Tuesday, October 15, 2013

वेद में इन्सानों की बलि



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वेद में इन्सानों की बलि
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वेदों के एक भाष्यकार आचार्य महीधर ने तो यहाँ तक लिख दिया

ब्रह्मणाराजन्ययोरतिष्ठाकामयोः पुरुष्मेधसंज्ञको यज्ञो भवति !

अर्थात जो ब्राह्मण या क्षत्रिय देवताओं से भी ऊंचे स्तर पर पहुँचना चाहते हों, उन्हें पुरुषमेध (इन्सानों की कुर्बानी) का यज्ञ करना चाहिए। [यजुर्वेद अध्याय 30, मंत्र 2 पर महीधर भाष्य]

यजुर्वेद में तीसवाँ अध्याय तो पूरी तरह ‘पुरुषमेध’ पर ही है। ऋग्वेद से पता चलता है कि यह यज्ञ संतान प्राप्त करने के लिए भी किया जाता था। ऋग्वेद में शुनःशेप नामक एक व्यक्ति को संतानोत्पत्ति हेतु बलि चढ़ाने का वर्णन है। उसकी बलि देने के लिए उसे यज्ञमंडप के स्तम्भ से बांध दिया गया था। यह अलग बात है कि उसने वरुण देवता की स्तुति की, उसे प्रसन्न किया और वरुण के दर्यादिल होकर उसे मौत के मुंह से बचा दिया। ऋग्वेद में है

शुनःशेपो हयह्वद गर्भीतस्त्रिष्वादित्यं दरुपदेषु बद्धः |
अवैनं राजा वरुणः सस्र्ज्याद विद्वानदब्धो वि मुमोक्तु पाशान ||

अर्थात शुनःशेप ने घृत तीन काठों में आबद्ध हो कर अदिति के पुत्र वरुण का आह्वान किया। विद्वान और दयालू वरुण ने शुनःशेप को मौत के मुंह से बचाया। [ऋग्वेद 1/24/13]

ऋग्वेद के व्याख्यान रूप ‘एतेरेय ब्राह्मण’ (काण्ड 7, अध्याय 3) में इस प्रसंग को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि राजा हरिश्चंद्र की कोई संतान न थी। अतः उसने वरुण की मनौती की। वरुण ने प्रसन्न होकर कहा, ‘तुम्हारी संतान तो होगी लेकिन तुम्हें बलि देनी होगी।” राजा ने रोशीत नाम का बेटा जन्मा। वरुण को दिए गए वचन की पूर्ति के लिए उस ने अजीगर्त ऋषि के पुत्र शुनःशेप को खरीद कर बलि चढ़ाना तय किया। उस यज्ञ में काटने के लिए नियुक्त व्यक्ति को 100 गौएँ दी गईं। जब बलि चढ़ाने में कुछ ही क्षण शेष थे, तब शुनःशेप ने वरुण की स्तुति की और उसे प्रसन्न कर अपनी जान बचाई।

शांखायान ब्रहमान और ब्रहमपुराण में भी यही विवरण मिलता है। परन्तू ब्रह्म पुराण में इतना अंतर है कि शुनःशेप को विश्वामित्र ने अपना ज्येष्ठ पुत्र बनाकर बचाया था, न कि वरुण ने उसकी रक्षा की थी।

यहाँ यह बताना उचित है कि इसी विश्वामित्र पर जब नरमेध का भूत सवार हुआ तो उसने अपने प्रत्येक बेटे को बलि पशु बनने के लिए कहा था। विश्वामित्र के 100 बेटे थे। जब भी इस धार्मिक कृत्य में अपनी हत्या करवाने के लिए तैयार न हुआ तो उसने उन्हें शाप से डाला कि जाओ, तुम नीच बन जाओ और एक हज़ार साल तक कुत्ते के मांस पर गुज़ारा करो। [वाल्मीकि रामायण बालकांड सर्ग 62]

श्व मांस भोजिनः सर्वे वासिष्ठा इव जातिषु |
पूर्णम् वर्ष सहस्रम् तु पृथिव्याम् अनुवत्स्यथ

तो साबित हुआ कि वादिक हिन्दू धर्म में इन्सानों की बलि दी जाती थी।

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