़ी है शहीद हेमंत करकरे की हत्या-उन्होंने मालेगाँव बम ब्लॉस्ट की परतें उधेड़कर मुंबई सहित कई सुरक्षा एजेंसियों को बेनकाब किया था

26/11 ये वो काला दिन है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता और न ही इसका जख़्म कभी भर सकता है | वैसे तो इस मुद्दे पर अब तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है, दोषियों को सज़ा भी मिल चुकी है पर कुछ सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब अब शायद ही कभी मिल पाये | इस हादसे में सबसे उलझी कड़ी है शहीद हेमंत करकरे की हत्या | सबसे बड़ा सवाल कि विजय सालस्कर और अशोक कामटे जो कि एक दूसरे के प्रतिद्वंदी थे, एक दूसरे को फूटी आँख नहीं देख सकते थे, इन दोनों में होड़ थी कि कौन अधिक से अधिक एनकाउंटर अपने नाम करवाता है वे दोनों एक साथ कैसे आये ?

न०-2 शहीद हेमंत करकरे जो कि उस समय अंधाधुंध फेक एनकाउंटर करने के कारण इन दोनों अधिकारियों को बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे बल्कि इनपर कार्यवाई करना चाहते थे वे इन दोनों के साथ कैसे आ गये, उन्हों ने इनपर भरोसा कैसे कर लिया ? जबकि ऐसे मौके पर स्ट्रैजी यह होनी चाहिए थी कि तीनों ऑफिसर तीन अलग अलग टुकड़ियों की कमान लेकर अलग अलग दिशाओं से मोर्चा लेते |

3- मैने देखा है खुद मेरा अनुभव है एक बार गोवा में मेरी गाड़ी का ऐक्सीडेंट हो गया, लगभग डेढ़ सौ मीटर पे पुलिस चौकी थी, पुलिस आई उसने सबसे पहले पूछा किसी को चोट तो नहीं आई, उसके बाद रोड को दोनों तरफ से बंद करके सड़क की चौड़ाई नापी, घटना स्थल से इलेक्ट्रिक पोल की दूरी नापी, नज़दीकी घुमाव, चौराहा, और सिगनल की दूरी दर्ज की यहाँ तक कि दोनों गाड़ियों की लंबाई भी नापी फिर गाड़ी सड़क के किनारे लगाकर हम दोनों के बयान दर्ज किये, एनलाइज़र लगाकर एल्कोहल का पता लगाया तब कहीं जाकर उनका पंचनामा पूरा हुआ | आपने भी देखा होगा कि यदि कहीं कोई छोटी सी भी घटना हो जाये तो सर्वप्रथम पुलिस उस जगह को सील कर देती है, वहाँ मौजूद और पास पड़ोस के लोगों का बयान दर्ज करती है, हर छोटी से छोटी चीज़ को जब्त कर लेती है, हर सामान में फिंगर प्रिंट या फुटमार्क ढूँढती है | पर यहीं से गंभीर सवाल उठता है कि एस्कॉटलैंडयार्ड के बाद विश्व में सबसे तेज़ तर्रार मानी जाने वाली हमारी मुंबई पुलिस अपने बरिष्ठ IAS अधिकारी तत्कलीन ATF चीफ हेमंत करकरे की हत्या को इतना सरसरी तौर पर लेती है कि बुलेट प्रूफ जैकेट गवां देती है, आख़िर इतनी बड़ी चूक कैसे संभव है ? फिर उसके बाद यही मुंबई पुलिस करकरे की विधवा को हर बार ग़लत जानकारियाँ देकर गुमराह करती है, आख़िर क्यूँ ?

यह बात सर्व विदित है कि करकरे लीक से हटकर काम करने वाले एक मात्र ईमानदार अधिकारी थे, यह भी सब को पता है कि उन्होंने मालेगाँव बम ब्लॉस्ट की परतें उधेड़कर मुंबई सहित कई शुरक्षा एजेंसियों को बेनकाब किया था, और असली आरोपियों को जेल भेजा था | सबसे पहले उन्होंने ही सेना में कार्यरत आतंकी कर्नल पुरोहित को पकड़ा, और उन्होंने ही आतंकवाद में संघ की संलिप्तता को उजागर किया उसके बावजूद उनकी हत्या को इतने हल्के में क्यूँ लिया गया यह समझ से परे है |

इतने सारे सवालों और इतनी चूक के बाद सवाल उठता है कि इससे फायदा या नुकसान किसका हुआ ? तो नुकसान मेरी नज़र में सबसे अधिक मुंबई की जनता का हुआ जिसके बेगुनाह लोग मारे गये, देश का हुआ कि उसने करकरे जैसा ईमानदार ऑफिसर खो दिया, और तत्कालीन कांग्रेस सरकार का हुआ जिसे अपना केंद्रीय गृहमंत्री (शिवराज पाटिल) तत्कालीन मुख्यमंत्री (विलाश राव देशमुख) हटाना पड़ा | उन बेगुनाह मुसलमानों का नुकसान हुआ जिन्हें पुलिस ने फर्जी आरोपों में बंद कर रखा था और वह करकरे से न्याय की उम्मीद लगा बैठे थे |
26/11 के हमलावर पाकिस्तानी थे इसमें कोई शक नहीं, थोड़ी ना नुकुर के बाद पाकिस्तान ने भी मान ही लिया पर स्लीपर सेल में कौन कौन थे इसका पता आज तक नहीं चला | एक बात और भी गले नहीं उतरती कि दुनिया की सशक्त नेवी में शुमार होने वाली हमारी भारतीय नेवी कैसे चूक गई, कैसे दस लोग इतना लंबा सफर करके सकुशल अपनी मंजिल तक पहुंच गये | हमारी ख़ुफिया एजेसिंयों कि इसकी कानों कान ख़बर क्यूँ नहीं हुई, कहीं उनके स्लीपर सेल का रोल हमारी शुरक्षा एजेंसियों के लोग ही तो नहीं थे या कहीं हमारी शुरक्षा एजेंसियों ने स्लीपर सेल को बचाने का काम तो नहीं किया ?
सारे नफा नुकसान और तथ्यों को देखने के बाद जो अहम सवाल मन मे आता है वो ये कि आतंकी पाकिस्तान से आये थे या लाये गये थे |
नोट-लेख में उक्त विचार लेखक निजी हैं।

Posted by : अकबर, मुंबई

Wednesday, November 18, 2015

पाकिस्तान के निर्माण में #RSS का हाथ



बड़ा खुलासा पाकिस्तान के निर्माण में #RSS का हाथ ||

पाकिस्तान का निर्माण किसने किया ?

1937 में हिन्दू महासभा के अहमदाबाद-अधिवेशन में खुद सावरकर ने द्विराष्टंवाद के सिद्धान्त का समर्थन किया था। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के लिए प्रस्ताव किया, उससे तीन वर्ष पूर्व ही सावरकर ने हिन्दू और मुसलमान, ये दो अलग-अलग राष्टींयताए! हैं, यह प्रतिपादित किया था। जब दो साम्प्रदायिक ताकतें एक-दूसरे के खिलाफ काम करने लगती हैं, तब दोनों एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होती हैं, और वह होता है आत्मविनाश का। हिन्दू सम्प्रदायवादियों ने ऐसा करके अंग्रेजों और भारत-विभाजन चाहने वाले मुसलमानों को फायदा ही पहु!चाया था। इन महान देशप्रेमियों ने1942 की आजादी के आन्दोलन में तो भाग नहीं ही लिया था, उल्टे ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर यह जानकारी भी दी थी कि हम आन्दोलन का समर्थन नहीं करते हैं। गांधीजी आये, उसके पहले राष्टींय राजनीति का नेतृत्व उनके पास ही था। लेकिन तब भी उन्होंने उन दिनों कोई बडा पराव्म नहीं किया था, यह हम सबकी जानकारी में है ही। गांधी के आने के बाद भी इन लोगों ने राष्टंहित में कोई मामूली काम करने की भी जहमत नहीं उठाई। गुरु गोलवलकर ने ऐडाल्फ हिटलर का अभिनन्दन किया, फिर भी अंग्रेजों ने उनको गिरफ्तार नहीं किया। कारण यह कि अंग्रेज मानते थे कि ये दो कौडी के निकम्मे लोग हैं। ये लोग तो तला पापड भी नहीं तोड सकते ! अंग्रेजों का यह आकलन था उनकी ताकत के बारे में।


भारत-विभाजन के लिए जितने जिम्मेदार मुस्लिम लीग तथा अंग्रेज हैं, उतने ही ये मूर्ख हिन्दुत्ववादी भी जिम्मेदार हैं। आजाद भारत में हिन्दू ही हुकूमत करेंगे, ऐसा शोर मचाकर हिन्दुत्ववादियों ने विभाजनवादी मुसलमानों के लिए एक ठोस आधार दे दिया था। ये विभाजनवादी लोग कहम् मुहम्मद अली जिन्ना, कहम् सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी आदि का भय दिखाकर उनका चालाकीपूर्वक उपयोग करते थे। हिन्दुत्ववादी अभी भी अपनी बेवकूफियों पर गर्व का अनुभव करते हैं। अंग्रेजों को जिन्हें कभी जेल में रखने की जरूरत ही नहीं पडी, उन गोलवलकर की अदृश्य ताकत का उपयोग अंग्रेज गांधीजी के खिलाफ करते थे। शहाबुद्दीन राठौड की भाषा में कहें तो उस समय की राष्टींय राजनीति में यो लोग जयचन्द थे। भारत का विभाजन गांधी के कारण नहीं हुआ है, इन लोगों के कारण हुआ है। गांधीजी ने तो अन्त तक भारत विभाजन का विरोध किया था। गांधीजी ने अन्तिम समय तक इसके लिए जिन्ना के साथ क्रमबद्ध मंत्रणाए! कीं। गांधीजी ने पाकिस्तान को स्टेट माना था। (देखें प्यारेलाल लिखित 'लास्ट फेज') गांधीजी सर्वसमावेशक उदार राष्टंवादी थे। इसीलिए उन्होंने सब कौमों को अपनाया था, मात्र मुसलमानों को ही नहीं। प्रत्येक छोटी अस्मिता व्यापक राष्टींयता में मिल जाय, यह चाहते थे गांधीजी। एक राष्टींय नेता की यह दूरदृष्टि थी। महात्मा का यह वात्सल्य-भाव था सबके प्रति। बदनसीबी से हिन्दू राष्टंवादी यह समझना ही नहीं चाहते थे।

Sunday, November 15, 2015

संघ का खूनी इतिहास


FBP/15-984

संघ का खूनी इतिहास :  

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक विद्वान विचारक हैं राकेश सिन्हा जी , वह "संघ के विशेषज्ञ" के नाम से लगभग हर टीवी चैनल पर बहस करते रहते हैं और संघ के काले को सफेद करते रहते हैं ।कुछ दिन से हर टीवी डिबेट में यह बता रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक कोई आज का पैदा नहीं है बल्कि 1925 का जन्म लिया अनुभवी संगठन है । सोचा संघ के 90 वर्ष के जीवन का पोस्टमार्टम किया जाए ।

1925 कहने का तात्पर्य सिन्हा जी या अन्य संघ के विद्वानों का इसलिए है कि उसी समय इनके एक योद्धा "सावरकर" ने एक संगठन बनाया था जिसका संघ से कोई लेना देना नहीं था सिवाय इसके कि संघ को सावरकर से जहर फैलाने का सूत्र मिला । सावरकर पहले कांग्रेस में थे परन्तु आजादी की लड़ाई में अंग्रेज़ो ने पकड़ कर इनको "आजीवन कैद" की सज़ा दी और इनको "कालापानी" भेजा गया जो आज पोर्ट ब्लेयर( काला पानी) के नाम से जाना जाता है ।संघ के लोगों से अब "वीर" का खिताब पाए सावरकर कुछ वर्षों में ही अंग्रेज़ों के सामने गिड़गिड़ाने लगे और अंग्रेजों से माफी मांग कर अंग्रेजों की इस शर्त पर रिहा हुए कि स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहेंगे और अग्रेजी हुकूमत की वफादारी अदा करते उन्होंने कहा कि " हिन्दुओं को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की बजाए अपनी शक्ति देश के अंदर मुसलमानों और इसाईयों से लड़ने के लिए लगानी चाहिए" ध्यान दीजिये कि तब पूरे देश का हिन्दू मुस्लिम सिख एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी के लिए मर रहा था शहीद हो रहा था और तब ना कोई यह सोच रहा था कि हिन्दू मुस्लिम अलग भी हो सकते हैं , तब यह "वीर" देश में आग लगाने की बीज बो रहे थे , जेल से सशर्त रिहा हुए यह वीर देश की आपसी एकता के विरूद्ध तमाम किताबों को लिख कर सावरकर ने अंग्रेजों को दिये 6 माफीनामे की कीमत चुकाई देश के साथ गद्दारी की और आजाद भारत में नफरत फैलाने की बीज बोते रहे ।

1947 में देश आजाद हुआ और देश की स्वाधीनता संग्राम आंदोलन के ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज बनाने का फैसला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने लिया तो इसी विचार के लोग इसके विरोध में और अंग्रेजों को वफादारी दिखाते राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को जला रहे थे और पैरों से कुचल रहे थे और मौका मिलते ही देश के विभाजन के समय हिन्दू - मुस्लिम दंगों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और मौका मिलते ही देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी क्युँकि सावरकर हेडगेवार की यह सोच थी कि इस देश में "गाँधी" के रहते उनके उद्देश्य पूरे नहीं होंगे। संघ के जन्मदाता हेडगेवार और गोवलकर ने गाँधी जी की हत्या करने के बाद (सरदार पटेल ने स्वीकार किया ) अपने विष फैलाने की योजना में लग गये , तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू राष्ट्र के निर्माण में लग गये और संघ के लोग भविष्य के भारत को ज़हर से भरने के औज़ार बनाने लगे , नेहरू पटेल को उदारवादी कहिए या उनकी मूक सहमति , संघ को पैदा होते ही उसके देश विरोधी क्रिया

कलाप देख कर भी आंखें मूंदे रहे ।इस बीच संघ ने देश की एकता को तोड़ने के सारे वह साहित्यिक हथियार पुस्तकों के रूप में बना लिए जिससे हिन्दू भाईयों की धार्मिक भावना भड़के जिसका मुख्य आधार मुसलमानों से कटुता और मुगलों के झूठे आत्याचार थे , न्यायिक प्रक्रिया में दंड पाए लोगों को भी हिन्दू के उपर किया अत्याचार किया दिखाया गया , शासकीय आदेशों को तोड़ मरोड़कर हिन्दू भाईयों पर हुए अत्याचार की तरह दिखाया गया तथा इतिहास को तोड़ मरोड़कर मुगल शासकों को अत्याचारी बताया कि हिन्दुओं पर ऐसे ऐसे अत्याचार हुआ और औरंगज़ेब को उस अत्याचार का प्रतीक बनाया गया , एक से एक भड़काने वाली कहानियाँ गढ़ी गईं और इसी आधार पर संघी साहित्य लिखा गया पर जिस झूठ को सबसे अधिक फैलाया गया वो था कि " औरंगज़ेब जब तक 1•5 मन जनेऊ रोज तौल नहीं लेता था भोजन नहीं करता था" अब सोचिएगा जरा कि एक ग्राम का जनेऊ 1•5 मन (60 किलो) कितने लोगों को मारकर आएगा ? 60 हजार हिन्दू प्रतिदिन , दो करोड़ 19 लाख हिन्दू प्रति वर्ष और औरंगज़ेब ने 50 वर्ष देश पर शासन किया तो उस हिसाब से 120 करोड़ हिन्दुओं को मारा बताया गया जो आज भारत की कुल आबादी है और तब की आबादी से 100 गुणा अधिक है ।पर ज़हर सोचने समझने की शक्ति समाप्त कर देती है तो भोले भाले हिन्दू भाई विश्वास करते चले गए ।इन सब हथियारों को तैयार करके संघ अपनी शाखाओं का विस्तार करता रहा और हेडगेवार और गोवलकर एक से एक ब्राह्मणवादी ज़हरीली किताबें लिखते रहे प्रचारित प्रसारित करते रहे जिनका आधार "मनुस्मृति" थी और गोवलकर की पुस्तक "बंच आफ थाट" संघ के लिए गीता बाईबल और कुरान के समकक्ष थी और आज भी है।नेहरू के काल में ही अयोध्या के एक मस्जिद में चोरी से रामलला की मुर्ति रखवा दी गई और उसे बाबर से जोड़ दिया गया जबकि बाबर कभी अयोध्या गये ही नहीं बल्कि वह मस्जिद अयोध्या की आबादी से कई किलोमीटर दूर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बनवाई थी , ध्यान रहे कि उसके पहले बाबरी मस्जिद कभी विवादित नहीं रही परन्तु नेहरू आंख बंद किये रहे ।नेहरू के बाद इंदिरा गांधी का समयकाल प्रारंभ हुआ और सख्त मिजाज इंदिरा गांधी के सामने यह अपने फन को छुपाकर लुक छिप कर अपने मिशन में लगे रहे और कुछ और झूठी कहानियाँ गढ़ी और अपना लक्ष्य निर्धारित किया जो "गोमांस , धारा 370 , समान आचार संहिता , श्रीराम , श्रीकृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर , स्वदेशीकरण थे । इंदिरा गांधी ने आपातकाल में जब सभी को जेल में ठूस दिया तो संघ के प्रमुख बाला साहब देवरस , इंदिरा गांधी से माफी मांग कर छूटे और सभी कार्यक्रम छुपकर करते रहे पर इनको फन फैलाने का अवसर मिला इंदिरा गांधी की हत्या के बाद , तमाम साक्ष्य उपलब्ध हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में संघ के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था ।राजीव गांधी बेहद सरल और कोमल स्वभाव के थे और उतने ही विनम्र , जिसे भाँप कर संघियों ने अपना फन निकालना प्रारंभ किया और हिन्दू भाईयों की भावनाओं का प्रयोग करके श्रीराम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद को हवा दे दी और आंदोलन चला दिया , पर पहले नरम अटलबिहारी वाजपेयी को मुखौटे के रूप में आगे किया जिसकी स्विकरोक्ती गोविंदाचार्य ने भी अटलबिहारी वाजपेयी को मुखौटा कह कर की , संघ का दोगलापन उजागर करने की कीमत उनको संघ से बाहर करके की गई और वह आजतक बाहर ही हैं । दूसरी तरफ लालकृष्ण आडवाणी तमाम तैयार हथियारों के सहारे हिन्दू भाईयों को उत्तेजित करते रहे जैसे आज योगी साध्वी और तोगड़िया करते हैं ।राजीव गांधी के पास संसद में इतनी शक्ति थी कि संघ को कुचल देते तो यह देश के लिए सदैव समाप्त हो जाते परन्तु सीधे साधे राजीव गांधी कुटिल दोस्तों की बातों को मानकर गलत ढुलमुल फैसलों से संघ को खाद पानी देते रहे , कारसेवा और शिलान्यास के नाम पर राजीव गांधी का इस तरह प्रयोग किया गया कि संघ को फायदा हो और संघ की रखैल भाजपा ने उसका खूब फायदा उठाया और दो सीट से 88 सीट जीत गई ।फिर वीपी सिंह की सरकार बनी भाजपा और वाम मोर्चा के समर्थन से तथा संघी जगमोहन को भेजकर काश्मीर में आग लगा दिया गया ।

अब सब हथियार और ज़मीन तैयार हो चुकी थी और प्रधानमंत्री नरसिंह राव का समय काल प्रारंभ हुआ जो खुद संघ के प्रति उदार थे , उड़ीसा में पादरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बच्चों को जलाकर मारने के बाद अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद संघ ने इसाईयों के प्रति नफरत फैलाने की नीति छोड़कर सारी शक्तियों को देश के मुसलमानों से नफरत फैलाने में लगा दिया , संघ ने प्रधानमंत्री राव की चुप्पी का फायदा उठाया अपने बनाए झूठे हथियारों से हिन्दू भाईयों के एक वर्ग की भावनाएँ भड़काई और अपने साथ जोड़ लिया । साजिश की संसद और उच्चतम न्यायालय को धोखा दिया और अपने लम्पटों के माध्यम से बाबरी मस्जिद 6 दिसंबर को गिरा दी ।

इसके बाद अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो सारे जन्म स्थान के मंदिर 370 स्वदेशीकरण सब दफन कर दिया गया और हर छोटे बड़े दंगों में शामिल रहा संघ ने साजिश करके गुजरात में इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार कराया और अपने चरित्र के अनुसार एक नायक बनाया। फिर अपने असली रूप चरित्र और सिद्धांतों के अनुसार उसी असली नायक नरेंद्र मोदी को आगे किया और झूठ और फेकमफाक के आधार पर और आज सत्ता पर कब्जा किया।

संघ की यह सब राजनीति उत्तर भारत के प्रदेशों के लिए थी क्युँकि मुगलों का शासन अधिकतर उत्तर भारत में ही था। दक्षिण के राज्य इस जहर से अछूते थे इसलिए अब वहाँ भी एक मुसलमान शासक को ढूढ लिया गया और देश की आजादी से आजतक 67 वर्षों तक निर्विवाद रूप से सभी भारतीयों के हृदय में सम्मान पा रहे महान देशभक्त टीपू सुल्तान आज उसी प्रकिया से गुजर रहे हैं जिससे पिछले सभी मुगल बादशाह गुजर चुके हैं , मतलब हिन्दुओं के नरसंहारक बनाने की प्रक्रिया।और आज उनकी जयंती पर हुए विरोध में एक यूवक की हत्या भी कर दी गई।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि जो जुल्मों और लूट का जो इतिहास प्रमाणित रूप से दुनिया के सामने हैं यह उसकी निंदा भी नहीं करते , इस देश को सबसे अधिक लूटने वाले अंग्रेजों की ये कभी आलोचना नहीं करते जो देश की शान "कोहिनूर" तक लूट ले गये , जनरल डायर की आलोचना और जलियांवाला बाग के शहीदों के लिए इनके आँसू कभी नहीं गिरते , आज संघ के पास शस्त्र सहित कार्यकर्ताओं की फौज है जो शहरों में दहशत फैलाने के लिए सेना की तरह फ्लैगमार्च करते हैं , संविधान की किस धारा के अनुसार उन्हे यह अधिकार है यह पता नहीं । भारतीय इतिहास में जुल्म जो हुआ वह अंग्रेज़ों ने किया और उससे भी अधिक सदियों से सवर्णों ने किया दलितों और पिछड़ों पर , जब चाहा जिसे चाहा सरेआम नंगा कर दिया जो इन्हे दिखाई नहीं देता क्योंकि इनको जुल्मों से मतलब नहीं आपस में लड़ाकर देश मे जहर फैलाकर सत्ता पाने से है और उसके लिए देश टूट भी जाए तो इनसे मतलब नहीं।

इसी लिये कहता हूँ साजिशें करने मे माहिर संघ को "संघमुक्त भारत" करके ही इस देश का भला हो सकता है और यह समय इस अभियान के लिए सबसे उपयुक्त है।

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BJP & RSS भी आतंकवादी है ये लोग पाकिस्तान की ISI से चंदा लेते है


सावधान इंडिया ..........!!!!!!

BJP & RSS भी आतंकवादी है ये लोग पाकिस्तान की ISI से चंदा लेते है

मालेगाँव धमाके के आरोपी दयानन्द पाण्डेय का इकबालिया बयान.
RSS के श्याम आप्टे और मोहन भागवत को मिलता है पाकिस्तानी ISI से पैसा.
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Monday, October 19, 2015

मुद्दा दरअसल गाय है ही नहीं


[ ] देखिये मुद्दा दरअसल गाय है ही नहीं।।
[ ] असल मुद्दा ये है कि कैसे गाय के नाम पर हिन्दुओं की भावनाओं को जगाकर मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाकर दलितों और पिछड़ों की राजनीति को पीटा जाऐ।
[ ] अभी ब्राहमणों को मुसलमान राजनीति से कोई खतरा नहीं है। न ही कोई मुसलमान नेता भाजपा या आरएसएस को देश में कोई गंभीर राजनीतिक चुनौती देने जा रहा है
[ ] दरअसल इस देश में ब्राहमणों को सबसे अधिक खतरा दलित और पिछड़ों की राजनीति से है।
[ ] अभी तक दलितों और पिछड़ों ने ही मुसलमानों की मदद से यूपी, बिहार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश हरियाणा जैसे राज्यों में अपनी राजनीतिक सूझबूझ, अम्बेडकर और लोहिया के विचारों की बदौलत ब्राहमणों को सत्ता से बाहर खदेड़ दिया।।
तो असल खतरा इन्हें दलितों और पिछड़ो की राजनीति से है....मुसलमान राजनीति से नहीं,...इसलिए भाजपा और आरएसएस के ब्राहमण सारे देश में मुसलमानों का डर दिखाकर दलितो और पिछड़ों को हिंदू बनाने पर तुले हैं।
[ ] अब यदि इस देश का दलित और पिछड़ा ब्राह्मणों के भड़काने पर मुसलमानों से नफरत करने लगा तो देश में ब्राहमणों की सत्ता बनी रहेगी। और धीरे धीरे देश से दलितों और पिछड़ों की राजनीति का अंत हो जाएगा।। और फिर देश में ब्राहमण सत्ता एक बार फिर बिना किसी बाधा के शासन करेगी। मनुस्मृति का राज आ जाएगा।
[ ] दलितों पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा। वर्ण व्यवस्था की स्थापना की जाऐगी।
[ ] एक बार फिर जातियों को उनके काम बांट दिए जाएंगे।
[ ] जिसमें अहीर गडरिया जाट गूजर पाल सब लोग दूध का धंधा करेंगे।
[ ] लोध पटेल सिर्फ खेती करेगें।
[ ] कुशवाहा सिर्फ सब्जी उगाएगा।।
[ ] नाई सिर्फ बाल काटेगा।।
[ ] कुम्हार सिर्फ मिट्टी के बर्तन बनाएगा।
[ ] चौरसिया सिर्फ पान बेचेगा।।
[ ] लोहार सिर्फ लोहे की सामग्री बनाएगा।।
[ ] चर्मकार सिर्फ चमड़ा का काम करेगा।
[ ] धोबी सिर्फ कपड़ा धोएगा।।
[ ] यानि जो काम जिस जाति को पहले बांट दिया था वही काम अब वो जाति करेगी।
[ ] दलितों पिछड़ों को पढ़ने का अधिकार नही दिया जाएगा। जो भी दलित पिछड़ा पढ़ाई करने की कोशिश करेगा सीशा पिघलाकर उसके आंख और कान में डाला जाएगा। शंबूक की हत्याऐं होंगी। एकलब्य के अंगूठों को जबरन काटा जाएगा।
[ ] दरअसल...ब्राहमणों की असली लड़ाई तो दलितों और पिछड़ों से....मुसलमान तो महज इस लड़ाई में उनके मोहरें हैं...जिन्हें मारकर या मरवाकर वो असल में दलितों और पिछड़ों की राजनीति की हत्या करना चाहते हैं।।
आप चाहें तो इस पोस्ट को शेयर कर अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचा सकतें हैं, अगर एक व्यक्ति भी समझ जायेगा तो आपका योगदान सराहनीय है।
थैंक्स
(अनाम)

Tuesday, September 29, 2015

ब्राह्मण दिन रात हिन्दू हिन्दू क्यों चिल्लाते रहता है इसका एक सनसनीखेज खुलासा



ब्राह्मण दिन रात हिन्दू हिन्दू क्यों चिल्लाते रहता है इसका एक सनसनीखेज खुलासा >>>
1)बाभन जात को पता है की, जब तक उसने ''हिन्दू'' नाम की चादर, धर्म के नामपर ओढ़ी है, तब तक ही उसका वर्चस्व भारत पर है !!
2)क्योकि बाभन जानता है की बाभन ,बाभन के नाम पर गाव का ''प्रधान'' भी नहीं हो सकता ,''हिन्दू'' के नामपर ''प्रधानमन्त्री'' ,और ''केन्द्रीय मंत्री'' झट से बन जाता है !!
3)बाभन यह भी जनता है की जिस दिन यह ''हिन्दू'' नामकी चादर खुल गयी कुत्ते की मौत मारा जाएगा ,
इसीलिए बाभन दिन रात ''हिन्दू हिन्दू हिन्दू'' रटते रहता है,
४)जब की बाभन खुद यह जानता है की ,''हिंदू'' नाम का कोई धर्म नही है ...हिन्दू फ़ारसी का शब्द है । 5)हिन्दू शब्द न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में । 
6)स्वयं बाभन जात ''दयानन्द सरस्वती'' कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है । 
7)1875 में बाभन ''दयानन्द सरस्वती'' ने ''आर्य समाज'' की स्थापना की ''हिन्दू समाज'' की नहीं । 8)अनपढ़ बाभन भी यह बात जानता है की बाभनो ने स्वयं को ''हिन्दू'' कभी नहीं कहा। आज भी वे स्वयं को ''बाभन'' ही कहते हैं, लेकिन सभी मूलनिवासी शूद्रों को हिन्दू कहते हैं ।
9)जब शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे तथा तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे तब भी पूना के बाभनो ने उन्हें ''शूद्र'' कह राजतिलक से इंकार कर दिया । घूस का लालच देकर बाभन गागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया । गगाभट्ट ने "गागाभट्टी"लिखा उसमें उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन राजतिलक के दौरान मंत्र "पुराणों" के ही पढे गए वेदों के नहीं ।तो शिवाजी को ''हिन्दू'' तब नहीं माना। 
10) बाभनो ने मुगलों से कहा हम ''हिन्दू'' नहीं हैं बल्कि, तुम्हारी तरह ही विदेशी हैं परिणामतः सारे हिंदुओं पर जज़िया लगाया गया लेकिन बाभनो को मुक्त रखा गया ।
11) 1920 में ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार की चर्चा शुरू हुई ।ब्रिटेन में भी दलील दी गई कि वयस्क मताधिकार सिर्फ जमींदारों व करदाताओं को दिया जाए । लेकिन लोकतन्त्र की जीत हुई । वयस्क मताधिकार सभी को दिया गया । देर सबेर ब्रिटिश भारत में भी यही होना था । तिलक ने इसका विरोध किया । कहा " तेली,तंबोली ,माली,कूणबटो को संसद में जाकर क्याहल चलाना है" । ब्राह्मणो ने सोचा यदि भारत में वयस्क मताधिकार यदि लागू हुआ तो अल्पसंख्यक बाभन मक्खी की तरह फेंक दिये जाएंगे । अल्पसंख्यक बाभन कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन सकेंगे । सत्ता बहुसंख्यकों के हाथों में चली जाएगी । तब सभी ब्राह्मणों ने मिलकर 1922 में "हिन्दू महासभा" का गठन किया । 12)जो बाभन स्वयं हो हिन्दू मानने कहने को तैयार नहीं थे वयस्क मताधिकार से विवश हुये । परिणाम सामने है । भारत के प्रत्येक सत्ता के केंद्र पर बाभनो का कब्जा है । 
सरकार में बाभन ,विपक्ष में बाभन ,कम्युनिस्ट में बाभन ,ममता बाभन ,जयललिता बाभन ,367 एमपी बाभनो के कब्जों में है ।
13) सर्वोच्च न्यायलयों में बाभनो का कब्जा,ब्यूरोक्रेसी में बाभनो का कब्जा,मीडिया,पुलिस ,मिलिटरी ,शिक्षा,आर्थिक सभी जगह बाभनो का कब्जा है । 
14) मतलब एक विदेशी गया तो दूसरा विदेशी सत्ता में आ गया । हम अंग्रेजों के पहले बाभनो के गुलाम थे अंग्रेजों के जाने के बाद भी बाभनो के गुलाम हैं । यही वह ''हिन्दू'' शब्द है जो न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में । फिर भी ब्राह्मण हमें हिन्दू कहते हैं ,और हिन्दू की आड़ में अल्पसख्य बाभन बहुसंख्य बन भारत का कब्ज्जा कर लेते है !!!
यह रहा हिन्दू नाम की आड़ में विदेशी ब्राह्मणों के कब्ज्जे का सबुत ,
१)देश के 8676 मठों के मठाधीश
सवर्ण : 96 प्रतिशत
(इसमें ब्राह्मण 90 प्रतिशत)
ओबीसी : 4 प्रतिशत
एससी : 0 प्रतिशत
एसटी : 0 प्रतिशत
स्रोत : डेली मिरर,
२)प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरियों में जातियों का विवरण
सवर्ण : 76.8 प्रतिशत
ओबीसी : 6.9 प्रतिशत
एससी : 11.5 प्रतिशत
एसटी : 4.8 प्रतिशत
स्रोत : वी. नारायण स्वामी, राज्यमंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत सरकार द्वारा संसद में शरद यादव के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए.
३)देश का कोई भी विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. इन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों का जातीय विवरण निम्न प्रकार से है:
सामान्य - 90 प्रतिशत
ओबीसी - 6.9 प्रतिशत
एससी - 3.1 प्रतिशत
एसटी - 0 प्रतिशत
स्रोत : डेली मिरर
४)
हमारे शिक्षा संस्थानों में से एक भी दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 8852 शिक्षक कार्यरत हैं जिनमें विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व निम्न प्रकार है:
सवर्ण : 7771
ओबीसी : 1081
एससी : 568
एसटी : 268
स्रोत : RTI No. Estt./P10/69-2011/I.I.T. K267
Jan.29, 2011
~~भारतीय मीडिया तंत्र के मालिक और उनकी हकीकत
1=टाईम्स ऑफ इंडिया=जैन(बनिया) 
2=हिंदुस्थान टाईम्स=बिर्ला(बनिया) 
3=दि.हिंदू=अयंगार(ब्राम्हण)
4=इंडियन एक्सप्रेस=गोयंका(बनिया) 
5=दैनिक जागरण=गुप्ता(बनिया) 
6=दैनिक भास्कर=अग्रवाल(बनिया)
7=गुजरात समाचार=शहा(बनिया) 
8=लोकमत =दर्डा(बनिया) 
9=राजस्थान पत्रिका=कोठारी(बनिया)
10=नवभारत=जैन(बनिया) 
11=अमर उजाला=माहेश्वरी(बनिया)  
~~भारत सरकार के असली मलिक... वह कौन है... क्या यह सारी कंपनी, मिडिया (प्रिंट और टी.व्ही. चैनल्स) किसके पास है... क्या एस.सी., एस.टी., ओबीसी या मुसलमानो के पास मै है... कौन भ्रष्ट है?... यह पता चल जायेगा... कॉंग्रेस, बीजेपी या कम्युनिस्ट पार्टी पहले से ही ब्राम्हणो की है... उनको नीचे दिये गये लोग चलाते है...
१) एससी सिमेंट कंपनी=सुमित बैनर्जी(ब्राम्हण) 
२) भेल=रविकुमार/कृष्णास्वामी(ब्राम्हण)
३) ग्रासिम हेंडालकी=कुमार मंगलम/बिर्ला(बनिया) 
४) आयसीआयसी बँक=के.व्ही.कामत(ब्राम्हण)
५) जयप्रकाश असो.=योगेश गौर(ब्राम्हण)
६) एल. & टी.=एम.ए.नाईक (ब्राम्हण)
७) एनटीपीसी=आर.एस.शर्मा(ब्राम्हण ) 
८) रिलायन्स=मुकेश अंबानी(बनिया)
९) ओएनजीसी=आर.एस.शर्मा(ब्राम्हण) 
१०) स्टेट बँक ऑफ इंडिया=ओपी भट(ब्राम्हण)
११) स्टर लाईट इंडस्ट्री=अनिल अग्रवाल(बनिया) 
१२) सन फार्मा=दिलीप सिंघवी(ब्राम्हण)
१३) टाटा स्टील=बी.मथुरामन(ब्राम्हण) 
१४) पंजाब नैशनल बँक=के. सी. चक्रवर्ती(ब्राम्हण)
१५) बँक ऑफ बडोदा=एम.डी.माल्या(ब्राम्हण) 
१६) कैनरा बँक=ए.सी.महाजन(बनिया)
१७) इनफोसीस=क्रीज गोपालकृष्णन(ब्राम्हण) 
१८) टीसीए=सुभ्रमन्यम रामदेसाई(ब्राम्हण)
१९) विप्रो=अजीम प्रेमजी(खोजा) 
२०) किंगफिशर (विमान कंपनी)=विजय माल्या(ब्राम्हण)
२१) आयडीया=आदित्य बिर्ला(बनिया) 
२२) जेट एअर वेज=नरेश गोयल(बनिया)
२३) एअर टेल=मित्तल (बनिया) 
२४) रिलायन्स मोबाईल=अंबानी (बनिया)
२५) वोडाफोन=रोईया(बनिया) 
२६) स्पाईस=मोदी(बनिया)
२७) बि.एस.एन.एल.=कुलदीप गोयल(बनिया) 
२८) टी.टी.एम.एल.=के.ए.चौकर(ब्राम्हण),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,इन ब्राह्मण के फेंके जाल में मत फसिये
पढ़िए और परिक्षण कर के जानिए. आरएसएस
राष्ट्रवादी या जातिवादी? महाराष्ट्र के कुछ
पुरातनपंथी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित करके
विक्सित किया गया संघ(आरएसएस)
राष्ट्रवादी है या जातिवादी ?
इसका परिक्षण 2004 के राष्ट्रिय स्तर के संघ के
पदाधिकारियो के नीचे वर्णित विवरण में दिए
गए नामो में से देश के भिन्न-भिन्न सामाजिक
समूहों का कितना प्रतिनिधित्व है,
उनका विश्लेषण करने से हो सकता है. क्रम - - पद - -
- - - - - - नाम - - - - - - - वर्ण
01. सरसंघचालक - - - - के.एस.सुदर्शन - - - - -
ब्राह्मण
02. सरकार्यवाह - - - - - मोहनराव भागवत - -
ब्राह्मण
03. सह सरकार्यवाह - - - मदनदास. - - - - - - -
ब्राह्मण
04. सह सरकार्यवाह - - - सुरेश जोशी - - - - - -
ब्राह्मण
05. सह सरकार्यवाह - - - सुरेश सोनी - - - - - -
वैश्य
06.शारिरीक प्रमुख - - - उमाराव पारडीकर - -
ब्राह्मण
07. सह शारीरिक प्रमुख - के.सी.कन्नान - - - - -
वैश्य
08.बौध्धिक प्रमुख - - - -रंगा हर - - - - - - - -
ब्राह्मण
09. सह बौध्धिक प्रमुख - -मधुभाई कुलकर्णी - - -
ब्राह्मण
10. सह बौध्धिक प्रमुख - -दत्तात्रेय होलबोले - -
-ब्राह्मण
11. प्रचार प्रमुख - - - - - श्रीकान्त जोशी - - -
- ब्राह्मण
12. सह प्रचार प्रमुख - - - अधिश कुमार - - - - -
ब्राह्मण
13. प्रचारक प्रमुख - - - - एस,वी. शेषाद्री - - - -
ब्राह्मण
14. सह प्रचारक प्रमुख - - श्रीकृष्ण मोतिलाग - -
ब्राह्मण
15. सह प्रचारक प्रमुख - - सुरेशराव केतकर - - -
ब्राह्मण
16. प्रवक्ता - - - - - - - -राम माधव - - - - - -
ब्राह्मण
17. सेवा प्रमुख - - - - - -प्रेरेमचंद गोयेल - - - -
वैश्य
18.सह सेवा प्रमुख - - - -सीताराम केदलिया - -
वैश्य
19.सह सेवा प्रमुख - - - -सुरेन्द्रसिंह चौहाण - - -
क्षत्रिय
20. सह सेवा प्रमुख - - - -ओमप्रकाश- - - - - - -
ब्राह्मण
21. व्यवस्था प्रमुख - - - -साकलचंद बागरेचा - -
वैश्य
22.सहव्यवस्था प्रमुख - - बालकृष्ण त्रिपाठी - -
-ब्राह्मण
23. संपर्क प्रमुख - - - - - हस्तीमल - - - - - - - -
वैश्य
24.सह संपर्क प्रमुख - - - इन्द्रेश कुमार- - - - - -
ब्राह्मण
25. सभ्य- - - - - - - - - राघवेन्द्र कुलकर्णी - - -
ब्राह्मण
26. सभ्य - - - - - - - - -एम.जी. वैद्य - - - - - -
ब्राह्मण
27. सभ्य - - - - - - - - -अशोक कुकडे- - - - - -शुद्र
28. सभ्य - - - - - - - - -सदानंद सप्रे- - - - - - -
ब्राह्मण
29. सभ्य - - - - - - - - -कालिदास बासु - - - - -
ब्राह्मण
30. विशेष आमंत्रित - - - सूर्य नारायण राव - - -
ब्राह्मण
31. विशेष आमंत्रित - - - श्रीपति शास्त्री - - -
- - ब्राह्मण 32. विशेष आमंत्रित - - - वसंत बापट -
- - - - - ब्राह्मण
33. विशेष आमंत्रित - - - बजरंगलाल गुप्ता - - - -
वैश्य (स्त्रोत-आरएसएस डॉटकॉम इंटरनेट पर
आधारित-2004)
अखिल भारतीय स्तर पर सर संघचालक के.एस.सुदर्शन
सहित 24 ब्राह्मण यानी 72.73%, 7 वैश्य
यानी 21.21%, 1 क्षत्रिय
यानी 3.03% और 1 शुद्र यानी 3.03%
प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है. ब्राह्मण और
वैश्य जैसी उच्चवर्ग जातियो का 93.04%
प्रतिनिधित्व है. 5% विक्सित शुद्र और 45%
पिछड़े शुद्र(ओबीसी) तथा 24% एससी-
एसटी जातियों को मिला कर 75%
आबादी का 1 यानी सिर्फ 3.03%
ही प्रतिनिधित्व है.एससी-
एसटी जातियों का कोई प्रतिनिधित्व
ही नहीं है. ऊपर का ये चित्र ब्राह्मण जातिवाद
के नंगे नाच का चित्र है. संघ के
जातिवादी ब्राह्मण नेताओ ने भारत को 11
क्षेत्रों में बांट कर अपने जाति संगठन को आरएसएस
के नाम से जमाया है. इन क्षेत्रो का संचालन करने
वालो का सामाजिक चित्र नीचे
दिया गया है.
11 क्षेत्रोके 34 पदाधिकारियों में सामाजिक
प्रतिनिधित्व
सामाजिकवर्ग - - - - आबादी - - -
पदाधिकारी - हिस्सेदारी
1. ब्राह्मण - - - - - -03.00% - - - 24 - -
- - 70.59%
2. क्षत्रिय-भूमिहार - 05.90% - - - 01
- - - - 02.94%
3. वैश्य - - - - - - -01.70% - - - 07 - - - -
20.55%
4. शुद्र - - - - - - - 51.70%- - - - 01 - - -
- 05.88%
5. अतिशुद्र- - - - - 24.00% - - - -00 - -
- - 00.00%
(स्त्रोत-आरएसएस डॉटकॉम 2004- इंटरनेट पर
आधारित)
केवल अखिल भारतीय संघ
ही नहीं परन्तु 11 क्षेत्रोंमें बंटा हुए आरएसएस
का क्षेत्रीय नेतृत्व भी ब्राह्मण नेताओ के
नियंत्रण में है. 11 क्षेत्रोके 34 पदाधिकरियोमे
ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व 70.59% है,
जबकि वैश्य 20.59% है.
निम्न वर्गोमे शुद्र- अतिशुद्रो की 75%
आबादी का पदाधिकरियोमे प्रतिनिधित्व
सिर्फ 5.88% ही है. अतिशुद्र मानी गई एससी-
एसटी जातियों की 24%
जनसंख्या का तो कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है.
ऊपर का चित्र देखने के बाद कोई भी व्यक्ति कह
सकता है की, संघ और संघ द्वारा खड़े किये गए
संगठनो का नियंत्रण ब्राह्मण जाति के हाथ में है.
संघ ढोंगी हिन्दुवादी, पाखंडी राष्ट्रवादी और
असली जातिवादी है.
जैसा परिक्षण तिन ब्राह्मण सरसंघचालको के
जीवनवृतो में से हो सकता है वैसा ही परिक्षण
1998-2004 के दौरान केन्द्र सरकार के
प्रधानमन्त्री रहे संघ के कट्टर
जातिवादी ब्राह्मण प्रचारक
अटलबिहारी वाजपेयी के व्यवहार से भी स्पष्ट
हो सकता है. वाजपेयी शासन मे
ब्राह्मणों को क्या मिला और
गैरब्राह्मणों को क्या मिला? गैर- ब्राह्मणों में
शुद्र-अतिशुद्र(75%) को क्या मिला? केबिनेट और
नियुक्ति में कितनी सामाजिक
हिस्सेदारी मिली? - वाजपेयी शासनमे
ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व 1998 - 2004
क्रम - - - - पद - - - - - - - - - - - -कुल - - ब्राह्मण
- हिस्सेदारी
1. - केन्द्रीय केबिनेटमंत्री - - - - - - --19 - - 10 -
- - - 53%
2. - राज्य तथा उपमंत्री - - - - - - - -49 - - 34 -
- - - 70%
3. - सचीव-उपसचिव-सयुंक्तसचिव - 500 - -340 - -
- -62%
4. - राज्यपाल-उपराज्यपाल- - - - - -27 - - -13 -
- - -48%
5. - पब्लिक सेक्टर के चीफ - - - - - 158 - - 91 - - -
-58%
ये सभी ऐसे पद है जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार के प्रधानमन्त्री के रूपमे वाजपेयी निर्णय करते थे. 3.5% ब्राह्मण की स्थिति क्या है और 96.5% गैरब्राह्मण की क्या स्थिति है? 75% शुद्र- अतिशुद्रो (obc SC ST) को कितना प्रतिनिधित्व
मिला होगा ?
भारत में मूलनिवासियो को न्याय नहीं मिलता क्योकि न्यायपालिका पर विदेशी ब्राह्मण-बनियों का कब्ज्जा है !!
यह रहा सबूत =
करिया मुंडा रिपोर्ट - 2000 
18 राज्यों की हाईकोर्ट में OBC SC ST जजों की संख्या 
1) दिल्ली - कुल जज 27 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-27 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
2) पटना - कुल जज 32 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-32 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
3) इलाहाबाद - कुल जज 49 ( (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-47 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
4) आंध्रप्रदेश - कुल जज 31 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-25 जज ,ओबीसी - 4 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
5)गुवाहाटी - कुल जज 15 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-12 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
६) गुजरात -कुल जज 33 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-30 जज ,ओबीसी - 2 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
7)केरल -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 13 जज ,ओबीसी - 9 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
8) चेन्नई -कुल जज 36 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 17 जज ,ओबीसी -16 जज SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
9) जम्मू कश्मीर -कुल जज 12 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 11 जज ,ओबीसी - जज SC- जज ,ST- 1 जज )
10) कर्णाटक -कुल जज 34 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- जज 32 ,ओबीसी - जज SC- 2 जज ,ST- जज )
11) ओरिसा कुल -13 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 12 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
12) पंजाब- हरियाणा -कुल 26 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
13)कलकत्ता - कुल जज 37 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 37 जज ,ओबीसी -0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
१४) हिमांचल प्रदेश -कुल जज 6 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 6 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
15)राजस्थान -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
16)मध्यप्रदेश -कुल जज 30 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 30 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
17)सिक्किम -कुल जज 2 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 2 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
18)मुंबई -कुल जज 50 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 45 जज ,ओबीसी - 3 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
कुल TOTAL= 481 जज में से ,विदेशी ब्राह्मण-बनिया 426 जज , ओबीसी जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज
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डॉ सुनील अहीर (बहुजन मुक्ति पार्टी )

Thursday, March 5, 2015

IS BEEF EATING ALLOWED FOR HINDUS?

IS BEEF EATING ALLOWED FOR HINDUS?
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A recent photograph of some Hindu Protesters demanding a ban on non-vegetarian food made me sit and take notice on vedaas. I believe that these protesters are ignorant of what their religion preaches.They are simply going against their own religious scriptures.
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BEST ANSWERS:
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Manusmriti (chapter5/verse30):"It is not sinful to eat meat of eatable animals,for God has created both the eaters and the eatables".
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Aapastanba Grishsutram(1/3/10):says,"The cow should be slaughtered on the arrival of a guest, on the occasion of 'Shraaddha of ancestors and on the occasion of a marriage".
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Rigveda (10/85/13):declares "On the occasion of a girls marriage oxen and cows are slaughtered".
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Rigveda (6/17/1) : states that, "Indra used to eat the meat of cow, calf, horse and buffalo".
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Vashishta Dharmasutra (11/34):says,If a Brahmin refuses to eat the meat offered to him on the occasion of ,'Shraaddha' he goes to hell".
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Hinduisms great propagator Swami Vivekaanand said thus: "You will be surprised to know that according to ancient Hindu rite and rituals, a man cannot be a good Hindu who does not eat beef ".(The complete works of Swami Vivekanand vol :3/5/36)
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"The book The history and culture of the indian people" published by Bharatiya vidya bhawan,bombay and edited by renowned historian R C Majumdar (vol 2 ,page 18 says)This is said in the mahabharata that "king Ratinder used to kill 2000 other animals in addition to 2000 cows daily in order to give their meat in charity".
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Aadi shankaraachaarya commentary on Brahadaranyako panishad 6/4/18 says:'Odaan' rice mixed with meat is called 'maansodan' on being asked whose meat it should be, he answers 'Uksha' is used for an ox, which is capable to produce semen.
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Dear hindoo brothers and sisters what should we follow?????
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Religious books or communal political parties??????
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My advice is: KHOOB KHAO SAHAT BANAAO..
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DOOSRONKO BHEE KHANE DO.
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If Rama comes to Hindu Rashtra, he will be disappointed since Meat was his favorite food.
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Evidence from Valmiki Ramayan.
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Rama-Sita-Lakshman trio were hunter-gatherers who consumed wild animals like deer and wild pigs which is mentioned extensively in Valmiki Ramayanam.
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1) Sita promising LIQUOR-MEAT to Ganga From Ayodhya Kandam: Chapter 52: Verse 89
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“Oh, goddess! After reaching back the city of Ayodhya, I shall worship you with thousand pots of SPIRITOUS LIQUOR and JELLIED MEAT with cooked rice well prepared for the solemn rite.
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http://www.valmikiramayan.net/.../ayodhyasans52.htm...)
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Lakshmana and RAMA HUNTING DEER AND WILD BOAR(wild pig):From Ayodhya Kandam: Chapter-52, Verse-102
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"Having hunted there four deer, namely Varaaha,Rishya, Prisata; and Mahaaruru (the four principal species of deer) and taking quickly the portions that were pure, being hungry as they were, Rama and Lakshmana reached a tree to take rest in the evening."http://www.valmikiramayan.net/.../ayodhyasans52.htm...)
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Sita telling Ravana who is in the disguise of a Brahmin, that RAMA WILL KILL AND BRING BACK DEER, REPTILES AND WILD BOAR FOR MEAL From Aranya Kandham: Chapter-47, Verse-22b, 23
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"Be comfortable for a moment, here it is possible for you to make a sojourn, and soon my husband will be coming on taking plentiful forest produce, and on KILLING DEER, MONGOOSE, WILD PIG he fetches meat, a plenty.
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http://www.valmikiramayan.net/.../sar.../aranyasans47.htm... reference:http://perichandra.wordpress.com/.../meat-eating-in.../
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From Rig VedaThe bridal pomp of Sūrya, which Savitar started,moved along. In Magha days are OXEN SLAIN, in Arjuris they wed the bride.http://www.sacred-texts.com/hin/rigveda/rv10085.htm
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