Wednesday, February 24, 2016

मुस्लिम वैज्ञानिको के वो अविष्कार जिन्होंने मानव को ‘सभ्य’ बनाया

Video- मुस्लिम वैज्ञानिको के वो अविष्कार जिन्होंने मानव को ‘सभ्य’ बनाया

तीन ईसाई पादरी इस्लाम की शरण में



अमेरिका के तीन ईसाई पादरी इस्लाम की शरण में आ गए। उन्हीं तीन पादरियों में से एक पूर्व ईसाई पादरी यूसुफ एस्टीज की जुबानी कि कैसे वे जुटे थे एक मिस्री मुसलमान को ईसाई बनाने में, मगर जब सत्य सामने आया तो खुद ने अपना लिया इस्लाम।
बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि आखिर मैं एक ईसाई पादरी से मुसलमान कैसे बन गया? यह भी उस दौर में जब इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ हम नेगेटिव माहौल पाते हैं। मैं उन सभी का शुक्रिया अदा करता हूं जो मेरे इस्लाम अपनाने की दास्तां में दिलचस्पी ले रहे हैं। लीजिए आपके सामने पेश है मेरी इस्लाम अपनाने की दास्तां-

* मैं मध्यम पश्चिम के एक कट्टर इसाई घराने में पैदा हुआ था। सच्चाई यह है कि मेरे परिवार वालों और पूर्वजों ने अमेरिका में कई चर्च और स्कूल कायम किए। 1949 में जब मैं प्राइमेरी स्कूल में था तभी हमारा परिवार टेक्सास के हाउस्टन शहर में बस गया।

हम नियमित चर्च जाते थे। बारह साल की उम्र में मुझे ईसाई धार्मिक विधि बेपटिस्ट कराई गई। किशोर अवस्था में मैं अन्य ईसाई समुदायों के चर्च,मान्यताओं,आस्था आदि के बारे में जानने को उत्सुक रहता था। मुझे गोस्पेल को जानने की तीव्र लालसा थी। धर्म के मामले में मेरी खोज और दिलचस्पी सिर्फ ईसाई धर्म तक ही सीमित नहीं थी हिंदू,यहूदी,बोद्ध धर्म ही नहीं बल्कि दर्शनशास्त्र और अमेरिकी मूल निवासियों की आस्था और विश्वास भी मेरे अध्ययन में शामिल रहे। सिर्फ इस्लाम ही ऐसा धर्म था जिसको मैंने गंभीरता से नहीं लिया था।

* इस दौरान मेरी दिलचस्पी संगीत में बढ़ गई। खासतौर से गोस्पल और क्लासिकल संगीत में। चूकि मेरा पूरा परिवार धर्म और संगीत के क्षेत्र से जुड़ा हुआ था इसलिए मैं भी इन दोनों के अध्ययन में जुट गया। और इस तरह मैं कई गिरिजाघरों से संगीत पादरी के रूप में जुड़ गया। मैंने 1960 में लोगों को की बोर्ड के जरिए संगीत की शिक्षा दी और फिर 1963 में लॉरेल,मेरीलेण्ड में अपना ‘एस्टीज म्यूजिक स्टूडियो’ खोल लिया। इसके बाद मैंने करीब तीस साल तक अपने पिता के साथ मिलकर कई बिजनेस प्रोजेक्ट तैयार किए। हमने बहुत सारे मनोरंजन प्रोग्राम बनाए और कई शो किए।
हमने टेक्सास और ऑकलाहोम से फ्लोरिडा के बीच कई पियानो और ऑरगन स्टोर खोले। इन सालों में मैंने करोड़ों डॉलर कमाए। करोड़ों डॉलर कमाने के बावजूद दिल को सुकून नहीं था। सुकून तो सच्चाई की राह पाकर ही हासिल हो सकता था।

मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि आपके मन में भी यह सवाल उठते होंगे-आखिर ईश्वर ने मुझे किस मकसद के लिए पैदा किया है? ईश्वर को मुझसे किस तरह की अपेक्षा है? आखिर ईश्वर कौन है? हम मूल पाप में यकीन क्यों रखते हैं? इंसान को अपने पाप स्वीकारने के लिए क्यों मजबूर किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप उसे सदा के लिए सजा क्यों दी जाती है?
* अगर आप किसी से यह सवाल पूछते हैं तो आपसे कहा जाता है कि आपको ऐसे सवाल पूछे बिना अपने धर्म पर यकीन करना चाहिए या यह तो रहस्य है,ऐसे सवाल नहीं किए जाने चाहिए।



* ठीक इसी तरह ट्रीनिटी(तसलीस) का सिद्धान्त भी है। अगर मैं किसी धर्मप्रचारक या किसी ईसाई पादरी से पूछता कि-‘एक’ अपने आप में तीन में कैसे बदल सकता है? ईश्वर तो कुछ भी करने की ताकत रखता है तो फिर लोगों के पाप कैसे माफ नहीं कर सकता? उसे जमीन पर एक इंसान के रूप में आकर सभी लोगों के पाप अपने ऊपर लेने की आखिर कहां जरूरत पड़ी? हमें याद रखना चाहिए की वह तो सारे ब्रह्माण्ड का पालक है,वह तो चाहे जैसा कर सकता है।

1991 में एक दिन मुझे यह जानकारी मिली कि मुसलमान बाइबिल पर यकीन रखते हैं। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ। आखिर ऐसे कैसे हो सकता है? इतना ही नहीं मुसलमान तो ईसा पर ईमान रखते हैं कि वे ईश्वर के सच्चे पैगम्बर थे और उनकी पैदाइश बिना पिता के अल्लाह के चमत्कार के रूप में हुई। ईसा अब ईश्वर के पास हैं, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अंतिम दिनों में फिर से इस जमीन पर आएंगे और एंटीक्राइस्ट(दज्जाल)के खिलाफ ईमान वालों का नेतृत्व करेंगे।

* मुझे यह सब जानकर बड़ी हैरत हुई। दरअसल मैं जिन ईसाई पंथ वालों के साथ सफर किया करता था वे इस्लाम और मुसलमानों से सख्त नफरत किया करते थे। वे लोगों के बीच इस्लाम के बारे में झूठी बातें करके लोगों को भ्रमित करते थे। ऐसे में मुझे लगता था कि मुझे इस धर्म के लोगों से आखिर क्या लेना-देना।

मेरे पिता चर्च से जुड़े कामों में जुटे हुए थे, खासतौर पर चर्च के स्कूल प्रोगाम्स में। 1970 में मेरे पिता अधिकृत रूप से पादरी बन गए। मेरे पिता और उनकी पत्नी(मेरी सौतेली मां)बहुत से ईसाई धर्म प्रचारकों को जानते थे। वे अमेरिका में इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन पेट रॉबर्टसन के नजदीकियों में से थे।

1991 में मेरे पिता ने मिस्र के एक मुसलमान शख्स के साथ बिजनेस शुरू किया। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उस शख्स से मिलूं। मैं बड़ा खुश हुआ कि चलो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामकाज होगा। लेकिन जब मेरे पिता ने मुझे बताया कि वह शख्स मुसलमान है तो पहले तो मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। मैंने कहा-एक मुसलमान से मुलाकात करूं? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मैं नहीं मिलना चाहता किसी मुस्लिम से। हमने इनके बारे में बहुत सी बातें सुनी हैं। ये लोग आतंकवादी होते हैं, हवाई जहाज अगवा करते हैं, बम विस्फोट करते हैं,अपहरण करते हैं और ना जाने क्या-क्या करते हैं। वे ईश्वर में भरोसा नहीं करते। दिन में पांच बार जमीन को चूमते हैं और रेगिस्तान में किसी काले पत्थर की पूजा करते हैं।

* मैंने इनसे कह दिया मैं किसी मुसलमान शख्स से नहीं मिल सकता। मेरे पिता ने मुझ से कहा कि वह बहुत अच्छा इंसान है और मुझ पर जोर डाला कि मैं उससे मिलूं। आखिर में मैं उस मुसलमान शख्स से मिलने को तैयार हो गया और शर्त रखी कि मैं सण्डे के दिन चर्च में प्रार्थना करने के बाद ही उससे मिलूंगा। मैंने हमेशा की तरह बाइबिल अपने साथ ली,चमकता क्रॉस गले में लटकाकर उससे मिलने पहुंचा। मेरी टोपी पर ठीक सामने लिखा था-जीसस ही रब है। मेरी पत्नी और दो छोटी बेटियां भी मेरे साथ थीं।
* अपने पिता के ऑफिस पहुंचकर मैंने उनसे पूछा-कहां है वह मुसलमान? पिता ने सामने बैठे शख्स की ओर इशारा किया। उसे देख मैं परेशानी में पड़ गया। मुसलमान तो ऐसा नहीं हो सकता। मैं तो सोचता था कि लंबे चौगे,दाढ़ी और सिर पर साफे के साथ लंबे कद और बड़ी आंखों वाले शख्स से मुलाकात होगी। इस शख्स के तो दाढ़ी भी नहीं थी। सच बात तो यह है कि उसके सिर पर भी बाल नहीं थे। उसने बड़ी गर्मजोशी और खुशी के साथ मेरा स्वागत किया और मेरे से हाथ मिलाया। मैं तो कुछ समझ नहीं पाया। मैं तो सोचता था कि ये लोग तो आतंकवादी और बम विस्फोट करने वाले होते हैं। मैं तो चक्कर में फंस गया।

* मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं,मैं इस शख्स पर अभी से काम शुरू कर देता हूं। शायद ईश्वर मेरे जरिए ही इसे नरक की आग से बचाना चाह रहा है। एक दूसरे से परिचय के बाद मैंने उससे पूछा- क्या आप ईश्वर में यकीन रखते हैं? उसने कहा-‘हां’। बहुत अच्छा, फिर मैंने पूछा-आप आदम और हव्वा में विश्वास रखते हैं? उसने कहा-‘हां’। मैंने आगे पूछा-और इब्राहीम के बारे में आपका क्या मानना है? क्या आप उनको मानते हैं? और यह भी कि उन्होंने अपने बेटे को कुरबान करने की कोशिश की? उसने फिर हां में जवाब दिया। इसके बाद मैंने उससे जाना-मूसा को भी मानते हो? उसने फिर हामी भरी। मेरा अगला सवाल था-अन्य पैगम्बरों-दाऊद, सुलेमान,जॉहन आदि को भी मानते हो? उसका जवाब फिर हां में था। मैंने जाना कि क्या तुम बाइबिल पर यकीन रखते हो? उसने हां कहा। अब मैं एक बड़े सवाल पर आया-क्या तुम ईसा को मानते हो? उसने कहा-हां।

* यह सब जानकर मुझे उस शख्स को ईसाई बनाने का काम आसान लग रहा था। मुझे लग रहा था,उसे तो अब सिर्फ बपतीशा की विधि की ही जरूरत है और यह काम मेरे जरिए होने वाला है। मैं इसे बड़ी उपलब्धि मान रहा था। एक मुसलमान हाथ में आना और इसे ईसाई धर्म स्वीकार करवाना बड़ा काम था। उसने मेरे साथ चाय पीने की हां भरी तो हम एक चाय की दुकान पर चाय पीने गए। हम वहां बैठकर अपने पसंद के विषय आस्था, विश्वास आदि पर बैठकर घंटों बातें करते रहे। ज्यादा बातें मैंने ही की। उससे बातचीत करने पर मुझे एहसास हुआ कि वह तो बहुत अच्छा आदमी है। वह कम ही बोलता था और शर्मीला भी था। उसने मेरी बात बड़ी तसल्ली से सुनी और बीच में एक बार भी नहीं बोला। मुझे उस शख्स का व्यवहार पसंद आया। मैंने मन ही मन सोचा-यह व्यक्ति तो बहुत अच्छा ईसाई बनने की काबिलियत रखता है। लेकिन भविष्य में क्या होने वाला है, इसकी मुझे थोड़ी सी भनक भी नहीं थी।

* मैंने अपने पिता से सहमति जताई और उसके साथ बिजनेस करने के लिए राजी हो गया। मेरे पिता ने मुझे प्रोत्साहित किया और मेरे से कहा कि मैं उस मुस्लिम शख्स को अपने साथ बिजनेस ट्यूर पर उत्तरी टेक्सास ले जाऊं। लगातार कई दिनों तक हमने कार में सफर के दौरान अलग-अलग धर्म और आस्थाओं पर चर्चा की। मैंने उसे रेडियो पर आने वाले इबादत से जुड़े अपने पसंदीदा प्रोग्राम्स के बारे में बताया। मैंने बताया कि इन धार्मिक प्रोग्राम्स में सृष्टि की रचना का उद्देश्य,पैगम्बर और उनके मिशन और ईश्वर अपने मैसेज इंसानों तक कैसे पहुंचाता है, इसकी जानकारी दी जाती है। इन रेडियो प्रोग्राम्स के जरिए कमजोर और आम लोगों तक यह धार्मिक संदेश पहुंच जाते हैं। इस दौरान हम दोनों ने अपने धार्मिक विचार और अनुभवों को एक दूसरे के साथ बांटा।
* एक दिन मुझे पता चला कि मेरा यह मुस्लिम दोस्त मुहम्मद अपने मित्र के साथ जहां रह रहा था उस जगह को छोड़ चुका है और अब कुछ दिनों के लिए उसे मस्जिद में रहना पड़ेगा। मैं अपने पिता के पास गया और उनसे कहा कि क्यों न हम मुहम्मद को अपने बड़े घर में अपने साथ रख लें। वह अपने काम में भी हाथ बंटाएगा और अपने हिस्से का खर्चा भी अदा कर देगा। और जब कभी बिजनेस के सिलसिले में बाहर जाएंगे तो हमें हरदम तैयार मिलेगा। मेरे पिता को यह बात जम गई और फिर मुहम्मद हमारे साथ ही रहने लगा।

* मैं टेक्सास में अपने साथी धर्मप्रचारकों से मिलने जाया करता था। उनमें से एक टेक्सास मैक्सिको सरहद तथा दूसरा ओकलहोमा सरहद पर रहता था। एक धर्मप्रचारक को तो बहुत बड़ा क्रॉस पसंद था जो उसकी कार से भी बड़ा था। वह उसे कंधे पर रखता और उसका सिरा जमीन पर घसीटते हुए चलता। जब वह उस क्रॉस को लेकर सड़क पर चलता तो कई लोग अपनी गाड़ी रोककर उससे पूछते-क्या चल रहा है? तो वह उन्हें ईसाई धर्म से जुड़ी किताबें और पम्फलेट देता। एक दिन मेरे इस क्रॉस वाले दोस्त को दिल का दौरा पड़ा और उसे हॉस्पिटल में लम्बे समय तक भर्ती रहना पड़ा। मैं हफ्ते में कई बार उस दोस्त से मिलने जाता। साथ में मैं अपने दोस्त मुहम्मद को भी ले जाता और इस बहाने हम अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं का आदान-प्रदान कर लेते। मेरे उस बीमार दोस्त पर इस्लाम का कोई असर नहीं पड़ा, इससे साफ जाहिर था कि इस्लाम के बारे में जानने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। एक दिन उसी अस्पताल में भर्ती एक मरीज व्हील चैयर पर मेरे दोस्त के कमरे में आया। मैं उसके नजदीक गया और मैंने उसका नाम पूछा। वह बोला-नाम कोई महत्वपूर्ण चीज नहीं है।

* मैंने उससे जाना कि वह कहां का रहने वाला है, तो वह चिड़कर बोला-मैं तो जूपीटर ग्रह से आया हूं। दरअसल वह अकेला था और अवसाद से पीडि़त था। इस वजह से मैं उसके सामने मालिक की गवाही देने की कोशिश करने लगा। मैंने उसे तौरात में से पैगम्बर यूनुस के बारे में पढ़कर सुनाया। मैंने बताया कि पैगम्बर यूनुस को ईश्वर ने लोगों को सीधी राह दिखाने के लिए भेजा था। यूनुस अपने लोगों को ईश्वर की सीधी राह दिखाने में विफल होकर उस बस्ती से निकल गए। इन लोगों से बचते हुए वे एक कश्ती में जाकर सवार हो गए। तूफान आया कश्ती भी टूटने लगी तो लोगों ने यूनुस को समंदर में फैंक दिया। एक व्हेल मछली पैगम्बर यूनुस को निगल गई। यूनुस मछली के पेट में समंदर में तीन दिन और तीन रात रहे। फिर जब यूनुस ने अपने गुनाह की माफी मांगी तो ईश्वर के आदेश से उस मछली ने उन्हें तट पर उगल दिया और वे अपने शहर निनेवा लौट आए। इस घटना में सबक यह था कि अपनी परेशानियों और बिगड़े हालात से भागना नहीं चाहिए। हम जानते हैं कि हमने क्या किया है और हमसे भी ज्यादा ईश्वर जानता है कि हमने क्या किया है।

इस वाकिए को सुनने के बाद व्हील चैयर पर बैठे उस शख्स ने ऊपर मेरी ओर देखा और मुझसे अपने किए व्यवहार की माफी मांगी। उसने कहा कि वह अपने रूखे व्यवहार से दुखी है और इन्हीं दिनों वह गम्भीर परेशानियों से गुजरा है। उसने कहा वह मेरे सामने अपने पाप कबूल करना चाहता है। मैंने उससे कहा मैं कैथोलिक पादरी नहीं हूं और मैं लोगों के पाप कबूल नहीं करवाता। वह बोला- ‘मैं यह बात जानता हूं। मैं खुद एक रोमन कैथोलिक पादरी हूं।’ यह सुनकर मैं भौंचक्का रह गया। क्या मैं एक पादरी को ही ईसाई धर्म के उपदेश दे रहा था? मैं सोच में पड़ गया आखिर इस दुनिया में यह क्या हो रहा है। उस पादरी ने अपनी कहानी सुनाई।

* उसने बताया कि मैक्सिको और न्यूयॉर्क में वह बारह साल तक ईसाई प्रचारक के रूप में काम कर चुका है और यहां उसका अनुभव पीड़ादायक रहा। अस्पताल से छुट्टी के बाद उस ईसाई पादरी को ऐसी जगह की जरूरत थी जहां वह तंदुरुस्ती हासिल कर सके। मैंने अपने पिता से कहा कि उसे अपने यहां रहने के लिए कहना चाहिए कि वह भी हमारे साथ रहे। हम इस पर सहमत हो गए और वह भी हमारे साथ रहने लगा। मेरी उस ईसाई पादरी से भी इस्लाम की धारणाओं और मान्यताओं पर बातचीत हुई तो उसने इस पर अपनी सहमति जताई। उसकी सहमति पर मुझे ताज्जुब हुआ। उस पादरी से मुझे यह जानकर भी हैरत हुई कि कैथोलिक पादरी इस्लाम का अध्ययन करते हैं और कुछ ने तो इस्लाम में डॉक्टरेट की उपाधि भी ले रखी है।

* हम हर शाम खाने के बाद टेबल पर बैठकर धर्म की चर्चा करते। चर्चा के दौरान मेरे पिता के पास किंग जेम्स की अधिकृत बाइबिल होती,मेरे पास बाइबिल का संशोधित स्टैडण्र्ड वर्जन होता, मेरी पत्नी के पास बाइबिल का तीसरा रूप और कैथोलिक पादरी के पास कैथोलिक बाइबिल, जिसमें प्रोटेस्टेंट बाइबिल से सात पुस्तकें ज्यादा है। हमारा वक्त इसमें गुजरता कि किसकी बाइबिल ज्यादा सत्य और सही है और फिर हम मुहम्मद को बाइबिल का संदेश देकर उसे ईसाई बनाने की कोशिश करते।

* एक बार मैंने मुहम्मद से कुरआन के बारे में जाना कि पिछले चौदह सौ सालों में कुरआन के कितने रूप बन चुके हैं? उसने मुझे बताया कि कुरआन सिर्फ एक ही रूप में है और उसमें कभी कोई फेरबदल नहीं हुआ। उसने मुझे यह भी बताया कि कुरआन को दुनियाभर में लाखों लोग कंठस्थ याद करते हैं और कुरआन को जबानी याद रखने वाले लाखों लोग दुनियाभर में फैले हुए हैं। मुझे यह असंभव बात लगी। ऐसे कैसे हो सकता है? बाइबिल को देखो सैकड़ों सालों से इसकी मौलिक भाषा ही मर गई। सैंकड़ों साल के काल में इसकी मूल प्रति ही खो गई। फिर भला ऐसे कैसे हो सकता है कि कुरआन असली रूप में अभी भी मौजूद हो।

एक बार हमारे घर रह रहे कैथोलिक पादरी ने मुहम्मद से कहा कि वह उसके साथ मस्जिद जाना चाहता है और देखना चाहता है कि मस्जिद कैसी होती है। एक दिन वे दोनों मस्जिद गए। वापस आए तो वे मस्जिद के अपने अनुभव बांट रहे थे। हम भी पादरी से पूछे बगैर नहीं रह सके कि मस्जिद कैसी थी और वहां

- See more at: http://tijarat.co.in/article.php?id=53417#sthash.cxS9CTIY.dpuf

Monday, February 22, 2016

केट स्टीवन्स ने इस्लाम धर्म कबूल किया

कुरआन में मिला,मेरे हर सवाल का जवाब ..पॉप स्टार-केट स्टीवन्स अब-यूसुफ इस्लाम

मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि इस्लाम कबूल करने से पहले मैं किसी भी मुसलमान से नहीं मिला था। मैंने पहले कुरआन पढ़ा और जाना कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है जबकि इस्लाम हर मामले में पूर्णता लिए हुए है।
केट स्टीवन्स अब-यूसुफ इस्लाम इंग्लैण्ड के माने हुए पॉप स्टार

मैं आधुनिक रहन सहन ,सुख-सुविधाओं और एशो आराम के साथ पला बढ़ा। मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ। हम जानते हैं कि हर बच्चाकु दरती रूप से एक खास फितरत और और स्वभाव के साथ पैदा होता लेकिन उसके माता- पिता उसको इधर उधर के धर्मों की तरफ मोड़ देते हैं। ईसाई धर्म में मुझे पढ़ाया गया कि ईश्वर से सीधा ताल्लुक नहीं जोड़ा जा सकता। ईसा मसीह के जरिए ही उस ईश्वर से जुड़ा जा सकता है। यही सत्य है कि ईसा मसीह ईश्वर तक पहुंचन का दरवाजा है। मैंने इस बात को थोड़ा बहुत स्वीकार किया,लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं था। जब मैं मसीह की मूर्तियां देखता तो सोचता यह तो पत्थर मात्र है। इनमें कोई प्राण नहीं। लेकिन जब मैं सुनता कि यही ईश्वर है तो मैं उलझन में फंस जाता और आगे कोई सवाल भी नहीं कर पाता।


मैं कमोबेश रूप में ईसाई विचारधारा को मानता था क्योंकि यह मेरे माता-पिताा का धर्म था जिसका सम्मान मुझे करना था। मैं धीरे-धीरे ईसाई मत से दूर होता गया और संगीत के क्षेत्र में आ गया। मैंने म्यूजिक बनाना शुरू कर दिया। मेरी ख्वाहिश एक बड़ा स्टार बनने की थी। फिल्मों और मीडिया के इर्द-गिर्द जो दुनिया मैंने देखी उसे देख मुझे लगा कि मेरा ईश्वर तो यही सबकुछ है। अब मेरा मकसद ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना था। मेरे एक अंकल थे जिनके पास काफी पैसा था और एक शानदार गाड़ी थी। उनको देखकर भी मुझे लगा कि ये सारे ऐशो आराम ही जिन्दगी का मकसद है। अपने आसपास के लोगों को देखकर मुझे महसूस होता कि यह दुनिया ही उनके लिए ईश्वर है। फिर मैंने भी तय कर लिया कि मेरे जीवन का मकसद भी पैसा कमाना ही है ताकि मैं ऐशो आराम की जिंदगी जी सकंू ।

अब मेरे आदर्श पॉप स्टार्स बन गए थे। मैं म्यूजिक बनाने लगा लेकिन मेरे दिल के एक कोने में इन्सानी हमदर्दी का भाव छिपा था। सोचता था कि मेरे पास बहुत पैसा हुआ तो मैं जरूरतमंदों की मदद करूंगा। धीरे-धीरे मैं पॉप स्टार के रूप में मशहूर होने लगा। अभी मैं किशोर अवस्था ही में था कि फोटो सहित मेरा नाम मीडिया में छाने लगा। मीडिया ने मुझे उम्र से ज्यादा शोहरत दी। मैं जिन्दगी को भरपूर तरीके से जीना चाहता था। ऐशो आराम की जिन्दगी के चलते मैं नशे का आदी हो गया। शानदार कामयाबी और हाई-फाई रहन सहन का अभी लगभग एक साल ही गुजरा होगा कि मैं बहुत ज्यादा बीमार हो गया। मुझे टीबी हो गई और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पताल में बीमारी के दौरान मैं फिर से चिंतन करने लगा-मेरे साथ यह क्या हुआ? क्या मैं सिर्फ शरीर मात्र हूं? इन्द्रीय वासनाओं के वशीभूत होकर जिन्दगी गुजारना ही क्या मेरी जिन्दगी का मकसद है? मैं अब महसूस करता हूं कि मेरा यह चिंतन अल्लाह की दी हुई हिदायत और रहमत थी जो मेरी आंखें खोलना चाहती थीं।

अस्पताल में मैं खुद से सवाल करता-मैं यहां क्यों आया हूं? मैं बिस्तर पर क्यों पड़ा हूं? मैं इनके जवाब तलाशने लगा। इस समय पूर्वी देशों के रहस्यवाद में कई लोगों की दिलचस्पी थी। मैं भी रुचि लेने लगा। पहली चीज जिसको लेकर मैं जागरूक हुआ,वह थी मौत। मैंने और गौर फिक्र करना शुरू कर दिया और मैं शाकाहारी बन गया। मैं सोचता- मैं शरीर मात्र नहीं हूं। यह सारा चिंतन मैंने अस्पताल में ही किया। तबियत ठीक होने के बाद की बात है। एक दिन जब मैं टहल रहा था तो अचानक बारिश शुरू हो गई और मैं भीग गया। मै भागकर छत के नीचे खड़ा हो गया। उस वक्त मुझे एहसास हुआ मानो मेरा बदन मुझसे कह रहा है-मैं भीग रहा हूं। मुझे लगा मानो मेरा बदन गधे की तरह है जो मुझे जहां उसकी इच्छा हो रही है उधर खींच रहा है। मुझे महसूस हुआ जैसे यह विचार मेरे लिए ईश्वर का उपहार है,जिसने मुझे उसकी इच्छा का अनुसरण करने का एहसास कराया। इस बीच मेरा पूर्वी धर्मों की तरफ झुकाव हुआ। यहां मुझे धर्मों की नई परिभाषा देखने को मिली। दरअसल मैं ईसाईयत से ऊब चुका था। मैंने फिर से म्यूजिक बनाना शुरू कर दिया लेकिन इस बार मेरे संगीत में गहरा आध्यात्मिक पुट था। इस संगीत में रूहानियत थी और साथ में ईश्वर,स्वर्ग और नरक का जिक्र भी। मैंने-द वे टू फाइंड आउट गॉड गीत भी लिखा। अब तो मैं संगीत की दुनिया में और ज्यादा मशहूर हो गया।

दरअसल उस वक्त मैं मुश्किल दौर में था,क्योंकि मुझे पैसा और नाम मिलता जा रहा था जबकि मैं उस वक्त सच्चे ईश्वरीय रास्ते की तलाश में जुटा था। इस बीच मैं इस फैसले पर पहुंचा कि बौध्द धर्म उच्च और सच्चा धर्म है। लेकिन मेरी परेशानी यह थी कि बोध्द धर्म से जुडऩे के लिए मैं दुनियावी ऐशो आराम छोडऩे के लिए तैयार न था। दुनिया को छोड़कर संन्यासी बनना मेरे लिए मुश्किल था। इस बीच मैंने अंक विद्या,चिंग,टेरो कार्ड और ज्योतिष को खंगाालने की कोशिश की। मैंने फिर से बाइबल का अध्ययन किया लेकिन मेरी सच जानने की प्यास नहीं बुझी। इस वक्त तक मैं इस्लाम के बारे में कुछ भी नहीं जानता था। इस बीच एक अच्छी घटना घटी। मेरा भाई जब यरुशलम की मस्जिद में गया तो वहां मुसलमानों का खुदा के प्रति भरोसा,इबादत का तरीका और सुकूनभरे माहौल को देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ। वह जब यरुशलम से लौटा तो मेरे लिए कु रआन का एक अंगे्रजी अनुवाद लेकर आया। हालांकि मेरा भाई मुसलमान नहीं हुआ था, लेकिन उसे इस्लाम में कुछ खास होने का एहसास हुआ और उसे लगा कि इससे मुझे कु छ अच्छा हासिल होगा।

मैंने कुरआन पढऩा शुरू किया तो मुझे एक नई राह मिली। ऐसी राह जिसमें मुझे मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गए। मैं कौन हूं? मेरी जिन्दगी का मकसद क्या है? सच्चा मार्ग कौनसा है? मैं कहां से आया हूं और मुझे कहां जाना है? इन सारे सवालों के जवाब मैंने कुरआन में पाए। अब मुझे एहसास हो गया कि सच्चा धर्म तो इस्लाम है। यह ऐसा नहीं है जैसा पश्चिमी देशों में धर्म को लेकर अवधारणा है,जो सिर्फ बुढ़ापे के लिए माना जाता है। पश्चिमी देशों में धर्म को जीवन में लागू करने वाले व्यक्ति को धर्मांध माना जाता है। मैं पहले शरीर और आत्मा क ो लेकर गलतफहमी में था। अब मैंने महसूस किया कि शरीर और आत्मा एक -दूसरे से जुड़े हुए हैं। ईश्वर की इबादत के लिए पहाड़ों पर जाकर साधना करने की जरूरत नहीं है। हम रब की रजा हासिल करके फरिश्तों से भी ऊंचा मुकाम हासिल कर सकते हैं। यह सब कुछ जानने के बाद अब मेरी इच्छा जल्दी मुसलमान बनने की थी। मुझे महसूस हुआ कि हर एक चीज का जुड़ाव सर्वशक्तिमान ईश्वर से है और जो शख्स गाफिल है,वह ईश्वरीय राह नहीं पा सक ता। वही तो है सब चीजों का पैदा करने वाला। अब मुझमें घमण्ड कम होने लगा क्योंकि पहले मैं इस गलतफहमी में था कि मैं जो कुछ हूं अपनी मेहनत के बलबूते पर हूं। लेकिन अब मुझे एहसास हो गया था कि मैं खुद को बनाने वाला नहीं हूं और मेरी जिन्दगी का मकसद है कि मैं अपनी इच्छा सर्वशक्तिमान ईश्वर के सामने समर्पित कर दूं। ईश्वर के प्रति मेरा भरोसा मजबूत होता गया। मुझे लगा कि जिस तरह का मेरा यकीन है,उसके मुताबिक तो मैं मुस्लिम हूं। कुरआन पढ़कर मैंने जाना कि सभी पैगम्बर एक ही मैसेज और सच्चा मार्ग लेकर आए थे। फिर क्यों ईसाई और यहूदियों ने खुद को अलग-थलग कर लिया? मैं जान गया था कि यहूदी क्यों ईसा अलैहिस्सलाम क ो नहीं मानते और क्यों उन्होने उनके पैगाम को बदल डाला।

 ईसाई भी खुदा के कलाम को गलत समझ बैठे और उन्होने ईसा को खुदा बना डाला। यह कुरआन ही की खूबी है कि वह इंसान को गौर और फिक्र करने की दावत देता है और चाँद और सूरज को पूजने के बजाय सबको पैदा करने वाले सर्वशक्तिमान ईश्वर की इबादत के लिए उभारता है। कु रआन लोगों से सूरज,चाँद और खुदा की बनाई हुई हर चीज पर सोच-विचार करने पर जोर देता है। बहुत से अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के पार जाकर और विशालकाय अंतरिक्ष को देखकर अधिक आस्थावान हो गए क्योंकि उन्होने अल्लाह की यह खाास निशानियां देखीं। फिर जब मैंने कुरआन में आगे नमाज,जकात और अल्लाह के रहमो करम के बारे में पढ़ा तो मैं समझ चुका था कि कुरआन में मेरे हर एक सवाल का जवाब है और यह ईश्वर की तरफ से मेरे लिए गाइडेंस है। हालांकि मैं अभी तक मुसलमान नहीं हुआ था। मैं कुरआन की आयतों का बारीकी से अध्ययन करने लगा। कुरआन कहता है-ए ईमान वालो, अल्लाह से बगावत करने वालों को दोस्त मत बनाओ और ईमान वाले आपस में सब भाई हैं।यह आयत पढ़कर मैंने सोचा कि मुझे अपने मुस्लिम भाइयों से मिलना चाहिए। अब मैंने यरूशलम का सफर करने का इरादा किया। यरूशलम पहुंचकर मैं वहां की एक मस्जिद में जाकर बैठ गया। एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा-तुम यहां क्यों बैठे हो,क्या तुम्हें कोई काम है? नाम पूछने पर जब मैंने अपना नाम स्टीवन्स बताया तो वह कुछ समझ नहीं पाया। फिर मैं नमाज में शामिल हुआ हालांकि मैं सही तरीके से नमाज नहीं पढ़ पाया। मैं लंदन लौट आया। मैं यहां सिस्टर नफीसा से मिला और उनको बताया कि मैं इस्लाम ग्रहण करना चाहता हूं। सिस्टर नफीसा ने मुझे न्यू रिजेंट मस्जिद जाने का मशविरा दिया।

यह १९७७ की बात है और कुरआन का अध्ययन करते मुझे डेढ साल हो गया था। मैं मन बना चुका था कि अब मुझे अपनी और शैतान की ख्वाहिशें छोड़कर सच्ची राह अपना लेनी चाहिए। मैं जुमे की नमाज के बाद मस्जिद के इमाम के पास पहुंचा। हक को मंजूर कर लिया और इस्लाम का कलिमा पढ ़लिया। अब मुझे लगा मैं खुदा से सीधा जुड़ गया हूं। ईसाई और अन्य धर्मावलम्बियों की तरह किसी जरिए से नहीं बल्कि सीधा। जैसा कि एक हिन्दू महिला ने मुझसे कहा-तुम हिन्दुओं के बारे में नहीं जानते,हम एक ईश्वर में आस्था रखते हैं। हम तो उस ईश्वर में ध्यान लगाने के लिए मूर्तियों को माध्यम बनाते हैं। मुझे लगा क्या ईश्वर तक पहुंचने के लिए ऐसे साधनों की जरूरत है? लेकिन इस्लाम तो बन्दे और खुदा के बीच के ये सारे माध्यम और परदे हटा देता है। मैं बताना चाहूंगा कि मेरा हर अमल अल्लाह की खुशी के लिए होता है।मैं दुआ करता हूं कि मेरे अनुभवों से सबक मिले। मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि इस्लाम कबूल करने से पहले मैं किसी भी मुसलमान से नहीं मिला था। मैंने पहले कुरआन पढ़ा और जाना कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है जबकि इस्लाम हर मामले में पूर्णता लिए हुए है। अगर हम पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के बताए रास्ते पर चलेंगे तो कामयाब होंगे। अल्लाह हमें पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के बताए रास्ते पर चलने की हिदायत दें। आमीन यूसुफ इस्लामपूर्व नाम केट स्टीवन्स पता-चेयरमैन,मुस्लिम ऐड, ३ फरलॉन्ग रोड,लंदन,एन-७,यू के

- See more at: http://tijarat.co.in/article.php?id=53107

डॉक्टर कमला सुरैया ने इस्लाम धर्म कबूल किया

मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन है– डॉक्टर कमला सुरैया
“मुझे हर अच्छे मुसलमान की तरह इस्लाम की एक-एक शिक्षा से गहरी मुहब्बत है। मैंने इसे दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से अपना लिया है और धर्म के मुक़ाबले में दौलत मेरे नज़दीक बेमानी चीज़ है।”
डॉक्टर कमला सुरैया
(भूतपूर्व ‘डॉक्टर कमला दास’) » सम्पादन कमेटी ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इण्डिया’ से संबद्ध
» अध्यक्ष ‘चिल्ड्रन फ़िल्म सोसाइटी’
» चेयरपर्सन ‘केरल फॉरेस्ट्री बोर्ड’
» लेखिका, कवियत्री, शोधकर्ता, उपन्यासकार
» केन्ट अवार्ड, एशियन पोएटरी अवार्ड, वलयार अवार्ड, केरल साहित्य अकादमी
» अवार्ड—पुरस्कृत
» केरल, जन्म—1934 ई॰
» इस्लाम-ग्रहण—12 दि॰ 1999 ई॰

‘‘दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन है, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था है, और मैंने यह फै़सला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बड़ी गंभीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुंची हूं कि अन्य असंख्य ख़ूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और मैं इसकी बड़ी ही ज़रूरत महसूस करती थी…इसका एक अत्यंत उज्ज्वल पक्ष यह भी है कि अब मुझे अनगिनत ख़ुदाओं के बजाय एक और केवल एक ख़ुदा की उपासना करनी होगी।

यह रमज़ान का महीना है। मुसलमानों का अत्यंत पवित्र महीना और मैं ख़ुश हूं कि इस अत्यंत पवित्र महीने में अपनी आस्थाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर रही हूं तथा समझ-बूझ और होश के साथ एलान करती हूं कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्ल॰) अल्लाह के रसूल (दूत) हैं। अतीत में मेरा कोई अक़ीदा नहीं था। मूर्ति पूजा से बददिल होकर मैंने नास्तिकता अपना ली थी, लेकिन अब मैं एलान करती हूं कि मैं एक अल्लाह की उपासक बनकर रहूंगी और धर्म और समुदाय के भेदभाव के बग़ैर उसके सभी बन्दों से मुहब्बत करती रहूंगी।’’


‘‘मैंने किसी दबाव में आकर इस्लाम क़बूल नहीं किया है, यह मेरा स्वतंत्र फै़सला है और मैं इस पर किसी आलोचना की कोई परवाह नहीं करती। मैंने फ़ौरी तौर पर घर से बुतों और मूर्तियों को हटा दिया है और ऐसा महसूस करती हूं जैसे मुझे नया जन्म मिला है।’’
‘‘इस्लामी शिक्षाओं में बुरके़ ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हक़ीक़त यह है कि बुरक़ा बड़ा ही ज़बरदस्त (Wonderful) लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’ ‘‘आपको मेरी यह बात बड़ी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गयी हूं।

मुझे औरतों के नंगे मुंह, आज़ाद चलत-फिरत तनिक भी पसन्द नहीं। मैं चाहती हूं कि कोई मर्द मेरी ओर घूर कर न देखे। इसीलिए यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि मैं पिछले चौबीस वर्षों से समय-समय पर बुरक़ा ओढ़़ रही हूं, शॉपिंग के लिए जाते हुए, सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते हुए, यहां तक कि विदेशों की यात्राओं में मैं अक्सर बुरक़ा पहन लिया करती थी और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना से आनन्दित होती थी। मैंने देखा कि पर्देदार औरतों का आदर-सम्मान किया जाता है और कोई उन्हें अकारण परेशान नहीं करता।’’

‘‘इस्लाम ने औरतों को विभिन्न पहलुओं से बहुत-सी आज़ादियां दे रखी हैं, बल्कि जहां तक बराबरी की बात है इतिहास के किसी युग में दुनिया के किसी समाज ने मर्द और औरत की बराबरी का वह एहतिमाम नहीं किया जो इस्लाम ने किया है । इसको मर्दों के बराबर अधिकारों से नवाज़ा गया है। मां, बहन, बीवी और बेटी अर्थात इसका हर रिश्ता गरिमापूर्ण और सम्मानीय है। इसको बाप, पति और बेटों की जायदाद में भागीदार बनाया गया है और घर में वह पति की प्र्रतिनिधि और कार्यवाहिका है।

जहां तक पति के आज्ञापालन की बात है यह घर की व्यवस्था को ठीक रखने के लिए आवश्यक है और मैं इसको न ग़ुलामी समझती हूं और न स्वतंत्रताओं की अपेक्षाओं का उल्लंघन समझती हूं। इस प्रकार के आज्ञापालन और अनुपालन के बग़ैर तो किसी भी विभाग की व्यवस्था शेष नहीं रह सकती और इस्लाम तो है ही सम्पूर्ण अनुपालन और सिर झुकाने का नाम, अल्लाह के सामने विशुद्ध बन्दगी का नाम। अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) की सच्ची पैरवी का नाम, यही ग़ुलामी तो सच्ची आज़ादी की गारंटी देती है, वरना इन्सान तो जानवर बन जाए और जहां चाहे, जिस खेती में चाहे मुंह मारता फिरे। अतः इस्लाम और केवल इस्लाम औरत की गरिमा, स्थान और श्रेणी का लिहाज़ करता है। हिन्दू धर्म में ऐसी कोई सुविधा दूर-दूर तक नज़र नहीं आती।’’

‘‘हमें अपनी मां के फै़सले से कोई मतभेद नहीं। वह हमारी मां हैं, चाहे वे हिन्दू हों, ईसाई हों या मुसलमान, हम हर हाल में उनका साथ देंगे और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे।’’…..‘‘इससे मेरे इस विश्वास को ताक़त मिली है कि इस्लाम मुहब्बत और इख़्लास का मज़हब है। मेरी इच्छा है कि मैं बहुत जल्द इस्लाम के केन्द्र पवित्रा शहर मक्का और मदीना की यात्रा करूं और वहां की पवित्र मिट्टी को चूमूं।’’
‘‘मैंने अब बाक़ायदा पर्दा अपना लिया है और ऐसा लगता है कि जैसे बुरक़ा बुलेटप्रूफ़ जैकेट है जिसमें औरत मर्दों की हवसनाक नज़रों से भी सुरक्षित रहती है और उनकी शरारतों से भी। इस्लाम ने नहीं, बल्कि सामाजिक अन्यायों ने औरतों के अधिकार छीन लिए हैं। इस्लाम तो औरतों के अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक है।’’ ‘‘इस्लाम मेरे लिए दुनिया की सबसे क़ीमती पूंजी है। यह मुझे जान से बढ़कर प्रिय है और इसके लिए बड़ी से बड़ी क़ुरबानी दी जा सकती है।’’

‘‘मुझे हर अच्छे मुसलमान की तरह इस्लाम की एक-एक शिक्षा से गहरी मुहब्बत है। मैंने इसे दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से अपना लिया है और धर्म के मुक़ाबले में दौलत मेरे नज़दीक बेमानी चीज़ है।’’ ……‘‘मैं आगे केवल ख़ुदा की तारीफ़ पर आधारित कविताएं लिखूंगी। अल्लाह ने चाहा तो ईश्वर की प्रशंसा पर आधारित कविताओं की एक किताब बहुत जल्द सामने आ जाएगी।’’

‘‘मैं इस्लाम का परिचय नई सदी के एक ज़िन्दा और सच्चे धर्म की हैसियत से कराना चाहती हूं। जिसकी बुनियादें बुद्धि, साइंस और सच्चाइयों पर आधारित हैं। मेरा इरादा है कि अब मैं शायरी को अल्लाह के गुणगान के लिए अर्पित कर दूं और क़ुरआन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल कर लूं और उन इस्लामी शिक्षाओं से अवगत हो जाऊं जो दैनिक जीवन में रहनुमाई का सबब बनती हैं। मेरे नज़दीक इस्लाम की रूह यह है कि एक सच्चे मुसलमान को दूसरों की अधिक से अधिक सेवा करनी चाहिए। अल्लाह का शुक्र है कि मैं पहले से भी इस पर कार्यरत हूं और आगे भी यही तरीक़ा अपनाऊंगी। अतः इस संबंध में मैं ख़ुदा के बन्दों तक इस्लाम की बरकतें पहुंचाने का इरादा रखती हूं। मैं चाहती हूं कि इस्लाम की नेमत मिल जाने के बाद मैं ख़ुशी और इत्मीनान के जिस एहसास से परिचित हुई हूं उसे सारी दुनिया तक पहुंचा दूं।’’

‘‘सच्चाई यह है कि इस्लाम क़बूल करने के बाद मुझे जो इत्मीनान और सुकून हासिल हुआ है और ख़ुशी की जिस कैफ़ियत से मैं अवगत हुई हूं, उसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसके साथ ही मुझे सुरक्षा का एहसास भी प्राप्त हुआ है। मैं बड़ी उम्र की एक औरत हूं और सच्ची बात यह है कि इस्लाम क़बूल करने से पहले जीवन भर बेख़ौफ़ी का ऐसा ख़ास अंदाज़ मेरे तजुर्बे में नहीं आया। सुकून, इत्मीनान, ख़ुशी और बेख़ौफ़ी की यह नेमत धन-दौलत से हरगिज़ नहीं मिल सकती। इसीलिए दौलत मेरी नज़रों में तुच्छ हो गयी है।’’ Source : Times Of Muslim

डच राजनेता अनार्ड वॉन डूर्न ने इस्लाम धर्म कबूल किया

इस्लाम की आलोचना करने वाले डच राजनेता अनार्ड वॉन डूर्न ने इस्लाम धर्म कबूल किया

क्या ये संभव है कि जीवन भर आप जिस विचारधारा का विरोध करते आए हों एक मोड़ पर आकर आप उसके अनुनायी बन जाएं. कुछ ऐसा ही हुआ है नीदरलैंड में.लंबे समय तक इस्लाम की आलोचना करने वाले डच राजनेता अनार्ड वॉन डूर्न ने अब इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है.: @[156344474474186:]

अनार्ड वॉन डूर्न नीदरलैंड की घोर दक्षिणपंथी पार्टी पीवीवी यानि फ्रीडम पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्य रह चुके हैं. यह वही पार्टी है जो अपने इस्लाम विरोधी सोच और इसके कुख्यात नेता गिर्टी वाइल्डर्स के लिए जानी जाती रही है.

मगर वो पांच साल पहले की बात थी. इसी साल यानी कि 2013 के मार्च में अर्नाड डूर्न ने इस्लाम धर्म क़बूल करने की घोषणा की.
नीदरलैंड के सांसद गिर्टी वाइल्डर्स ने 2008 में एक इस्लाम विरोधी फ़िल्म ‘फ़ितना’ बनाई थी. इसके विरोध में पूरे विश्व में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं थीं.
“मैं पश्चिमी यूरोप और नीदरलैंड के और लोगों की तरह ही इस्लाम विरोधी सोच रखता था. जैसे कि मैं ये सोचता था कि इस्लाम बेहद असहिष्णु है, महिलाओं के साथ ज्यादती करता है, आतंकवाद को बढ़ावा देता है. पूरी दुनिया में इस्लाम के ख़िलाफ़ इस तरह के पूर्वाग्रह प्रचलित हैं.”
अनार्ड डूर्न जब पीवीवी में शामिल हुए तब पीवीवी एकदम नई पार्टी थी. मुख्यधारा से अलग-थलग थी. इसे खड़ा करना एक चुनौती थी. इस दल की अपार संभावनाओं को देखते हुए अनार्ड ने इसमें शामिल होने का फ़ैसला लिया.

» पहले इस्लाम विरोधी थे अनार्ड :
पार्टी के मुसलमानों से जुड़े विवादास्पद विचारों के बारे में जाने जाते थे. तब वे भी इस्लाम विरोधी थे.
वे कहते हैं, “उस समय पश्चिमी यूरोप और नीदरलैंड के बहुत सारे लोगों की तरह ही मेरी सोच भी इस्लाम विरोधी थी. जैसे कि मैं ये सोचता था कि इस्लाम बेहद असहिष्णु है, महिलाओं के साथ ज्यादती करता है, आतंकवाद को बढ़ावा देता है. पूरी दुनिया में इस्लाम के ख़िलाफ़ इस तरह के पूर्वाग्रह प्रचलित हैं.”
अनार्ड वॉन ने लंबे समय तक इस्लाम का विरोध करने के बाद अब इस्लाम धर्म क़बूल कर लिया है.साल 2008 में जो इस्लाम विरोधी फ़िल्म ‘फ़ितना’ बनी थी तब अनार्ड ने उसके प्रचार प्रसार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. इस फ़िल्म से मुसलमानों की भावनाओं को काफ़ी ठेस पहुंची थी. वे बताते हैं, “‘फ़ितना’ पीवीवी ने बनाई थी. मैं तब पीवीवी का सदस्य था. मगर मैं ‘फ़ितना’ के निर्माण में कहीं से शामिल नहीं था. हां, इसके वितरण और प्रोमोशन का हिस्सा ज़रूर था.” अनार्ड को कहीं से भी इस बात का अंदेशा नहीं हुआ कि ये फ़िल्म लोगों में किसी तरह की नाराज़गी, आक्रोश या तकलीफ़ पैदा करने वाली है. वे आगे कहते हैं, “अब महसूस होता है कि अनुभव और जानकारी की कमी के कारण मेरे विचार ऐसे थे. आज इसके लिए मैं वाक़ई शर्मिंदा हूं.”

» सोच कैसे बदली ?
अनार्ड ने बताया, “जब फ़िल्म ‘फ़ितना’ बाज़ार में आई तो इसके ख़िलाफ़ बेहद नकारात्मक प्रतिक्रिया हुई. आज मुझे बेहद अफ़सोस हो रहा है कि मैं उस फ़िल्म की मार्केटिंग में शामिल था.”
नीदरलैंड के सांसद गिर्टी वाइल्डर्स ने 2008 में इस्लाम की आलोचना करने वाली एक फ़िल्म बनाई थी.

» इस्लाम के बारे में अनार्ड के विचार आख़िर कैसे बदलने शुरू हुए ?
वे बताते हैं, “ये सब बेहद आहिस्ता-आहिस्ता हुआ. पीवीवी यानि फ़्रीडम पार्टी में रहते हुए आख़िरी कुछ महीनों में मेरे भीतर कुछ शंकाएं उभरने लगी थीं. पीवीवी के विचार इस्लाम के बारे में काफ़ी कट्टर थें, जो भी बातें वे कहते थे वे क़ुरान या किसी किताब से ली गई होती थीं.” इसके बाद दो साल पहले अनार्ड ने पार्टी में अपनी इन आशंकाओं पर सबसे बात भी करनी चाही. पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. तब उन्होंने क़ुरान पढ़ना शुरू किया. यही नहीं, मुसलमानों की परंपरा और संस्कृति के बारे में भी जानकारियां जुटाने लगें.

» मस्जिद पहुंचे :
अनार्ड वॉन डूर्न इस्लाम विरोध से इस्लाम क़बूल करने तक के सफ़र के बारे में कहते हैं, “मैं अपने एक सहयोगी से इस्लाम और क़ुरान के बारे में हमेशा पूछा करता था. वे बहुत कुछ जानते थे, मगर सब कुछ नहीं. इसलिए उन्होंने मुझे मस्जिद जाकर ईमाम से बात करने की सलाह दी.” उन्होंने बताया, “पीवीवी पार्टी की पृष्ठभूमि से होने के कारण मैं वहां जाने से डर रहा था. फिर भी गया. हम वहां आधा घंटे के लिए गए थे, मगर चार-पांच घंटे बात करते रहे.”
अनार्ड ने इस्लाम के बारे में अपने ज़ेहन में जो तस्वीर खींच रखी थी, मस्जिद जाने और वहां इमाम से बात करने के बाद उन्हें जो पता चला वो उस तस्वीर से अलहदा था. वे जब ईमाम से मिले तो उनके दोस्ताने रवैये से बेहद चकित रह गए. उनका व्यवहार खुला था. यह उनके लिए बेहद अहम पड़ाव साबित हुआ. इस मुलाक़ात ने उन्हें इस्लाम को और जानने के लिए प्रोत्साहित किया. वॉन डूर्न के मस्जिद जाने और इस्लाम के बारे में जानने की बात फ़्रीडम पार्टी के उनके सहयोगियों को पसंद नहीं आई. वे चाहते थे कि वे वही सोचें और जानें जो पार्टी सोचती और बताती है.

» अंततः इस्लाम क़बूल लिया :
फ़्रीडम पार्टी के नेता गीर्ट वाइलडर्स नीदरलैंड में बुर्के पर रोक लगाने की वकालत करते आए हैं. मगर इस्लाम के बारे में जानना एक बात है और इस्लाम धर्म क़बूल कर लेना दूसरी बात. पहले पहले अर्नाड के दिमाग़ में इस्लाम धर्म क़बूल करने की बात नहीं थी. उनका बस एक ही उद्देश्य था, इस्लाम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना. साथ ही वे ये भी जानना चाहते थे कि जिन पूर्वाग्रहों के बारे में लोग बात करते हैं, वह सही है या यूं ही उड़ाई हुई. इन सबमें उन्हें साल-डेढ़ साल लग गए. अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस्लाम की जड़ें दोस्ताना और सूझ बूझ से भरी हैं. इस्लाम के बारे में ख़ूब पढने, बातें करने और जानकारियां मिलने के बाद अंततः उन्होंने अपना धर्म बदल लिया.
अनार्ड के इस्लाम क़बूलने के बाद बेहद मुश्किलों से गुज़रना पड़ा. वे कहते हैं, “मुझपर फ़ैसला बदलने के लिए काफ़ी दबाव डाले गए. अब मुझे ये समझ में आ रहा था कि मेरे देश नीदरलैंड में लोगों के विचार और सूचनाएं कितनी ग़लत हैं.”

» परिवार और दोस्तों को झटका :
अनार्ड अब इस्लाम को दोस्ताना और सूझ बूझ से भरे संबंधों वाला मानते हैं. परिवार वाले और दोस्त मेरे फ़ैसले से अचंभित रह गए. मेरे इस सफ़र के बारे में केवल मां और मंगेतर को पता था. दूसरों को इसकी कोई जानकारी नहीं थे. इसलिए उन्हें अनार्ड के मुसलमान बन जाने से झटका लगा. कुछ लोगों को ये पब्लिसिटी स्टंट लगा, तो कुछ को मज़ाक़.
अनार्ड कहते हैं कि अगर ये पब्लिसिटी स्टंट होता तो दो-तीन महीने में ख़त्म हो गया होता. वे कहते हैं, “मैं बेहद धनी और भौतिकवादी सोच वाले परिवार से हूं. मुझे हमेशा अपने भीतर एक ख़ालीपन महसूस होता था. मुस्लिम युवक के रूप में अब मैं ख़ुद को एक संपूर्ण इंसान महसूस करने लगा हूं. वो ख़ालीपन भर गया है.” (बीबीसी से बातचीत पर आधारित)

- See more at : Freedom for writing

भारत के मुसलमानों से कुछ सीखो

जो देश के विरुद्ध शस्त्र उठाता है, उसे खंडित करने का इरादा रखता है, अराजकता का माहौल बनाकर लोगों को भड़काता है, देश के दुश्मन की ओर से जासूसी करता है या गलत काम में उसकी मदद करता है, मेरी नजर में वह देशद्रोही है। मेरा स्पष्ट मत है कि उस शख्स का नाम-गांव, पता-ठिकाना, धर्म-मजहब बाद में पूछो, पहले मृत्युदंड दो।

कोई भी देश यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकता कि आप उसके शत्रु का साथ दें। आपको तय करना होगा कि या तो देश के साथ हैं या फिर दुश्मन के साथ। इसके बाद आपकी मर्जी है कि जहां मन चाहे, चले जाएं।

मगर देशद्रोह के दायरे में सिर्फ इतनी-सी बातें नहीं आतीं। अगर मैं बेगुनाह नागरिकों को मारता हूं, दहशत का माहौल बनाता हूं, मेहनत करना नहीं चाहता लेकिन सब सुविधाएं घर बैठे हासिल करना चाहता हूं, राष्ट्र की संपत्ति को जानबूझकर नुकसान पहुंचाता हूं, ट्रेन की पटरियां उखाड़ता हूं, बसों में आग लगाता हूं, एंबुलेंस का रास्ता रोकता हूं, तो ये काम किसी भी दृष्टि से देशभक्ति के नहीं हैं। चाहे ये खोटे कर्म करते हुए मैं वंदे मातरम के कितने भी नारे लगाऊं, यह देशद्रोह है। भले ही आप इससे सहमत हों या न हों।

देश में आरक्षण की आग लगी हुई है। हरियाणा जल रहा है, अब इसकी आंच राजस्थान में भी पहुंच चुकी है। जाट आरक्षण की ज्वाला से देश फूंक रहे हैं, अब राजपूत कमर कसने की तैयारी में हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि फिर गुर्जर, ब्राह्मण या किसी और जाति के शुभचिंतक अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने आ जाएं।

लोग नादान हैं। यह चूल्हा देश की बर्बादी से लगी आग में जल रहा है और लोगों के हिस्से कुछ नहीं आएगा। हां, नेताओं के वारे-न्यारे हो सकते हैं। मेरा आप सबसे एक सवाल है। मैं यह नहीं पूछूंगा कि आरक्षण सही है या गलत लेकिन यह पूछना चाहूंगा कि आरक्षण मांगने का यह तरीका कितना सही है?

आपको क्या हक है कि सार्वजनिक संपत्ति को आग के हवाले करें? इनमें से ऐसे काफी लोग होंगे जो बात-बात पर हर किसी से देशभक्ति का प्रमाण पत्र मांगने लगते हैं लेकिन जब इनकी आजमाइश होती है तो विनाश का तांडव मचा देते हैं। मुझे तो किसी भी नजरिए से यह काम देशभक्ति का नहीं लगता।

आरक्षण की मांग कई बार हो चुकी है। विभिन्न धर्मों के लोग अलग-अलग आधार पर आरक्षण की मांग कर चुके हैं लेकिन जैसा बवंडर हमने मचाया है, वैसा कोई नहीं मचाता। इस मामले में मैं भारत के मुसलमानों की दिल से तारीफ करता हूं। कम से कम वे आरक्षण के नाम पर देश को फूंकने की ऐसी हरकत तो नहीं करते। मैं इनके सब्र की प्रशंसा करता हूं।

कल्पना कीजिए, अगर हरियाणा और राजस्थान में जो काम हमारे हिंदू भाई कर रहे हैं, अगर वैसा ही मुसलमान भी करते तो लोगों की प्रतिक्रिया क्या होती?

बेशक, कोई कहता कि ये तो दूसरा पाकिस्तान बनाने चले हैं, एक पाकिस्तान से इनका पेट नहीं भरा, अब देश के और टुकड़े करने चले हैं, यह भारत को तोडऩे की साजिश है और मुसलमान इसमें भागीदार बन रहे हैं…।

यकीनन, लोग ऐसा ही कहते। कदम-कदम पर इन लोगों से देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांगा जाता लेकिन भारत का मुस्लिम समाज आरक्षण के नाम पर ऐसे हुड़दंग नहीं मचाता। वह मेहनत करना जानता है। छोटी-मोटी दुकान चलाकर रोटी कमा लेगा, अरब के तपते रेगिस्तान में घर और वतन से बहुत दूर रह लेगा लेकिन यूं बात-बात पर आरक्षण की आग नहीं लगाएगा।

यह इस मुल्क से मुहब्बत का निशानी है। हां, मुसलमानों में कोई आदमी बुरा हो सकता है, गुनाह कर सकता है, लेकिन मैं बात आरक्षण की कर रहा हूं। मुसलमानों ने आरक्षण के नाम पर ऐसा शर्मनाक हुल्लड़ कभी नहीं मचाया जैसा आज हमने मचा रखा है।

चलते-चलते एक और बात…
जो लोग हर मुद्दे पर दूसरों से देशभक्ति का सबूत मांगते हैं, क्या वे आरक्षण की आग में ट्रेन, बस और घर जलाने वालों से राष्ट्रभक्ति का सबूत मांगेंगे?
वे अब तक खामोश क्यों हैं?
राष्ट्र को नुकसान पहुंचा चुके इन लोगों को वे गद्दार कब घोषित करेंगे?
आप हर गद्दार को पाकिस्तान भेजने का ऐलान करते हैं, फिर इन गुनहगारों के लिए पाकिस्तान का टिकट क्यों नहीं मांगते?

एक बार भेजकर देखिए, अपना घर जलाने वालों को तो पाकिस्तान भी घर नहीं देगा।
राजीव शर्मा –
गांव का गुरुकुल से

Sunday, February 21, 2016

RSS की सच्चाई RSS की ज़ुबानी, एक किताब जिसने तहलका मचा दिया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दावा करता है कि वह इस देश का सबसे बड़ा रखवाला, सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त और सबसे बड़ा वफ़ादार है! वह और उसके सहयोगी संगठन तथा व्यक्ति लगातार इस प्रचार में लगे हैं कि आरएसएस और देशभक्ति एक दूसरे के पर्याय हैं।

इस देश में कौन वफ़ादार है और कौन नहीं, इसका प्रमाण पत्र देने का ठेका भी आरएसएस ने अपने सर ले रखा है। जबकि आरएसएस एक ऐसा संगठन है जो न तो स्वतंत्र भारत के संविधान, राष्ट्र-ध्वज (तिरंगा) और प्रजातांत्रिक-धर्मनिर्पेक्ष जैसी राष्ट्रीय मान्यताओं में विश्वास करता है और न ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम से इसका कोई लेना देना था। आरएसएस स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने प्राण निछावर करने वाले शहीदों को कितनी हीन दृष्टि से देखता था यह जान कर किसी भी देशवासी को ग़ुस्सा आना लाज़मी है।

आरएसएस दलितों और महिलाओं के बारे में जो शर्मनाक और अमानवीय दृष्टिकोण रखता है उससे संबंधित तथ्य भी इस पुस्तिका में उपलब्ध कराये गये हैं। आरएसएस के अपने दस्तावेज़ों के माध्यम से उसके असली चेहरे को पाठकों के सामने पेश करने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका से संबंधित सच्चाईयों को जानने की भी कोशिश की गई है। आरएसएस के दस्तावेज़ों मंे मौजूद सच्चाइयां यक़ीनन उन लोगों को बहुत निराशा करेंगी जो अभी तक यह मानते रहे हैं कि आरएसएस अंग्रेज़ों के उपनिवेशिक शासन से भारत की मुक्ति चाहता था या वह स्वतंत्र भारत के जनतांत्रिक संविधानिक ढांचे के प्रति वफ़ादार है। इस संगठन के विभिन्न प्रकाशन यह सिद्ध करते हैं कि आरएसएस इस देश के लिए एक बड़ा ख़तरा है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। ख़ास तौर पर ऐसी सथिति में जबकि देश में सन् 1998 से 2004 तक रहे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और गृहमंत्री, लाल कृष्ण आडवानी ने यह बताया हो कि आरएसएस की हैसियत उनके लिए वही है जो जवाहर लाल नेहरू के लिए गांधी जी की थी। इस तरह हमारे जनतांत्रिक और धर्म निरपेक्ष देश के सामने कितने गम्भीर ख़तरे हैं, इसका अनुमान लगाना ज़रा भी मुश्किल काम नहीं है।

अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने बार-बार खुद को आरएसएस का ‘स्वयंसेवक’ घोषित किया। 2014 में सत्तासीन हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके मंत्रीमंडल के कई सदस्सय और राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री स्वयं को आरएसएस का सदस्सय बता रहे हैं। लाल कृष्ण आडवाणी ने तो आरएसएस को भाजपा के लिए ‘नाभी नाल’ की संज्ञा दी। उनका स्पष्ट तात्पर्य था कि आरएसएस उनके लिए वह सब ख़ुराक उपलब्ध कराता है जो एक मां अपने पेट में पल रहे बच्चे को जि़ंदा रहने के लिए ‘नाभी नाल’ द्वारा पहुंचाती है। आरएसएस अब ‘गै़र राजनैतिक’ संगठन न रहकर अपने असली रंग में मुस्लिम लीग के पद चिन्हों पर चल रहा है। यह इस देश को धार्मिक राष्ट्र में परिवर्तित करने के काम में जुटा है। अगर देशवासी इस भीतरघात के प्रति समय रहते सचेत न हुए तो इस देश को विनाश से कोई नहीं बचा पाएगा।

हमें अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की विनाश लीला से सबक़ सीखना ज़रूरी है। सन् 1947 में पाकिस्तान ने एक धार्मिक राष्ट्र बनने का निर्णय लिया था। धार्मिक राष्ट्र पाकिस्तान में जो कुछ हुआ और हो रहा है वह सब हमारे देश के लिए भी एक चेतावनी है। आरएसएस हमारे देश को उसी पथ पर ले जाना चाहता है जिस पर चल कर पिछले 65 सालों में पाकिस्तान विनाश के कागार पर पहुँच गया है। हमें हर हालत में अपने प्यारे देश को आरएसएस की इस विनाश-यात्रा की योजना से बचाना होगा।

इस किताब को आप Amazon पर खरीद सकते हैं

UPUKlive.com

Thursday, February 18, 2016

ग़ैर मुस्लिम की नज़र में इस्लाम

किसी धर्म ने न्याय को इतनी महानता नहीं दी है, जितनी इस्लाम ने | इस्लाम की बुनियाद न्याय पर रख्खी गई है |
मुंशी प्रेमचंद (प्रसिद्ध साहित्यकार)
(इस्लामी सभ्यता साप्ताहिक प्रताप विशेषांक दिसम्बर १९२५)

“जहाँ तक हम जानते हैं, किसी धर्म ने न्याय को इतनी महानता नहीं दी जितनी इस्लाम ने। …इस्लाम की बुनियाद न्याय पर रखी गई है। वहाँ राजा और रंक, अमीर और ग़रीब, बादशाह और फ़क़ीर के लिए ‘केवल एक’ न्याय है। किसी के साथ रियायत नहीं किसी का पक्षपात नहीं। ऐसी सैकड़ों रिवायतें पेश की जा सकती है जहाँ बेकसों ने बड़े-बड़े बलशाली आधिकारियों के मुक़ाबले में न्याय के बल से विजय पाई है। ऐसी मिसालों की भी कमी नहीं जहाँ बादशाहों ने अपने राजकुमार, अपनी बेगम, यहाँ तक कि स्वयं अपने तक को न्याय की वेदी पर होम कर दिया है। संसार की किसी सभ्य से सभ्य जाति की न्याय-नीति की, इस्लामी न्याय-नीति से तुलना कीजिए, आप इस्लाम का पल्ला झुका(भारी) हुआ पाएँगे…।’’

“जिन दिनों इस्लाम का झंडा कटक से लेकर डेन्युष तक और तुर्किस्तान से लेकर स्पेन तक फ़हराता था मुसलमान बादशाहों की धार्मिक उदारता इतिहास में अपना सानी (समकक्ष) नहीं रखती थी। बड़े से बड़े राज्यपदों पर ग़ैर-मुस्लिमों को नियुक्त करना तो साधारण बात थी, महाविद्यालयों के कुलपति तक ईसाई और यहूदी होते थे…”

“यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि इस (समता) के विषय में इस्लाम ने अन्य सभी सभ्यताओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है। वे सिद्धांत जिनका श्रेय अब कार्ल मार्क्स और रूसो को दिया जा रहा है वास्तव में अरब के मरुस्थल में प्रसूत हुए थे और उनका जन्मदाता अरब का वह उम्मी (अनपढ़, निरक्षर व्यक्ति) था जिसका नाम मुहम्मद (सल्ल॰) है। मुहम्मद (सल्ल॰) के सिवाय संसार में और कौन धर्म प्रणेता हुआ है जिसने ख़ुदा के सिवाय किसी मनुष्य के सामने सिर झुकाना गुनाह ठहराया है…?” – Ummat-e-Nabi

“कोमल वर्ग के साथ तो इस्लाम ने जो सलूक किए हैं उनको देखते हुए अन्य समाजों का व्यवहार पाशविक जान पड़ता है। किस समाज में स्त्रियों का जायदाद पर इतना हक़ माना गया है जितना इस्लाम में? … हमारे विचार में वही सभ्यता श्रेष्ठ होने का दावा कर सकती है जो व्यक्ति को अधिक से अधिक उठने का अवसर दे। इस लिहाज़ से भी इस्लामी सभ्यता को कोई दूषित नहीं ठहरा सकता।”

“हज़रत (मुहम्मद सल्ल॰) ने फ़रमाया—कोई मनुष्य उस वक़्त तक मोमिन (सच्चा मुस्लिम) नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई-बन्दों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है। … जो प्राणी दूसरों का उपकार नहीं करता ख़ुदा उससे ख़ुश नहीं होता। उनका यह कथन सोने के अक्षरों में लिखे जाने योग्य है.

‘‘ईश्वर की समस्त सृष्टि उसका परिवार है वही प्राणी ईश्वर का (सच्चा) भक्त है जो ईश्वर के बन्दों के साथ नेकी करता है।’’ …अगर तुम्हें ईश्वर की बन्दगी करनी है तो पहले उसके बन्दों से मुहब्बत करो।’’

“सूद (ब्याज) की पद्धति ने संसार में जितने अनर्थ किए हैं और कर रही है वह किसी से छिपे नहीं है। इस्लाम वह अकेला धर्म है जिसने सूद को हराम (अवैध) ठहराया है …”

Sunday, February 14, 2016

रिसर्च – ब्राह्मणों के 99 प्रतिशत डीएनए यहूदियों से मिलते है



Home पाठको के लेख
रिसर्च – ब्राह्मणों के 99 प्रतिशत डीएनए यहूदियों से मिलते है
January 28, 2016

JEWS AND BRAHMIN
यूरोपियन लोगो को हजारो सालो से भारत के लोगो में बहोत जादा interest है.
क्यूँ की यहाँ व्यवस्था है -,
धर्मव्यवस्था है,
वर्णव्यवस्था है,
जातिव्यवस्था है ,
अस्पृश्यता है,
रीती रिवाज है,
जिसने हजारो सालो से विदेशियों की जिज्ञासा को जगाया.की ये जो खास विशेषता है भारत के लोगो की जिसका मिलन कहीं दुनिया में नहीं होता.

इसीलिए वैज्ञानिको को हमेशा ये जिज्ञासा रही कि इस विशेषता का “मूल” कारण क्या है. मुश्किल हालात होने के बावजूद भी उसे हमेशा प्रेरित किया.इस वजह से इनके माध्यम से शोध हो रहा है ॥

अमेरिका के उताह विश्वविद्यालय (washington) में माइकल बामशाद जो Biotechnology Dept. का HOD हैं . इसने ये प्रोजेक्ट तैयार किया था। उसे अगर लागू कर दिया जाए कैसे ? क्योंकि भारत के लोग इस conclusion को मान्यता देने से इनकार कर देंगे। इसीलिये उसने एक और रास्ता निकाला .भारत के वैज्ञानिको को involve करके उसे transperent method से प्रोजेक्ट तैयार किया जाये। इसीलिए मद्रास विशाखापटटनम का Biotec.Dept.,भारत सरकार का मानववंश शास्त्र – enthropology के लोग मिलकर प्रोजेक्ट में शामिल किया जो joint प्रोजेक्ट था. उन्होंने research किया .सारे दुनिया के sample के आधार पर उन्होंने ब्राम्हणों का DNA compare (सारे जाती धर्म के लोगो के साथ) किया गया.।

यूरेशिया प्रांत में मोरुवा समूह है रशिया के पास काला सागर नमक area में ,अस्किमोझी भौगोलिक क्षेत्र में,** मोरू नाम का DNA भारत के ब्राम्हणों के साथ मिला.इसीलिए ब्राम्हण भारत के नहीं है.** महिलाओं में mitocondriyal DNA(जो हजारो सालो बाद भी सिर्फ महिला से महिला ही ट्रान्सफर होता है) के आधार पर compare किया गया.विदेशी महिलाओं के साथ का DNA भारत की *sc,st,obc* की महिलाओं के साथ नहीं मिला.। बल्कि ब्राम्हण के घरों में जो महिलाएं है.उनका *DNA sc,st,obc* के महिलाओं के साथ मिला. आर्यन,वैदिक ये theory हुआ करती थी.अब तो इसका 100% वैज्ञानिक प्रमाण ही मिल गया है.
सारी दुनिया के साथ साथ भारत के भी सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मान्यता दी है.

COLBY_press_release_NG_1400709-599x400
क्यूँ कि यह प्रमाणित हो गया है. DNA कितना मिला किसका यूरेशियन के साथ
१)ब्राम्हण =99.90%
2) क्षत्रिय=99.88%
३)वैश्य=99.86% .

राजन दीक्षित नाम का ब्राम्हण (oxford में प्रोफेसर है) ने किताब लिखी. उनके चाचा जोशी है पूना में उन्होने वो किताब publish की india में. के **“ब्राम्हण का DNA और रशिया के पास काला सागर area में ,मोरुआ लोगो का और यहूदी (ज्यूज=हिटलर ने जिनको मारा था) लोगो का DNA एक ही है **.” ऐसा क्यों किया उसने क्यों की अमेरिकन लोग भारत के लोगो को अमेरिका में asian ना कहें!! . राजन दीक्षित ने बामशाद के ही संशोधन को आधार बनाकर exactly वो प्रांत ,आप जो यूरेशिया कह रहे हो ये कहाँ है, वो भी बताया.(राजन दीक्षित=एक महान संशोधक. ये आदमी सही मायने में भारतरत्न का हक़दार है).

DNA टेस्ट की जरुरत क्यों पड़ी???
संस्कृत और यूरोपियन language में हजारो शब्द एक जैसे मिले है.फिर भी ब्राम्हणों ने नहीं माना.फिर ये बात पुरातत्व विभाग ने सिद्ध की,मानववंशशास्त्र विभाग ने सिद्ध की,भाषाशास्त्र विभाग ने सिद्ध की फिर भी ब्राम्हणों ने नहीं माना जो की सच था। वो खुद भी जानते थे.कि ब्राम्हण भ्रांतिया पैदा करने में बहोत माहिर लोग है । इस महारथ में पूरी दुनिया में उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। इसीलिए DNA के आधार पर संशोधन हुआ.। ब्राम्हणों का DNA प्रमाणित होने के बाद उन्होंने सोचा के अगर हम लोग अब इस बात का विरोध करते हैं तो दुनिया की नजर में हम लोग बेवकूफ साबित हो जायेंगे. दोनों तथ्यों पर चर्चा होने वाली थी इसीलिए उन्होंने चुप रहने का निर्णय लिया.। ”ब्राम्हण जब जादा बोलता है तो खतरा है .ब्राम्हण जब मीठा बोलता है तो खतरा नजदीक में पहुँच गया है और जब ब्राम्हण बिलकुल ही नहीं बोलता.एकदम चुप हो जाता है तो भी खतरा है.। its a conspiracy of silence= Dr.B.R.Ambedkar”.। अगर वो कुछ छुपा रहे हैं तो हमें जोर से बोल देना चाहिए.

इसका DNA टेस्ट का परिणाम क्या हुआ.??
अब हमें सारा का सारा इतिहास नए सिरे से लिखना होगा .जो भी लिखा है अनुमान प्रमाण पर .। अब DNA को आधार बनाकर आप विश्लेषण कर सकते हो .जो ऐसा नहीं करेगा उसे लोग backward historian कहेंगे.
DNA ट्रान्सफर होता है पीढ़ी से पीढ़ी without change. ।

आक्रमणकारी लोग हमेशा अल्पसंख्याक होते है और वहां की प्रजा बहुसंख्यांक होती है
और जब आपस में वो आते हैं .तो हमेशा अल्पसंख्याक लोगो के मन में बहुसंख्यांक लोगो के प्रति inferiority complex develop होता है । .जनसंख्या के घनत्व की physchology होती है.। इसीलिए उस समय ब्राम्हणों के मन में हीन भावना पैदा हो गया होगा .अपनी हिन् भावना को इन पराजित लोगो में ट्रान्सफर करने के लिए उन्होंने योजना बनायीं.।

INDIA WAR COUNCIL
युद्ध में पराजित किये हुये लोगो को गुलाम बनाना एक बात है और गुलाम बनाये हुये लोगो को हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखना ये दूसरी बात है .ये समस्या ब्राम्हणों के सामने थी.।

*रुग्वेद में ब्राम्हणों को देव कहा जाता था(देवासुर संग्राम = देव + असुर) मूलनिवासियों को दैत्य,दानव,राक्षस,शुद्र,असुर कहते थे.।
ये evidence है .। अब देव ब्राम्हण कैसे हो गए???

दीर्घकाल तक लोगो को गुलाम बनाये रखने के लिए उनको व्यवस्था बनानी पड़ी. इसीलिए उन्होंने वर्णव्यवस्था बनायीं.। दैत्य,दानवो का नाम परिवर्तन करके उनको शुद्र घोषित किया.क्रमिक असमानता है तो ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य को अधिकार है तो शुद्र को भी अधिकार होना चाहिए .मगर वो अधिकार वंचित है .ऐसा क्यूँ किया??

खुद को ब्राम्हण घोषित करने के लिए .। ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य अगर एक ही है तो उन्होंने अपने को ३ हिस्सों में क्यूँ बाटा????

हमको शुद्र घोषित, याने गुलाम बनाने के लिए व्यवस्था बनाना जरुरी था. संस्कृतभाषा में वर्ण का अर्थ होता है रंग.इसका मतलब है की ये रंगव्यवस्था है (वर्णव्यवस्था). संस्कृत डिक्शनरी में भी आपको ये मिलेगा. ये वर्णव्यवस्था/रंगव्यवस्था क्यूँ है????

क्यूँ के ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य ये एक ही रंग के लोग हैं. इसीलिए रंगव्यवस्था में ये अधिकार संपन्न है.।
चौथे रंग का आदमी उस रंग का नहीं है अर्थार्त.इसिलए अधिकार वंचित है.DNA की वजह से ये विश्लेषण करना संभव है. Racial Discrimination Ideology है ब्राम्हणवाद. .वर्णव्यवस्था बनाने से गुलाम बनाना और दीर्घकाल तक गुलाम बनाये रखना ब्राम्हणों को संभव हुआ.

ब्राम्हणों ने सभी धर्मशास्त्रों में सभी महिलाओं को शुद्र घोषित क्यूँ किया ???? 
ये आजतक का सबसे मुश्किल सवाल था .ब्राम्हण की माँ,बेटी,बहन,बीवी को भी उन्होंने शुद्र घोषित किया. DNA में **mitocondriyal DNA** के आधार पर ये सिद्ध हुआ.। ब्राम्हणों के महिला और एससी एसटी और ओबीसी महिला का DNA मिलता है .वो जानते थे की जब उन्होंने प्रजनन के लिए यहीं की महिलाओं का उपयोग किया है.इसीलिए उन्हें शुद्र वर्ण में ढकेल दिया.।

इसीलिए ब्राम्हण हमेशा purity की बात करता है.आदमी का DNA आदमी में ट्रान्सफर होता है. ये बात वो जानते थे इसीलिए औरत को तो वो हमेशा पाप योनी मानता आया है.क्यूँ की वो उनकी कभी नहीं थी. DNA और धर्मशास्त्र दोनों के आधार पर ये सिद्ध कर सकते हैं. इससे ये भी सिद्ध हुआ के आर्य ब्राम्हण स्थलांतरित नहीं हुये थे.वो आक्रमण करने के लिए ही यहाँ आये थे .क्यूँ के जो आक्रमण करने के लिए आतें हैं ,उनके साथ महिलाएं बिलकुल भी वो नहीं लातें हैं । .ऐसी उस समय दृढ़ मान्यता भी थी.इसीलिए उनका आक्रमणकारी स्वभाव आजतक बना हुआ है….

**बुद्ध ने वर्णव्यवस्था को समाप्त किया.**
ओबीसी / एससी / एसटी के गुलामी के विरोध में लढने वाला वो सबसे बड़ा पुरखा है .इसका मतलब है वर्णव्यवस्था बुद्धपूर्वकाल में विद्यमान थी.ये evidence है.इस जनआंदोलन में बुद्ध को मूलनिवासियों ने ही सबसे जादा जनसमर्थन दिया.तो जैसे ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त हुई और चतुसुत्री पर आधारित नई समाज रचना का निर्माण हुआ.उसमे समता,स्वतंत्रता,बंधुता और न्याय पर आधारित समाजव्यवस्था निर्माण की गयी.। इसका मतलब है की बुद्ध गुलामी के विरोध में लढ रहे थे.

BUDDHA
इस क्रांति के बाद ही प्रतिक्रांति हुई जो पुष्यमित्र शुंग(राम) ने बृहदत्त की हत्या करके की .वाल्मीकि शुंग के दरबार में राजकवि था और उसे सामने रखकर ही रामायण लिखी गयी .इसका evidence रामायण में खुद है.हत्या पाटलिपुत्र में हुई थी.शुंग की राजधानी अयोध्या है और रामायण में राम की राजधानी भी अयोध्या है archeological evidence है.कोई भी राजा अपनी राजधानी का निर्माण करता है .तो वो उसे युद्ध करके जीतता है ,फिर अपनी राजधानी खड़ीं करता है.मगर अयोध्या युद्ध जीतकर खड़ीं की गयी राजधानी नहीं थी .इसीलिए उसका नाम रक्खा अयोध्या.(अ+योध्या) . युद्ध ना होकर निर्माण की गयी राजधानी .शुंग ने अश्वमेध यज्ञ किया.रामायण में रामने भी अश्वमेध यज्ञ किया.

ये जो प्रतिक्रांति शुंग ने की इसके बाद जातिव्यवस्था का निर्माण हुआ.पहले गुलाम बनाने के लिए वर्णव्यवस्था और क्रांति के बाद जब प्रतिक्रांति हुई उसके बाद जातिव्यवस्था का निर्माण हुआ.फिर उन्होने योजना बनायीं के हमेशा के लिए अब बहुजनों का प्रतिकार ख़त्म कर दिया जाये.बिलकुल भी लायक ना रक्खा जाये.इसीलिए उन्होंने बहुजनों को 6000 अलग अलग जातियों के टुकडो में बाटां.इससे इन लोगो की एक pshychology तैयार हो गयी के हम प्रतिकार करने लायक नहीं है.। गुलामो की ही ऐसी प्रतिक्रिया होती है.ये सबुत है गुलामी का .दुनिया में जाती व्यवस्था नहीं है इसीलिए दुनिया में कुटुंब व्यवस्था नहीं है.बुढोके लिए old age home है foreign में.।

जाति व्यवस्था को फिरसे क्रमिक असमानता पर खड़ा किया ब्राम्हणों ने .अ-समान लोग आपस में समान होने चाहिए थे मगर क्रमिक असमानता में अ-समान लोग भी आपस में समान नहीं है। .प्रतिकार अंदर ही अंदर होता है .जिसने गुलामी लादी उसके बारे में प्रतिकार करने का खयाल ही नहीं आता.। ब्राम्हणों ने जातीअंतर्गत लढाई शरू करवा दी .ये DNA सिद्ध करता है की निर्माणकर्ता ब्राम्हण है.उसने सभी को विभाजित किया लेकिन खुद को कभी भी विभाजित नहीं होने दिया .

जाती को बनाये रखने के साथ ब्राम्हणों की supremacy जुडी हुई है .इसीलिए उनके सामने ये हमेशा संकट खड़ा रहा की कैसे इस जातिव्यवस्था को बनाये रक्खा जाये . Evidence= कन्यादान system = ये कोई वस्तु नहीं है दान करने के लिए .धार्मिक व्यवस्था इस के लिए ऐसी बनायीं गयी.स्त्री अगर उपवर हो गयी ,शादी योग्य हो गयी तो उसकी शादी करने के की जिम्मेदारी माँ,बाप की ही होगी . Bramhanical Social Order. परिवार ही शादी करेगा.अगर कन्या खुद अपनी पसंद से शादी करेगी तो जाती के बहार जाकर शादी कर सकती है । । .तो जातिव्यवस्था ख़तम हो जाएगी। । .ब्राम्हण की supremacy ख़तम जो जाएगी .तो बहुजनों की गुलामी ख़तम हो जाएगी.ये नहीं होना चाहिए .इसीलिए कन्यादान system निकाला .

*****बालविवाह=
कन्या के विवाह योग्य होने के पहले ही शादी कर दी जाये.क्यों कि विवाह योग्य होगी तो अपने पसंद से शादी कर सकती है .इसीलिए बचपन में ही उसकी व्यवस्था कर दी .माँ,बाप जाती अंतर्गत ही शादी करेंगे.For more information read Cast in india & anhilation of cast= *Dr.B.R Ambedkar* .

*****विधवाविवाह=
विधवाविवाह पर पाबंदी क्यों थी??? अगर किसी विधवा से कोई शादी योग्य लड़का समाज के अंदर का उससे हुई.तो समाज में उसके लिए एक लड़के की कमी होगी .वो लड़की जाती के बाहर जाकर शादी कर सकती है .तो भी जाती व्यवस्था खतरे में पड़ेगी.जाती अंतर्गत विवाह जाती बनाये रखने का सूत्र है.

जातिव्यवस्था बनाये रखने के लिए उन्होंने महिलाओं का इस्तेमाल किया.
मतलब विधवा को शादी ना करने का बंधन . विधवाविवाह पर पाबंदी थी .लेकिन उन्होंने देखा की ये इसे टिकाये रखना जाद्त्ती है.ये सम्भव नहीं है.तो ये विधवा सुंदर नहीं दिखनी चाहिए.तो उसके बल कांट दिए गए .ताकि कोई उसकी तरफ आकर्षित ना हो और कोई उसके साथ शादी करने के लिए तैयार ना हो जाये.याने किसी भी स्थिति में ये जाति व्यवस्था बने ही रहनी चाहिए.

JHOLA (NEPALI MOVIE)
सती प्रथा
****सतीप्रथा=
दूसरा रास्ता ब्राम्हणों ने निकाला.अपने पति के साथ मरनेवाली जो स्त्री है ये पतिव्रता स्त्री है और ये पतिव्रता स्त्री है .ये सचचरित्र स्त्री है.इसीलिए ये सती है.ब्राम्हणों ने ये जो गलत और घटियाँ कम किया .इस गलत और घटियाँ काम का उन्होंने गौरव किया.सच के लिए जान दे रही है .गौरवभाव निर्माण किया.जो जिवंत रही है वो अपने पति की चिता पर जिन्दा जलनी चाहिए .इसके लिए स्त्री में प्रेरणा पैदा की जाये.ये प्रेरणा पैदा करने के लिए उन्होंने औरतो के लिए खास त्यौहार बनाया.जिसका नाम था वडसावित्री.

***वडसावित्री=
(प्रेरणा) संस्कार बनाया योजनाबद्ध तरीके से .औरत धागा लेकर चक्कर काटती है और कहती है यही पति मुझे सातों जनम जनम तक मिलना चाहिए .ये शराबी है फिर भी मीलना चाहिए.मारता-पिटता है फिरभी मिलना चाहिए। .यही मिलना चाहिए.गहरी बात है .समझिए .ये बार बार हर साल त्यौहार आता है .तो हर साल उनके मन में ये संस्कार किया जाता है .यही पति तुमको मिलने वाला है और कोई पति मिलने वाला नहीं है .और अगर तुम जिन्दा रहती हो तो जबतक जिंदा रहोगी तबतक तुम्हारा पुनर्मिलन होने के लिए तुम देर कर दोगी। .क्यों की अगर तुम अपने पति की चिता पर मार जाओगी.तो एक ही तारीख को,एकही समय को पैदा हो जाओंगी ,पुनर्जन्म हो जायेगा.फिर दोनों का मिलन भी हो जायेगा,अगर एकसाथ जाओगी.जिन्होंने षड्यंत्र किया ,जिन्होंने योजना बनायीं,जिन्होंने प्लानिंग बनायीं.कोई चोर में चोर हूँ ये नहीं बताता.ऐसा ही ब्राम्हणों के बारे में है.जनम जनम की theory महिलाओं में प्रेरणा देने के लिए की गयी.परंतु अब यह प्रथा समाप्ती पर है ॥

****क्रमिक असमानता=
जातिव्यवस्था बंधन डालने के बाद ही निर्माण करना /maintain करना संभव है.गुलाम बनाने के लिए .हर कोई किसी ना किसी के ऊपर होने से वो समाधानी रहता है.ये सारे लोग अपने आप में लड़ते रहे.इसीलिए ब्राम्हणों के लिए वो unite हो ही नहीं सकते.consolation prize is not a real prize. यहीं पर लगना चाहिए .ये ऊंचनीच की भावना एक आदमी को नहीं पुरे humanity को ख़तम करती है.

****अस्पृश्यता=
ये बुद्ध पूर्व काल में नहीं थी.जातिव्यवस्था बुद्ध पूर्व काल में नहीं थी.इसीलिए literature में नहीं है.इसीलिए भ्रांति होती है.जिन बुद्धिष्ट लोगो ने ब्राम्हणी धर्म से compramise किया .उसे अपना लिया. वो आज obc है.उनपर ब्राम्हणवाद का प्रभाव है .obc,untouchable,tribe भी प्रतिक्रांति के बाद के वर्ग है.।

सिंधु घाटी की सभ्यता पैदा करने वाले भारतीय लोगो से इतनी बड़ी महान सभ्यता कैसे नष्ट हुई,जो 4500, 5000 पूर्व थी ??? ये इंग्रेजो ने पूछा था.एक अंग्रेज़ अफसर को इस का शोध करने के लिए भी बोला गया था.बाद में इसके शोध को राघवन और एक संशोधक ने continue किया .पत्थर और इटें के टेस्ट में पता चला की ये संस्कृति अपने आप नहीं गीरी वो गिराई गयी । .दक्षिण राज्य केरल में हराप्पा और मोहेंदोजड़ो के 429 अवशेष मिले.ब्राम्हण भारत में ईसा पूर्व 1600,1500 शताब्दी पूर्व आया.

ऋग्वेद में इंद्र के संदर्भ में 250 श्लोक आतें हैं.सबसे अधिक श्लोक इंद्र पर है.जो ब्राम्हणों का नायक है.बार-बार ये श्लोक आता है. “हे इंद्र उन असुरों के दुर्ग को गिराओं” उन असुरों(बहुजनों) की सभ्यता को नष्ट करो.ये धर्मशास्त्र नहीं बल्कि criminal दस्तावेज हैं.

भाषाशास्त्र के आधार पर ग्रिअरसन ने भी ये सिद्ध किया की अलग-अलग राज्यों में जो भाषा बोली जाती हैं,वो सारी origion from पाली है.

DNA का evidence निर्विवाद और निर्णायक है.क्यूँ के वो तर्क,दलील पर खड़ा नहीं है.जिसे lab में जाकर प्रमाणित किया जा सकता है.lab कोई जाती नहीं है science है.lab धर्मनिरपेक्ष है.इसीलिए lab निर्णायक और निर्विवाद है.। कोई भी आदमी अपना DNA टेस्ट lab में जाकर करा सकता है.इस DNA के शोध में पूरी दुनिया से शोध करनेवाले 265 लोग थे. **बामशाद का ये शोध 21 may 2001 को *nature* नाम के अंक में ,जो दुनिया का वैज्ञानिक सबसे जादा मान्यता प्राप्त अंक है उसमे आया था.**

बाबासाहब आंबेडकर की उम्र सिर्फ 22 साल थी जब उन्होंने विश्व का जाती का origion क्या है ?इसका खोज किया था और 2001 में जो DNA reasearch हुआ था .बाबासाहब का और माइकल बामशाद का मत एक ही निकला था.।

ब्राम्हण सारी दुनिया के सामने पुरे expose हो चुके थे.फिर भी मापदंड के आधार पर ये जो दक्षिण राज्य के ब्राम्हणों ने दो विभिन्न नस्लों की संतान है / दो पूर्वज समूह की संतान है भारतीय ऐसा झूठा प्रचारित करने के लिये,अपना विदेशीपण छिपाने के लिए, उन्होंने हमेशा की तरह ब्राम्हण theory use करते हुये ,पूर्व के DNA संशोधन को ख़ारिज नहीं किया और एक झूठ media के द्वारा प्रचारित करना शुरू कर दिया .की अभी कोई भी मूलनिवासी कह नहीं सकता है .सब अब संमिश्र है । .

उन्होंने कहाँ का मापदंड ढूंडा?????
उन्होंने अंदमान और निकोबार द्वीप समूह में जो आदिवासी जनजाति है.उसका दलील देकर कहा की ये अफ्रीकन का वंशज है .वो इधर से आया था और इधर से यूरोपियन countries में चला गया .तो कैसे गया?? इसका शोध करना चाहिए.ऐसा कहा. माइकल बामशाद के विज्ञानं द्वारा किये गए शोध को नाराकने के लिए । उन्होंने विज्ञानं का सिर्फ नाम लिया .सिर्फ उस प्रचार में विज्ञानं ये शब्द डाला.उससे झूठ प्रचारित किया. ब्राम्हण अगर तुमको यही झूठी कहानी बताये तो पूछो के इन दो में से कौनसा विदेश से आया ???
विदेशी का DNA बताओं?????
लेकिन वो ये साबित कर ही नहीं सकते.

ब्राम्हण मुसलमान विरोधी घृणा अभियान क्यूँ चलाते हैं?????
क्यूँ कि ब्राम्हणवाद और बुद्धिजम के टकराव में जो ब्राम्हण विरोधी बुद्धिष्ट मुसलमान बने.उन्होंने ब्राम्हण धर्म को नहीं अपनाया.इसीलिए ये सब पहले से किया जा रहा है.क्यूँ के ब्राम्हण जानता है की ये मूल के बुद्धिष्ट लोग हैं.

इंग्रेजो के गुलाम ब्राम्हण थे और उनके गुलाम मूलनिवासी बहुजन थे.। जो आज तक आजाद नहीं हुये हैं.आजादी की जंग में जो आजादी का आंदोलन लड़ रहे थे .उनके सामने ये समस्या थी.इसीलिए बाबासाहब ने इंग्रेजो को कहा था की ब्राम्हण को आजाद करने के पहले हम बहुजनों को आजाद जरुर कर देना.। अगर तुमने ब्राम्हणों को हमसे पहले आजाद कर दिया .तो ब्राम्हण हमको आज़ाद करने वाले नहीं है .। ये आशंका सिर्फ बाबासाहब के मन में ही नहीं थी बल्कि मुसलमानों के भी मन में थी.ये बात जिन्ना के संगयान मेन थी इसीलिए 14 aug.को पाकिस्तान बना.मुसलमानों ने इंग्रेजो को कहा कि गाँधी के पहले एक दिन हमको आझादी दे देना.। और हमारे बाद गाँधी को देना.। अगर तुमने गाँधी को पहले दे दिया तो गाँधी बनिया है हमको कुछ नहीं देगा। . ब्राम्हणों ने अपने आजादी की लढाई हमको सीढ़ी बनाकर लढी.और वो इंग्रेजो को भगाकर आज़ाद हो गए.

DNA संशोधन आया.उसने सिद्ध किया के ब्राम्हण यहाँ के नहीं है .ब्राम्हण विदेशी है. जब ये देश इनका कभी था ही नहीं,उन्होंने कभी ये माना नहीं. इसीलिए तो ब्राम्हण हमेशा हमको राष्ट्रवाद की theory बताता आया है.कि हम कितने राष्ट्रभक्त है और मूल बात छुपाता है.इसका मतलब एक विदेशी देश छोड़कर गया.दूसरा विदेशी देश का मालिक हो गया.DNA ने ये सिद्ध कर दिया.दुसरे विदेशी यानि ब्राम्हणों ने ये propaganda किया के भारत आज़ाद हो गया. । भारत आज़ाद नहीं हुआ । ब्राम्हण आज़ाद हुआ । अर्थात विदेशियों का राज है. बहुजनों को आझादी हासिल करने का कार्यक्रम भविष्य में चलाना ही पड़ेगा.ये मामला अभी समाप्त नहीं हुआ.इतने conclusion draw होते है DNAके आधार पर.ये दुनिया के 600 cr. में से 100 cr. जिनकी प्रजा है.उन 100cr. को प्रभावित करने वाला संशोधन है.कल्पना करो कितना मुलभुत और कितना महत्वपूर्ण संशोधन।

नवभारत टाइम्स से लिया गया लेख

Friday, February 5, 2016

वेदों और पुराणों में है पैगम्बर मुहम्मद के आगमन के बारे में जानकारी

शायद आप यह बात जानकर हैरत करें लेकिन सच्चाई यही है कि वेदों और पुराणों में पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के आगमन से बरसों पहले उनके आने की भविष्यवाणी की गई है।
मुहम्मद सल्ल0 अरब में छठी शताब्दी में पैदा हुए, मगर इससे बहुत पहले उनके आगमन की भविष्यवाणी वेदों में की गई हैं। महाऋषि व्यास के अठारह पुराणों में से एक पुराण ‘भविष्य पुराण’ हैं। उसका एक श्लोक यह हैं:
‘‘एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रो के साथ आयेंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तान क्षेत्र में आयेंगे। (भविष्य पुराण अ0 323 सू0 5 से 8)
स्पष्ट रूप से इस श्लोक और सूत्र मे नाम और स्थान के संकेत हैं। आने वाले महान पुरूष की अन्य निशानियॉ यह बयान हुई हैं।
‘ पैदाइशी तौर पर उनका खतना किया हुआ होगा। उनके जटा नही होगी। वह दाढ़ी रखे हुए होंगे। गोश्त खायेंगे। अपना संदेश स्पष्ट शब्दो मे जोरदार तरीके से प्रसारित करेंगे। अपने संदेश के मानने वालों को मुसलाई नाम से पुकारेंगे। (अध्याय 3 श्लोक 25, सूत्र )
इस श्लोक को ध्यान पूर्वक देखिए। खतने का रिवाज हिंदुओं में नही था। जटा यहॉ धार्मिक निशान था। आने वाले महान पुरूष अर्थात मुहम्मद सल्ल0 के अन्दर ये सभी बाते स्पष्ट रूप से पाई जाती हैं । फिर इस संदेश के मानने वालो के लिए मुसलाई का नाम हैं। यह शब्द मुस्लिम और मुसलमान की ओर संकेत करता है।
अथर्व वेद अध्याय 20 में हम निम्नलिखित श्लोक देख सकते हैं•
हे भक्तो! इसको ध्यान से सुनो। प्रशंसा किया गया, प्रशंसा किया जाने वाला वह महामहे ऋषि साठ हजार नब्बे लोगो के बीच आयेगा।
मुहम्मद के मायने हैं जिसकी प्रशंसा की गई हो। आप स0 की पैदाइश के समय मक्का की आबादी साठ हजार थी।
वे बीस नर और मादा ऊटो पर सवारी करेंगे। उनकी प्रशंसा और बड़ाई स्वर्ग तक होगी। उस महा ऋषि के सौ सोने के आभूषण होंगे।
ऊट पर सवारी करने वाले महा ऋषि को हम भारत में नही पाते।
अत: यह संकेत मुहम्मद स0 ही की ओर हैं। सौ सोने के आभूषण से अभिप्रेत हबशा की हिजरत में जाने वाले आप सल्ल0 के सौ प्राणोत्सगी मित्र हैं।
दस मोतियों के हार, तीन सौ अरबी घोड़े , दस हजार गाये उनके यहॉ होगी।
दस मोतियों के हार से संकेत आप स0 के उन दस मित्रों की ओर हैं जिन्हे दुनिया ही मे जन्नत की खुशखबरी दी गई।
बद्र की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले 313 सहाबा को तीन सौ अरबी घोड़ो की उपमा दी गई हैं। दस हजार गायों से अभिप्रेत यह हैं कि आप सल्ल0 के अनुयायियों की संख्या बहुत अधिक होगी।

कुरआन मजीद नबी सल्ल0 को ‘जगत के लिए रहमत’ के नाम से याद करता हैं।
ऋग्वेद मे भी हैं:
रहमत का नाम पाने वाला, प्रशंसा किया हुआ दस हजार साथियों के साथ आएगा।
(मंत्र 5 सूत्र 28)

इसी तरह वेद में महामहे और महामद के नाम से भी आप स0 के आगमन का उल्लेख हैं.
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के बारे में कई भारतीय धर्मग्रंथों में भविष्यवाणी की गई है। इसके लिए आप डॉ. एम.ए. श्रीवास्तव की पुस्तक ‘हजरत मुहम्मद और भारतीय धर्मग्रंथ’ जरूर पढें।